- Home
- Chhattisgarh
- कुछ जमीन से कुछ हवा से : आजादी आधी रात को – विनोद साव
कुछ जमीन से कुछ हवा से : आजादी आधी रात को – विनोद साव
स्वतंत्रता दिवस के अगस्त महीने में मेरे हाथ लगी किताब ‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ – इसका हिंदी संस्करण है ‘आजादी आधी रात को’, पांच सौ पृष्ठों में भारत की आज़ादी की गाथा को लिखने वाले फ्रेंच लेखक है डोमिनीक लापिएर और अमेरिकी लेखक लैरी कॉलिन्स. इसका हिंदी अनुवाद तेजपाल सिंह धामा ने उसी रफ़्तार और रोचकता के साथ किया है जिस तरह से ग्रंथ के मूल लेखक द्वय ने किया है. यह सनसनीखेज वृत्तांत है पर डिलाइट फुल लेखन है जिसमें घटनाओं व्यक्तित्वों के चित्रण से पाठक ठहाके भी लगा सकता है और कई बार विभाजन के समय पंजाब व बंगाल में हुए मौत के तांडव का सजीव चित्रण देख पाठक रो भी पड़ता है. पुस्तक पूरी तरह पाठक को अपनी पकड़ और जकड़ में रखती है। इस तरह का लेखन साहित्य के टेबल और पत्रकारिता की डेस्क के बीच आवाजाही करने वाले लेखकों से ही संभव है जिनके पास समाजशास्त्रीय दृष्टि और अवधारणाएं हों तब डाटा संग्रहण के बाद कोई औपन्यासिक कथा तैयार होती है.
यह उपशीर्षकों में बंटी किसी माहवार डायरी की तरह लिखी गई किताब है. छः फुट से ज्यादा ऊँचे, बेहद खूबसूरत, हंसमुख, मिलनसार माउंटबेटन की नीति विशेषज्ञता को किताब के लेखक- माउंटबेटन का ‘वशीकरण अभियान’ कहते हैं… इसके ठीक उलट विंस्टन चर्चिल ने गाँधी को फिकरे कसते हुए ‘अधनंगा फ़कीर’ कहा था तब उनका वही अधनंगापन अंग्रेजों के लिए वशीकरण अभियान हो जाता था. इरविन समझौते की बैठक के बाद निकलते हुए गाँधी से किसी ने कहा कि ‘आप इतने कम कपड़े पहनकर यहां कैसे आ गए?” तो गाँधी ने मुस्कराकर जवाब दिया, “सम्राट जितने कपडे पहने हुए थे, वह हम दोनों के लिए काफी थे.”
एक लंगोटी और चप्पल पहने गाँधी जी अंग्रेजी के प्रसिद्द कवि रुडयार्ड किपलिंग की मशहूर कविता के पात्र गंगादीन की जीती-जागती तस्वीर लग रहे थे :
“सामने जो है वह न होने के बराबर है
और पीछे उसके आधे से भी कम
वह जो वर्दी पहनता था कुछ खास नहीं थी
बल्कि औरों की पोशाक से आधी थी
एक मुड़ा सुडा सा कुछ चिथड़ा
और एक बकरी के चमड़े से बना पानी का थैला
रणभूमि के लिए उसे पूरी सज्जा बस यही मिलती.
(गंगादीन, कविता का एक भिश्ती पात्र था जो युद्ध में घायल सैनिकों को पानी पिलाता था.)
इस ग्रंथ में छियालिस बरस के युवा माउंटबेटन ही वास्तविक हीरो हैं. जिन्होंने फकत छः महीनों में ही साढ़े तीन सौ बरस की अंग्रेजी अधीनता से भारत को आजाद कर दिखाया. इस पूरी फ़िल्मी कथा के समान चलने वाली भारतीय स्वतंत्रता की इस महागाथा में कई महानायक और कई खलनायक हैं. यहां प्यार, अलगाव, धमकी, वाकयुद्ध जैसे सारे सिचुएशन्स, इमोशन और ड्रामा हैं. एडविना जैसी खूबसूरत और होशियार शख्शियत की उपस्थिति किसी ‘ड्रीमगर्ल’ सा एहसास कराती है. लापिएर और कॉलिन्स ने बेहद सतर्कता के साथ तथ्यों को रखा है. नेहरू और एडविना के रिश्तों को उन्होंने गहरी आत्मीयता वाला बताया है और प्रेम संबंधों को अफवाह करार दिया है. बेटन दंपत्ति को जैकेट के तीसरे काज में गुलाब लगाये नेहरू आकर्षक और सुसंस्कृत लगते थे. उनके प्रसन्नचित्त व्यवहार से उन्हें बहुत आनंद मिलता था.
