ग़ज़ल, जब भी चाहा आज़माना क्या करें हर दफ़े चुका निशाना क्या करें- नीलम जायसवाल, भिलाई-छत्तीसगढ़
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— ” क्या करें ” —
जब भी’ चाहा आजमाना क्या करें।
हर दफे़ चूका निशाना क्या करें।
हम सदा पिछड़े रहे संसार में-
बढ़ गया आगे ज़माना क्या करें।
दोस्तों के संग हम खेले कहाँ-
हमको’ था खाना पकाना क्या करें।
चाहते थे प्यार में पड़ना नहीं-
हाय! इनका मुस्कुराना क्या करें।
पाक हो या चीन गर सुधरे नहीं-
होगा’ नक्शे से मिटाना क्या करें।
मास्क नीलम बाँध कर रखना सही-
पीढ़ियों को है बचाना क्या करें।।