विश्व कविता दिवस विशेष : शरद कोकास [दुर्ग छत्तीसगढ़]
🌸 कविता से सम्वाद
आओ इन दिनों आओ
जैसे बंजर पड़ी ज़मीन में
मेहनत से फसल आती है
आओ जैसे सूखे हुए कुएं में
बरसात के बाद आता है जल
जैसे नाउम्मीदी के किसी ठूंठ में
एक कोंपल उग आती है
आओ इस तरह आओ
जैसे अँधेरी रात में
क्रांति के गीत गाती
सर्वहारा की सेना आती है
एक हाथ उठता है
ज़ख्मों का खून पोंछने के लिए
बांह थामती है एक बांह
सहारा देने के लिए
आओ हमारे जीवन में
हमारे दुखों को छूने की कोशिश करो
कांटो भरी झाड़ियाँ हैं हम
मगर चुभ नहीं जायेंगे
हमारे जेहन में बसने की तैयारियाँ करो
गंवार ही सही
समझ जरूर जाएँगे
कानों में हौले से फुसफुसाओ
कहो हमें कौनसी राह चुननी है
तुम्हें महसूसना चाहते हैं हम
छूना चाहते हैं
सिद्ध करना चाहते हैं
दुनिया में तुम्हारी अनिवार्यता
जवाब देना चाहते हैं उन्हें
जिन्होंने फतवा जारी किया है
तुम्हारे अप्रासंगिक होने का
तुम्हें हथियार बनाकर
लड़ना चाहते हैं उनसे
जिन्होंने साजिश की है
तुम्हें हमसे दूर करने की ।
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