दोनों लेखकों की साझा कलम ने बहुत बारीकी से इतिहास के हर पहलू, राज़, साजि़शों और रियासतों का जिक्र किया है. महाराजाओं के दिलचस्प किस्से और उनके कुकर्मों, शर्मनाक हरकतों के क्रमबद्ध इतिहास को तो आज़ादी से पहले ही वायसराय ने जलवा भी दिया. प्रामाणिक ब्यौरों और उसकी विलक्षण रचना ने १९७५ में प्रकाशित इस ग्रंथ को सचमुच एक क्लासिक कृति बना दिया है, भारत को समझने वाली इस शानदार किताब को वर्ष २००८ में राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने डोमीनिक लापिएर को पद्मभूषण से नवाजा था. वे ९१ वर्ष की उम्र तक दीर्घायु रहे. लैरी कॉलिंस भी ससत्तर बरस तक जीये. इस बेस्ट सेलर रही किताब की रॉयल्टी जनकल्याण के लिए ‘सीटी ऑफ जॉय फाउंडेशन, कोलकाता को दे दी गई जिसकी स्थापना डोमीनिक लेपिएर ने ही की थी.
माउंट बेटन की मुख्य भूमिका वाली यह किताब हमें बताती है कि अंतिम वायसराय का रुझान बंटवारे के खिलाफ था. उन्होंने इसे ‘सरासर पागलपन’ कहा. भारत की आजादी और उसके बंटवारे पर चर्चा के लिए माउंट बेटन ने मुख्य रूप से जिन चार लोगों को चुना था. वे थे – गाँधी, नेहरू, पटेल और जिन्ना. इनमें बेटन नेहरू के प्रति पूरी तरह आश्वस्त थे जिनकी कार्य क्षमता और दृष्टि को जानते हुए वे अपने सिंगापुर कार्यकाल में उन्हें ‘भारत का होने वाला प्रधानमंत्री’ कह चुके थे. इस चौकड़ी में गाँधी, पटेल और जिन्ना तीनों गुजराती थे जो बेटन की दृष्टि में अनेक योग्यताओं के बाद भी भिन्न किस्म से अड़ियल और जिद्दी थे. इनमें गाँधी किसी भी तरह से देश टूटने न पाए इस जिद्द में रहे पर वे बचा न सके और देश टूटा. पटेल माउंट बेटन के आने से पहले ही विभाजन को मान लेने को तैयार थे ताकि यह हर दिन की बहस समाप्त हो और स्वतंत्र भारत का निर्माण कार्य शुरू हो. जिन्ना ने हिन्दू स्त्री रतनबाई से ब्याह किया था पर पाकिस्तान जिन्ना की जिद पर बना. गाँधी कहते थे कि “मैं अपने जीवनकाल में दो लोगों को नहीं समझा सका- एक अपने बेटे हरिलाल को और दूसरा अपने काठियावाड़ी साथी मुहम्मद अली जिन्ना को.” कराची की धरती पर उतरते विमान पर बैठी जिन्ना की बहन ने भावावेश में भाई का हाथ पकड़कर कहा… जिन्न… जिन्न… वह देखो पाकिस्तान.
आजादी आधी रात को पढ़ते हुए रात के बारह बज गए हैं. ऐसे ही १४ अगस्त १९४७ की एक रात को जवाहरलाल नेहरू की आवाज गूंजी थी… “बारह बजे रात को, जब पूरा विश्व सो रहा होगा तब भारत जीवन और स्वतंत्रता के स्वागत में अपनी ऑंखें खोलेगा.” यह सपना था भारत का, भारत के करोड़ों देशवासियों की बाट जोहती आँखों का, अपनी मुक्त धरती पर और खुले आकाश के नीचे रात के ठीक बारह बजे, जब आजादी की साँस ले रहे थे, तो जैसे सपना सच होकर उनके सामने खड़ा हो गया था.
गेटवे ऑफ इंडिया से फरवरी 1948 में ब्रिटिश सिपाहियों की भारत से अंतिम विदाई हो गई थी.
▪️▪️▪️
•लेखक संपर्क –
•90098 84014
🟪🟪🟪