व्यंग्य : ‘ घूमता ब्रम्हांड ‘ – श्रीमती दीप्ति श्रीवास्तव [भिलाई छत्तीसगढ़]
कभी-कभी सिर घूमने लगता है अपना शरीर अपने आपे में नहीं रहता चक्कर खाकर गिरने की नौबत आ जाती है । हमें तब ब्रह्मांड नजर आने लगता है । ऐसा ही अभी अभी पार्टी की लिस्ट जारी हुई जनाब ने पहले से अनेक तरह की अफवाहें उड़वा रखी थी कि क्या पता अफवाहों से ही कुछ काम बन जाय परन्तु जब तक सूची प्रकाशित नहीं हुई थी तब तक बहुत मज़े से बिना तनाव के दिन गुजर रहे थे अफवाहों की बदौलत जो सम्मान हमें मिल रहा था। उसका मजा ही कुछ और था । अरे अरे अरे आपको एक बात तो बताना ही भूल गए एक समारोह में जनाब बनकर मुख्य अतिथि गये थे खूब आवभगत हो रही थी भविष्य के संभावित काम के आदमी साबित होने की निन्यानबे प्रतिशत उम्मीद थी सो भाव भी आसमान पर था । मंच पर पदासीन थे फूलमालाओं से स्वागत हो रहा था एक टेबल पर मुख्य अतिथि को दिया जाने वाला बड़ा सा उपहार सुशोभित हो रहा था । उपहार को नजर भर देख जनाब ने तृप्ति की डकार ली । चुनाव में उम्मीदवारों की पार्टी लिस्ट आने की संभावना में जनाब का नाम आने की संभावना थी सो आगे की राह प्रशस्त करने उन्हें बाकायदा अभी से मक्खन लगाया जाने लगा ।
यह क्या लोगों में हलचल…. कार्यक्रम में कानाफूसी …. जिसने कार्यक्रम करवाया था उसने मुख्य अतिथि के भाषण के पूर्व ही अपरिहार्य कारणों से कार्यक्रम को स्थगित करने की घोषणा मंच से क्षमा मांगते हुए कर कार्यक्रम समापन की उद्घोषणा भी कर दी । न तो गिफ्ट भेंट स्वरूप दिया गया और न ही जनाब को ज्यादा महत्व । माहौल की हवा से कुछ कुछ आभास होने लगा था पर किया क्या जा सकता था । पहले से ही उनको ज्ञात था पर उजागर उसी समय होना था गिफ्ट वगैरह मिलने के पश्चात कुछ भी होता तो उन्हें जरा भी मलाल न होता । हाय री किस्मत इतने जतन करने के बावजूद साथ न दी । मंच पर ही सबको पता लगना था क्या ?आजकल सब उगते सूरज को सलाम करते हैं हम तो आभासी सूरज थे ब्रम्हांड के ।
अपना सा मुंह लेकर जनाब मंच से उतर अकेले बुझे थके सुस्त मन से घर को प्रस्थान करने निकल पड़े । अभी चमचों के झुंड नदारत थे नहीं उनकी पहनी फूल-मालाएं, गुलदस्ते भी वे बड़ी नजाकत से पकड़ घर पहुंचा पत्नी से कहते
” भाभीजी इनको कहा सजाना है बता दीजिए”
पत्नी चाटुकारों और गिफ्ट के बिना जल्दी आया देख समझ गई आखिर एक न एक दिन पोल तो खुलनी थी वह खुल गई आखिरकार कलई कितने दिन चलती ।
“हाय रे तकदीर इनको मंच से सम्मान तो विदा करती ”
दोनों पति-पत्नी घर के सब दरवाजे अच्छे से बंद कर हिसाब-किताब लगाने लगे ।
अफवाहों का बाजार गर्म कर कितनी कमाई और गिफ्ट इकट्ठे हुए । फिर आगे का प्लान क्या करना है ।
चलो जी कहीं विदेश घूम आते हैं लोगों को लगेगा नाराज हैं जनाब इसलिए कहीं चले गये । पार्टी पर दबाव भी बन जायेगा बाद में किसी न किसी मंडल का सदस्य या अध्यक्ष पद तो मिल ही जायेगा । इस बहाने हमारी विदेशी सरजमीं की सैर भी हो जायेगी ।
“आइडिया तो तुम गजब के देती हो हमारी अर्धांगिनी जी ।”
“आपकी सेकेट्री का काम यूं ही नहीं सम्हाला है मैंने । देखिये अफवाह फ़ैलाने का आइडिया कितना जबरदस्त था ।”
दो दिन बाद दोनों विदेश में सैर-सपाटा कर रहे थे।
यहां सब लोग सोच रहे थे जनाब का पत्ता कटने से नाराज़ हैं । कार्यकर्ता लोगों के बीच फुसफुसाहट थी आखिर जमीन से जुड़े थे जनाब उनको टिकट मिलने की पूरी संभावना थी । इस माया रुपी राजनीतिक ब्रह्मांड में किसी भी पल उलट-फेर यानि भूकंप आ सकता है।
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