- Home
- Chhattisgarh
- हरेली : मन हरिया जथे : हरेली तिहार म : – डॉ. नीलकंठ देवांगन
हरेली : मन हरिया जथे : हरेली तिहार म : – डॉ. नीलकंठ देवांगन
छत्तीसगढ़ मं तीज त्योहार, उत्सव परब के बारों महीना रिमझिम लगे रहिथे | रंग बिरंगी संस्कृति परंपरा सब तिहार ल रंगीन बना देथे | हर तिहार मनाय के पीछू कोनो न कोनो कारन या तथ्य होथे जवुन मं निहित संदेश समाय होथे | अइसने हरेली तिहार इहां हरियाली खुशहाली के संदेश लेके आथे | ये तिहार मं इहां के निवासी किसान मन अपन जिनगी मं हरियाली खुशहाली के कामना करत पूजा पाठ करथें | मानसून आय के बाद सावन महीना के अमावस्या मं ये तिहार मनाय जाथे |
खेती के उपयोग मं अवइया औजार के पूजा – ये तिहार मं किसान मन अपन खेती के औजार उपकरन – नांगर, कोपर, रापा, गैंती,कुदारी, बसुला, बिंधना, पतवार , पटासी, साबर, सबरी ल धो मांज के गोबर लिपाय भुइंया मं मुरमी के ऊपर रख के पूजा करथें | गुलाल चंदन , कुमकुम हल्दी लगा के,फूल पान, दीया अगरबत्ती जला के, हूम धूप देके चीला गुड़ के भोग लगाथें | नरियर फोड़थें | हाथ जोड़ के बिनती कर थें | माथ नवां के पांव परथें | किरपा आशीर्वाद मांगथें | पूजा मं घर के सबो माई पिला शामिल होथें |
प्रकृति मं हरियाली के चादर ओढ़े ये धरती के सिंगार किसान मन हरेली तिहार के माध्यम ले करथें | अपन खुशी ल जताथें |
गेंड़ी – हरेली तिहार मं लइका मन काफी खुश दिखथें | ओमन ल गेंड़ी चढ़े बर मिलथे | गेंड़ी बांस के बने खिलौना होथे | एखर लंबाई लगभग 3 से 7 फुट तक होथे | कोनो मन एखरो ले ऊंच गेंड़ी बनवाथें | जमीन ले एक डेढ़ फुट के ऊंचाई मं बांस के बने खपच्चा के पायदान होथे जेला बूच, बरही या जूट के रस्सी ले बांध के बनाय जाथे | येमा मिट्टी तेल या अरंड तेल डार देथें | येखर ले गेंड़ी चढ़के चले, दौड़े के समय आवाज आवय | कई झन मन तो बहुत ऊंच गेंडी चढ़े के शौक रखथें | ओमन कोनो चंवरा, पथरा, दीवार मं चढ़ के गेंड़ी के पायदान मं पांव रखथें |
उत्सव के रंग – कोनो कोनो जगा गेंड़ी चढ़के दौड़े के प्रतियोगिता घलो होथे | येमा संतुलन बनाय रखना आवश्यक होथे | कोनो जगा गेंड़ी नाच,बइला दौड़, मटका फोड़, रस्सी खींच, नरियर फेंक, नरियर फोड़, घलो होथे | खो खो, खुड़वा , कबड्डी घलो खेलथें | चौंक चौराहा मं उत्सव जइसे माहौल हो जथे | गांव वाले मन देखे बर सकलाय रहिथें | उत्सव के रंग बिखरथे | रात कुन चौपाल मं आल्हा रामायन पढ़थें |
कृषि संस्कृति ले जुड़े परब – हरेली एक अइसे परब हे जेमा प्रकृति ले जुड़ाव, लोक व्यंजन के खुशबू, प्रकृति अउ माटी के प्रति प्रेम समाय रहिथे | छत्तीसगढ़ वासी मन प्रकृति के पूजा करइया, प्रकृति से प्रेम करइया होथें | इंखर जादातर तिहार तिहार प्रकृति के संग बीतथे | हरेली कृषि संस्कृति ले जुड़े खुशी के तिहार हे | येमा प्रकृति ल सुंदर बनाय, ओखर रक्षा अउ ओखर बढ़ोत्तरी के संदेश छुपे होथे |
पशुधन के पूजा – ये वो समय होथे जब किसान धान के बुवाई, बियासी कर डरे रहिथे | थोकुन फुरसत के समय होथे | उंखर मन हरियर रहिथे | बढ़त फसल ल देख के मन उंखर आगर रहिथे | ये दिन के इंतजार करत रहिथें | कृषि औजार के पूजा के संग पशुधन – गाय, बइला, भैंसा, भैंसी, बछरू के घलो आदर के साथ पूजा करथें | छत्तीसगढ़ धान के कटोरा कहलाथे | खेती किसानी के काम तो इंखरे भरोसा ले होथे | इही मन किसान मन के ताकत आंय | पूजा करके उंखर प्रति आभार प्रकट करथें |
