करवाचौथ का चाँद -विक्रम ‘अपना’, अहिवारा-छत्तीसगढ़
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करवाचौथ का चाँद
(हास्य रचना)
चाँद को देखकर चाँद भी शरमाया था
करवाचौथ का त्योहार जो आया था
बीबी परेशान
शौहर अनजान
नाना पकवान
खुशियाँ वीरान
बादल भी आज क्यों घिर आया था?
करवाचौथ का त्योहार जो आया था
भूखे बेहाल
चूहे विकराल
देते थे ताल
बाजे झपताल
धी ना धी धी ना ती ना धी धी ना गाया था
करवाचौथ का त्योहार जो आया था
रात भी घिर गई
धीरज थी फिर गई
जुगत भी थी नई
बीबी थी वो भई!
बोली स्वामी! सुबह से कुछ नहीं खाया था
करवाचौथ का त्योहार जो आया था
फिर वो मुस्कुराकर
पूछे थी शरमाकर
देखो ना सर फिराकर
चाँद है दिखता निकलकर?
शौहर था बूढ़ा, घूमा; गंजा सर दिखाया था
करवाचौथ का त्योहार जो आया था
बीबी ने बतलाया
चाँद को दिखलाया
पूजा की फिर खाया
आखिर नज़र आया
गंजे का चाँद पूरा का पूरा निकल आया था
करवाचौथ का त्योहार जो आया था
करवाचौथ का त्योहार जो आया था
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