ग़ज़ल
4 years ago
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भाव नया जगाना है
– बलदाऊ राम साहू
दुर्ग-छत्तीसगढ़
धीरे-धीरे भीग रहा है माँ का आँचल आँसू से,
पर बेटे को याद कहाँ है मन उनका बहलाना है.
जंगल, धरती, झाड़-झरुखे झुलस रहे अंगारों से,
फिर भी दुश्मन सूरज कहता, इनको अब बतलाना है.
ओठ चबाते चट्टानों पर बैठा कोई दुखिया लगता,
उसके भीतर जज्बातों का भाव नया जगाना है.
शोषण औ’ संघर्षो की गाथाओं से इतिहास भरा है,
अब अपने हक का उसमें अध्याय नया लगाना है.
भीतर में जो आग दबी थी धुआँ धुआँ-सा लगता था,
उसको देकर हवा जरा- सी फिर से अब भड़काना है.
एक कबूतर चिट्ठी लेकर सरहद के उस पार गया,
सरहद पर बैठे हैं कातिल यह उसको समझाना है.
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