अंधकार ले प्रकाश मं जाय के संदेश – सावन महीना के आमावस्या मं मनाय जाने वाला ये तिहार के बड़ महत्व हे | अमावस्या दू शब्द ले बने हे – अमा अउ वस्या | अमा माने अंधकार भरे रात अउ वस्या माने बसइया | बसइया ल शक्ति किथें | एखरे सेती शुभ गुन ल आचरन मं लाय खातिर शक्ति के पूजा करथें | देव देवी के पूजा उपासना के क्रम एखरे सेती बनाय गेहे | हमन अपन अंदर दैवीगुन ल समावत रहन | ये तिहार हे अंधकार ले प्रकाश मं जाय के संदेश देथे |
गांव बनाना – ये दिन गांव के पटेल अउ मुखिया मन बइगा संग रात कुन गांव के मेड़ो मं जाके पूजा पाठ करथें जवुन ल गांव बनाना केहे जाथे | अनिष्टकारी शक्ति ले गांव सुरक्षित रहय, गांव मं सुख शांति बने रहय, बिघन बाधा ले गांव बचे रहय, तेखर सेती गांव बनाय जाथे | बइगा ह गांव बनाथे |
बैगा गुनिया मन रात मं झाड़ फूंक, तंत्र मंत्र विद्या के साधना घलो करथें | जादू टोना जनइया सिखइया मन सिद्धि पाय के साधना करथें | सांप बिच्छू के जहर उतारे के,पीलिया ल दूर करे के, भूत परेत भगाय के मंत्र इही रात मं सिद्ध करथें |
गांव मं मुनादी करा दे जाथे के कोनो बिहिनिया ले अपन घर ले मत निकलहू | बेरा चढ़े के बाद काम बुता मं लगहू | पानी कांजी भरहू | एखर पीछू के कारन हे के वो जगा ल पहिली आदमी मन मत देखंय | कोनो दूसर जीव जंतु के नजर ओखर ऊपर पड़ जाय रहय | आदमी बुरा असर ले बच जाय |
जादू टोना टोटका ले बचाव – ये दिन गांव के गाय गरू चरइया रावुत, ठेठवार, पहाटिया अपन किसान मालिक के घर मं लीम या मउहा के पत्ता डंगाली खोंचथें जेखर ले घर जादू टोना टोटका ले बचे रहय | लीम के पाना नुकसान पहुंचइया कीड़ा मकोड़ा ले घलो रक्षा करथे | एखर बदला मं किसान ओमन ल दार चांउर नून मिरचा, रुपिया पइसा देखे उंखर सम्मान करथें | हरेली तिहार के बिहान दिन ले गाय चरइया राउत पहाटिया मन लाठी धरथें याने पशु चराय के शुरू करथें |
भूत परेत पिशाच बाधा से बचाव – ये दिन लोहार मन अपन मालिक के घर के मुख्य दरवाजा मं लोहा के खीला ठोंकथें | एखर ले घर भूत परेत पिशाच बाधा ले सुरक्षित रहिथे | गांव देहात मं भूत परेत के मनइया जादा रहिथें |ओमन मानथें के लोहा के खीला गड़े ले उंखर घर मं भूत परेत के साया नइ पड़य |
गोधन किसान के ताकत – पशुधन गाय बइला, भैंसा, भैंसी मन किसान के जीवन बर बड़ उपयोगी होथे | उंखर ताकत होथे | खेती किसानी के काम उंखरे भरोसा होथे | तेखर सेती उंखर बचाव खातिर ये दिन खास उदिम करथें | माटी के परई मं सिंदूर से अर्जुन के बारा नांव (अर्जुन, पार्थ, फाल्गुन, विष्णु, कौन्तेय, पार्थ सारथी, विजय, धनंजय, कपिध्वज, सत्य साची, गुड़ाकेश, श्वेत वाहन ) लिख के नरियर संग कोठा मं टांगथें | कतको मन गाय के गोबर ले अर्जुन के बारा नांव कोठा मं लिख देथें | एखर से खुरहा, चपका रोग ले बचाव के आस्था रखथें |
ये दिन किसान मन अपन बइला भैंसा के सिंग अउ खूर धो पोंछ के तेल लगाथें | सिंग मं पालिश घलो लगा देथें |
लोंदी खवाना – किसान मन ये दिन अपन पशु मन ल गहूं आटा मं नमक डार के लोंदी बनाके खवाथें | घर मं खवाथें या दैहान मं जाके खवाथें | ओमा शतावर, असगंद कांदा, धामन कांदा घलो मिला देथें | किसान मन खुद निते चरवाहा मन कांदा के बेवस्था करथें | बरसा पानी ले होवइया रोग से बचाव हो जथे | बरसात मं कीचड़ घलो बहुत होथे, एखरो से होवइया बीमारी से बचाव के उपाय हे |
चौमासा के ये पहिली तिहार हे | एखर बाद तिहार के सिलसिला शुरू हो जथे | ये केवल किसान मन भर के तिहार नोहय, मजदूर, मिल कारखाना मं काम करइया मन घलो ये उत्सव मं मं शामिल होथें | हरियाली के खुशी मं सब डूबे रहिथें | आस्था मं बढ़ोत्तरी करइया ये प्राचीन परब आस्थावान समाज के निर्मान के दिशा मं आदर्श स्थापित करथे |
•डॉ.नीलकंठ देवांगन
•संपर्क : 84355 52828
🟥🟥🟥