कविता, शरद का चाँद नटखट- सरोज तोमर, भिलाई-छत्तीसगढ़
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शरद का चाँद नटखट !
शरद का चाँद नटखट ,हम अकेले ।
बड़ा सूना-सा पनघट ,हम अकेले ।
ये चुनर दूधिया है चाँदनी की ,
उड़ा जाता है घूंघट ,हम अकेले ।
तुम्हारी पग-ध्वनि देतीं हवाएं ,
संवरती ही नहीं लट ,हम अकेले ।
महकती रातरानी दे रही संदेश जैसे,
कमल का सिमटा संपुट,हम अकेले ।
ह्रदय की बात तुमने सुन ली शायद,
लो द्वारे पे आहट, हम अकेले ।