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कविता आसपास, दिनाँक 17 अप्रैल 2023 को मित्र अशोक साउरकार के परलोकगमन का हृदय विदारक संवाद को सुन मन अनायास ही मरुथल की तपती रेत में व्याकुल पथिक सा हो गया और बंधुत्व की अकपट अनुभूतियाँ झुलसने लगीं।तब कलम ने मरहम का काम कुछ इस तरह से किया
🌸 बंधुत्व
– पल्लव चटर्जी
[ भिलाई मैत्री कुंज, छत्तीसगढ़ ]
उसकी मित्रता,
आबद्ध नहीं होती
किसी परिधि में
अनिर्वचनीय सुख का संसार ही था-
हमारा बंधुत्व।
निस्वार्थ प्रेम था तो
मतान्तर भी था
मान- अभिमान था तो
सुख-दुःख में परस्पर के
पूरक बनने की होड़ भी थी।
आज उसकी विरह में समझ पा रहा हूँ-
बंधुत्व का अर्थ…
जिसे खोकर मन
विक्षिप्त सा क्रँदन करे
जिसका अभाव अनायास ही
निर्धन कर दे और भावनायें सँभाली न जा सकें।
बंथुत्व का मतलब
आस्था,निश्चिंतता
कुबेर को लज्जित करता धन
जाडे़ की धूप में
चादर बिछाकर सुख- दुःख की
अविराम बातें,
दूर चले जाने पर
कुशल संवाद पाने की आकुलता,
खुशियों का पर्याय
और विषम परिस्थिति में
भरोसेमंद चेहरा…
संसार की गतिविधियाँ
कल की तरह ही हैं
बेकल है मेरा आज
क्योंकि बंधु तुम नहीं हो
और जो तुम नहीं हो तो मैं भी
परछाँई हो गया हूँ।
•संपर्क –
•81093 03936
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