कविता
नारी बने कल्याणी
-श्रीमती वंदना खरे,
कोरबा-छत्तीसगढ़
नारी तो है गुणों की खान ,
आओ करते हम उसका बखान।
दुर्गा, लक्ष्मी ,पार्वती सरस्वती
के रूपों में है पूजी जाती ,
बेटी बनकर घर को आबाद है करती ।
बहु रूप में सास ससुर को ,
बेटी की कमी है भुलावाती ,
नवयुग के ही अनुरूप भर्ती ,
सु संस्कार जीवन में ,
निर्मात्री है तू मानव की ,
नीव की ईट सा जीवन है ।
पत्नी बनकर सहगामी बनती ,
सुख दुःख में कर्तव्य निभाती,
जीवन की संध्या बेला में ,
पत्नी जब मां बन जाती ।
माता बनकर नेह लुटाती,
ता उम्र करें अनुशासन ।
अपने बच्चों के लालन-पालन में ,
कर देती है जीवन अर्पण ।
घर आंगन के बाहर भी यदि,
कदम है वह रखती ।
अपनी फतेह के झंडे ही ,
हर जगह है वह फैराती ।
लक्ष्मी ,इंदिरा ,मीरा, कल्पना को ,
कौन नहीं पहचानता है
उनका परिचम ही ,
नारी के साहस की याद दिलाती है
नारी बने कल्याणी ,
यही रूप हमें भी भाता है।
नवयुग के निर्माण की ,
आओ हम प्रतिज्ञा करें ।
जीवन में हिम्मत साहस भर ,
उन्नति की राह चले ।
कलरव करते पंछी का दल ,
दे रहा संदेश नया ।
अब तो जागो देर करो मत ,
बनालो एक छवि नई ,
अबला से सबला बन ,
जीवन में आगे बढ़ने का ,
लो संकल्प आज नया ।
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