तीन लघु कथा -विक्रम ‘अपना’, नन्दिनी-अहिवारा-छत्तीसगढ़
1.सबसे सुंदर मूर्ति
लघु कथा
बाजार सजा था।
मोटा, पतला, लंबा, ठिगना, गोरा, काला, बेईमान, ईमानदार, मूर्ख, ज्ञानी, पंडित, नेता, गब्बर डाकू, छैला बसंती, सज्जन, भिखारी, गरीब, लाला, चौकीदार, चोर, पुलिस, शैतान, भगवान…..
…..कोई भी मूर्ति ले लो। … बीस रुपये का एक। …ले लो….मूर्ति ले लो…. मूर्ति बेचने वाला चिल्ला रहा था।
राजू बड़ी देर तक उन पार्थिव मूर्तियों को ध्यान से देखता रहा। उसने एक-एक करके उन सबको टटोला और फिर अंत में सिंहासन में विराजित माँ-पिता की सबसे सुंदर मूर्ति पसंद की।
बच्चों को अपने साथ बाजार घुमाने लाया मोहन भैया बेहद भावुक हो गया।
राजू अनाथ था।
2.धूर्त
लघु कथा
बिना अपराध के ही अपराधी घोषित किए गए जीव अपनी बारी के इंतजार में खड़े थे।
जिंदगी और मौत के फैसले की घड़ी थी।
सिक्का उछाला गया। बलिवेदी में गर्दन झुकाए प्राणी के हिस्से में मौत आयी। भेड़, बकरी, मुर्गी और न जाने कितने ही जीवों के सर एक-एक करके कलम कर दिए गए।
सिक्के को उछालकर मौत की सजा तय करने वाला वह क्रूर प्राणी इंसान था।
उस धूर्त ने सिक्के के दोनों पहलू में एक ही शब्द लिखा रखा था “मौत”
3.मॉडर्न अर्जुन
लघु कथा
कलयुग का आगमन हो चुका था।
मॉर्डन रथ बी एम डब्ल्यू पर मॉर्डन अर्जुन सवार था। सारथी के रूप में श्री कृष्ण ने उपदेश किया।
हे पार्थ!!! ये भाई, सहोदर सब एक दिन काल के गाल में समा जाएंगे। अतः तुम मोह त्याग कर गांडीव उठाओ और दुष्टजनों का संहार करो।
यह दिव्य ज्ञान पाकर, सौ कौरवों को मारने का विचार त्याग कर, अर्जुन ने अपने बाणों का लक्ष्य शेष पांडवों पर कर दिया और एक साथ चार बाणों का संधान कर चारों भाईयों को निश्चेत कर दिया।
फिर रथ से उतरकर दुर्योधन के साथ दुरभि संधि करके अर्जुन ने अपनी गठबंधन की सरकार बना ली।
सरकार बनते ही उसने सारथी कृष्ण को नौकरी से निकाल दिया।
वह कापुरुष अब महापुरुष था।
वह मॉडर्न अर्जुन नेता जी थे।