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- विशेष : सरलता, सादगी, सत्य, अहिंसा, प्रेम, भाईचारा और शांति उनका शस्त्र था : गाँधी को ढुंढने की आवश्यकता नहीं है, खुद गाँधी बनने की जरूरत है – लेखक गणेश कछवाहा
विशेष : सरलता, सादगी, सत्य, अहिंसा, प्रेम, भाईचारा और शांति उनका शस्त्र था : गाँधी को ढुंढने की आवश्यकता नहीं है, खुद गाँधी बनने की जरूरत है – लेखक गणेश कछवाहा
गाँधी जी ने कहा –
जिस सत्य की सर्वव्यापक विश्व भावना को अपनी आंख से प्रत्यक्ष देखना हो तो उसे निम्नतम प्राणी से आत्मवत प्रेम करना चाहिए।”जीव मात्र के प्रति समदृष्टि/ जीव मात्र के प्रति आत्मतुल्यता के जीवन दर्शन से सत्य, अहिंसा एवं प्रेम की त्रिवेणी प्रवाहित होती है। (सत्य की खोज)
ईश्वर अल्लाह तेरो नाम, सबको सन्मति दे भगवान
गांधीजी के शब्दों में-‘लाखों-करोड़ों गूंगों के हृदयों में जो ईश्वर विराजमान है, मैं उसके सिवा अन्य किसी ईश्वर को नहीं मानता। वे उसकी सत्ता को नहीं जानते, मैं जानता हूं।”ईश्वर अल्लाह तेरो नाम ,सबको सन्मति दे भगवान ।” और मैं इन लाखों-करोड़ों की सेवा द्वारा उस ईश्वर की पूजा करता हूं, जो सत्य है अथवा उस सत्य की जो ईश्वर है।
‘वैष्णव जण तो तेणे कहिये, जे पीर पराई जाणे रे’
गांधी जी ने अहिंसा परमो धर्म के सिद्धांत को अपनाया।इसके लिए मन की सफाई, आत्मा की पवित्रता पर जोर देते थे।स्वच्छता मायने झाड़ू लेकर बाहरी कूड़ा करकट की सफाई अभियान नहीं था। वे धर्म – संप्रदाय,जाति गत छुआ – छूत,ऊंच- नीच,और भेद – भाव को मिटाने आपसी प्रेम भाईचारा बढ़ाने की बात करते थे।
अहिंसा परमो धर्म के रास्ते पर आगे बढ़ते गए।जब उन्होंने कहा “कोई एक गाल पे चांटा मारे तो बदले में दूसरा गाल सामने कर दो।” अहिंसा का सर्वोत्तम उदाहरण प्रस्तुत किया।लोगों ने इसके मर्म को समझ नहीं पाए और आवेश कुछ नहीं बहुतायत इसे कायरता की संज्ञा से संबोधित किया।लेकिन प्रेम और सत्य को मानने वाले,ढाई आखर प्रेम के सिद्धांत पर चलने वाले लोगों ने उसे स्वीकारा। लगभग 129 देशों ने बापू के इस सत्य,अहिंसा, प्रेमऔर शांति का सम्मान करते हुए इस महात्मा की प्रतिमा,मूर्ति या डाक टिकट जारी कर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विशेष श्रद्धा व सम्मान दिया।कोई इवेंट या खुद के द्वारा मजमा लगाने या करोड़ों रुपए खर्च कर शो बाजी करने की या सम्मान पाने की कोईलफ्फाजी ,झूठी व्यू रचना या नाटक नौटंकी नहीं की।
उस समय, काल और परिस्थिति की कल्पना कीजिए देश गुलामी की जंजीरों से जकड़ा हुआ था भूख, गरीबी,अशिक्षा चरम पर थी और गुलामी से मुक्ति का आंदोलन चल रहा था,लोग शहादतें दे रहे थे,उन पर अमानवीय,बर्बरता पूर्ण ज़ुल्म ढहाए जा रहे थे और ऐसे विपरीत वातावरण में भी लोग धर्म,जाति,ऊंच – नीच ,छुआ – छूत आदि कुरीतियों को फैलाने का काम कर रहे थे। कुछ माफी नामा लिखकर स्वयं वीर बन रहे थे।वहीं एक शख्स कोट शूट बूट आदि को त्याग कर एक लंगोटी पहन कर एक तरफ़ स्वतंत्रता आंदोलन को गति दे रहा था दूसरी तरफ अपने देश को सत्य ,अहिंसा, प्रेम ,भाईचारा और शांति एकता अखंडता सौहाद्रता के साथ एकजुट करने का प्रयास कर रहा था । सत्य ,अहिंसा, प्रेम ,भाईचारा और शांति के पाठ को केवल देश ही नहीं पूरा विश्व पढ़ रहा था, उसकी ताकत को देख रहा था और बहुत कुछ सीख रहा था। कुछ लोगो को उनका यह सत्य, अहिंसा, प्रेम, भाईचारा और शांति का पाठ या कहें कि यह मार्ग पसंद नहीं आ रहा था।यहां तक आवेश में आ जाते हैं कि ऐसे महान शख्सियत गांधी की हत्या कर दी गई और विश्व में पहली आतंकवादी घटना या जघन्य हिंसा से मानवता दहल जाती है।पूरी दुनिया ने कठोर से कठोर शब्दों में निंदा की। हत्या को कभी कोई सभ्य समाज स्वीकार नहीं कर सकता और न ही कभी करेगी।
गांधी बहुत अच्छे वक्ता नहीं थे।बहुत सरल भाषा में सीधी सच्ची बात करते थे।यही सरलता, सत्य , अहिंसा, प्रेम , भाईचारा और शांति उनका शस्त्र था। आज के दौर में गांधी बहुत प्रासंगिक नजर आते हैं।आज देश को सत्य ,अहिंसा,प्रेम , भाईचारा और शांति की जरूरत है।इसके लिए गांधी को ढूढने की आवश्यकता नहीं है खुद गांधी बनने की जरूरत है।
गणेश कछवाहा
संपर्क : 94255 72284
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