कवि और कविता : डॉ. प्रेमकुमार पाण्डेय [केंद्रीय विद्यालय वेंकटगिरि, आंध्रप्रदेश]
🌸 नशा मुक्ति के इश्तहार निकले…
करार जिन्हें,संगी समझ बैठा था।
वो तो बस, दरिया की धार निकले।।
रफ़्ता-रफ्ता, दिलों को रौंदते हुए।
सुकून के वास्ते,तलबदार निकले।।
सच बोलने की सज़ा,लाज़मी जो थी।
दिल की गली से , यूं बेहिसाब निकले।।
कांटों की मुहब्बत,अच्छी नहीं होती।
सुर्ख गुलाबों के,हम गुनहगार निकले।।
सारे कुओं में बस,भांग ही भांग थी।
हम तो नशामुक्ति के, इश्तहार निकले।।
करार जिन्हें,संगी समझ बैठा था।
वो तो बस, दरिया की धार निकले।।
▪️▪️▪️
🌸 उनका जाना लाज़मी है…
उनका आना ज़रूरी था, सुकून के लिए।
अब जाना ही लाज़मी है,वजूद के लिए।।
उनके हुनर के किस्सों ने, लाचार बनाया था।
छमछम की गुफ्तगू ने, परीलोक दिखाया था।।
मेरा वजूद तन्हा रहा, घनघोर घटाएं छाईं।
बूंद कुछ यूं बरसी,मेरे रोंएं- रोंएं में समाई।।
मेरी तकरीर में भी, इक जलजला आया।
गड़गड़ाती तालियों में, मैंने बेशक सुकूं पाया।।
बिना आग चूल्हों के दर्द,अब सयाने हुए।
मेरे सब्जबागों के किस्से,अब पुराने हुए।।
अंदर कुछ दरकता रहा,ठोस हिमालय भी पिघला।
राख को कुरेदने पर, दहकता लावा निकला।।
उनका आना जरूरी था,सुकून के लिए ।
उनका जाना ही लाज़मी है, वजूद के लिए।।
▪️▪️▪️
🌸 फाइल धरकर आ जाना…
चकाचौंध से मन भर जाए
पिज्जा बर्गर तुम्हें सताए
रोटी -सरसो राह जोहती
मुझसे मिलने आ जाना।
भीड़भाड़ में गुम हो जाओ
बंद घरों में घुटते जाओ
सहन किनारे राह जोहती
नीम तले तुम आ जाना।
शावर में जब जल ना आए
बिजली भी जब तुम्हें सताए
गलती पर पछतावा आए
नदिया तट पर आ जाना।
कम्प्यूटर जब खेल खिलाए
खेल-खेल में आंख गंवाए
बबुरहनी तर राह जोहती
लग्गी लेकर आ जाना।
मोटर गाड़ी जेब सताए
पैदल चलना मन ना भाए
बैलों संग मैं राह जोहती
पगडंडी पर आ जाना।
मित्रों की जब याद सताए
तरक्की भी जब तुम्हें रुलाए
संबंधों को धरे संजोए
होली मिलने आ जाना।
नीम तले हैं बाबू आए
हर मोटर पर आंख गड़ाए
अम्मा बैठी मनवा बुझाए
फाइल धरकर आ जाना।
▪️▪️▪️
•संपर्क –
•98265 61819
🌸🌸🌸🌸🌸