कविता : मेरा देश मेरा वतन – विद्या गुप्ता [दुर्ग छत्तीसगढ़]
•मेरा देश मेरा वतन
जैसे
पंच तत्वों से बना शरीर
प्राणों के बगैर
प्राणवान नहीं होता
ठीक उसी तरह
कोई भूखंड
आकाश का हिस्सा
हवा पानी धूप
देश नहीं हो सकता…
मेरा देश मेरा वतन कहते ही
रोमांचित हो उठे स्वर…..
प्रकंपित हो उठे प्राण
झनझना उठे
मन वीणा के तार
आंखों में चमक उठे
एक अग्नि दीप्ति…..
मेरा देश कहते कहते….
मेरा देश कहते हुए
पूरी देह नमन हो जाए
आकाश तक तन जाये
शीश का हिमालय
रक्त से आरक्त हो
चेहरे की शिराएं
मेरा देश कहते कहते
मेरा देश कहते ही
जाग उठे पूर्ण समर्पण
होठ चूम ले
मिट्टी का कण कण
फैली हुई बांह कर ले
हवाओं का आलिंगन
धड़कन की ताल पर
बजने लगे राष्ट्रगान
मेरा देश कहते ही
मेरा देश कहते कहते
सप्तसुर में बोलने लगे
प्राणों के स्पंदन
सारे जहां से अच्छा
हिंदुस्ता हमारा
गाते हुए आंखें भर आए
पुलक से भर जाए
रोमकण और
देह समाधिस्त हो जाए
मेरा देश कहते कहते….
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