- Home
- Chhattisgarh
- हास्य व्यंग्य : ‘ खुशियों की तलाश ‘ – दीप्ति श्रीवास्तव [भिलाई छत्तीसगढ़]
हास्य व्यंग्य : ‘ खुशियों की तलाश ‘ – दीप्ति श्रीवास्तव [भिलाई छत्तीसगढ़]
निकले थे खुशियों की तलाश में । सारा संसार छान मारा कहीं न मिली नामुराद । ऐसे छुप कर बैठी हम ढूंढते ढूंढते हांफने लगे । पिक्चर हाल गये पैसे लुटाकर खुश यह क्या … जब तक हाल में बैठे रहे मंहगे समोसे पापकार्न मुंह की डिमांड थी न कि पेट की । मुंह बड़ा चटोरा बस चलाने के कुछ न कुछ मिलना चाहिए । अगर कुछ न मिले तो बस जबान ही चला चला कर दूसरों को घायल कर हमारी मुसीबत खड़ी कर देता है । जबान की करामात तो पूछिए ही मत
नेताओं का भाषण चुनाव के समय मिश्री मिलाकर रहता है कि बस उनके जीतते ही हम जनता की खुशी का टोकरा भर छलकने लगेगा हाय री उनकी काली जुबान हमारी खुशियों पर टैक्स लगा कर अधमरा कर जीते जी मार देते है यह हैप्पीनेस क्या बला है हम सोचते ही रह जाते हैं । जबान को खुशियों से क्या लेना देना उसको अपना कोटा पूरा करना है कई बार तो बेचारे पेट की शामत आ जाती है । कभी दर्द से बेहाल होता है तो कभी दस्त से निहाल हो उठता है । फिर तो खुशियां ऐसे रूठकर मायके चली जाती है कि बस पूछिए मत क्योंकि जमा पैसा तो डाक्टर के पास अपने आप चलकर पहुंच जाता है । पैसा अंटी से निकला धनी गरीब कौन खुश रह सकता है भला । ऊपर से शरीर साथ देने से इंकार कर देता है अपनी जबान को काबू में नहीं रख सकते तो फिर मेरे से उम्मीद क्यों कर रहे हैं । मैं कोई चुनावी कैंडिडेट तो नहीं पैसा लेकर सामने वाले के फेवर में बैठ जाऊं । यहां मुझे तकलीफ हुई तो मैं क्यों दूसरे की बात मानूं । हमारी खोज चल ही रही थी खुशियों को कैसे हासिल कर अपनी तिजोरी में भर ताला लगा सहेज कर रखूं । जिससे वे हमेशा मेरे पास ही रहे किसी और के पास न जाने पाए यही तो है अपना घर भरते चलो दूसरों से क्या मतलब । खुशी के मामले सब स्वार्थी बन जाते हैं जरा सा खुश हुए और उसके बाद कोई दुख आ जाए तो हम बिसूरने लगते है हमारी खुशियों पर फलांना फलांना की नजर लग गई तत्पश्चात प्रारंभ हो जाता है नजर उतारने के तरीके बताने वालों का टोटका । किसी ने सुना नहीं कि नुक्सा बताने से कोई परहेज नहीं करता अरे जबान ही तो चलाना है कौन सा हमारा पैसा जेब काट कर देना है । किसी ने बताया आप तो चौराहे पर अपने ऊपर से ही नींबू उतार फेंके आओ अभी चुनाव का वक्त है सब लफंटर व्यस्त होंगे । किसी की नजर आप पर नहीं पड़ेगी आप का काम बन जायेगा खुशियों का दरबार फिर से सजने लगेगा। मरता क्या क्या न करता । खैर यह उपाय भी कर लिया पर खुशियों को लौट कर न आना था सो वे न वापस आई ।अब टिकट ही न पाये तो खुशी न रूठेगी बतायें आप ही कैसे कोई खुश रह सकता है ।इतने बड़े तो हम दिल वाले नहीं। तब किसी ने बताया कि राई लाल मिर्च अपने ऊपर से उतार गैस पर जला दो । हमने भी मिर्च को जलते बर्नर पर डाल दिया जो घर भर में मिर्च का ठसका लगा कि खांसते खांसते सब परेशान साथ आस-पड़ोस वाले भी खांसते हुए घर में सुंगघते हुए पहुंच गए कि इतनी तेज नजर किसको लगी है । हम भी नई नवेली दुल्हन की तरह शर्माते हुए कहने को उद्धत हो ही रहे थे कि पत्नी जी ने बात पर मलहम पट्टी लगा बोली अरे बात कुछ ऐसी है….. उन्होंने बात का सिरा दूसरी ओर मोड़ दिया । कौन जाने कौन सी पार्टी को बात बुरी लग जाय रहना तो इसी मुहल्ले में है । कौन सी पार्टी जीत कर सरकार बनायेगी कह नहीं सकते इसलिए हम किसके पक्ष में मतदान करेंगे बताना नहीं । नहीं तो बाद में वही जीत का सेहरा बांध पांच साल हमारी खुशियों को छिन्न-भिन्न करने से नहीं चूकेगी । अभी खुशियों की तलाश जारी है कि निर्दलीय ही चुनाव मैदान में उतर कर खुशी हासिल कर लें । आखिर हमारे भी तो तीन समर्थक हैं जो हमारे घर के ही हैं बेटी ने अभी अभी मतदान का अधिकार हासिल किया है यही हमारे लिए खुशी की बात है।
• संपर्क –
• 94062 41497
🤣🤣🤣🤣🤣🤣