गीत -सरोज तोमर
4 years ago
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गरल पचाकर हमने साथी,
इस जीवन को अमर बनाया।
मरुथल की वीरानी सहकर,
हरियाली का अंकुर पाया ।
रक्छा गुल बगिया की होगी,
नागफणी के ही कांटों से ,
लेन-देन चाहो को होगा,
कुछ निश्चित हाटों-बांटों से।
बहुत दिनों के बाद ये मौसम,
संधि-पत्र फिर लेकर आया।
टूट-टूटा सपना फिर से,
सच बन नयनों में तिर आया ।
ऊबड़-खाबड़ अनगढ़ पाहन,
को शिल्पी ने रुप दिया है ।
घोल-घोल रंग को कई रंग में,
कैसा चित्र अनूप दिया है ।
द्वारे-द्वारे भटक -भटक कर,
बंजारा वापस घर आया ,
मन की गठरी में कितने ही ,
अनुभव संचित है कर लाया।
चंदन की सुरभित बाड़ी में
क्या अचरज विषधर आ जाएं।
उल्का पात से टूटे तारों –
की जगमग जुगनू पा जाएं।
उबर अमा के गहरे तम से,
चंदा ने उजियारा पाया ।
धरती से छुप-छुप मिलने की ,
कसमें तारों में भर लाया ।
कवयित्री संपर्क-
94255 55022
chhattisgarhaaspaas
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