नवरात्रि पर विशेष कविता ‘ माँ ‘ – डॉ. मंजुला पांडेय [नैनीताल उत्तराखंड]
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माँ
मां आती है पास
धरती के जीवों के लिए
कण कण को तृप्त
करने के लिए
देती है आशीर्वाद
फलने फूलने के लिए
संताप मिटाने के लिए
गले लगाती है
खूब प्यार करने के लिए
जी भर कर दुलार
करने के लिए
सजती है संवरती है
नए-नए वस्त्राभूषण पहनती है
उनके चेहरों में चमक देखने
व देने के लिए
आती है मां धरती पर
अपने बच्चों की
खोज खबर लेने के लिए
उनके हालात जानने के लिए
पुकारते हैं जब
उसके बच्चे उसे
करते हैं जब आर्तनाद
हो जाते हैं व्याकुल
बेचैन व बेताब
उससे मिलने के लिए
छटपटाते हैंजब
मुक्ति के लिए
बहने लगती है जब
अश्रुधारा निरंतर आंखों से
नहीं दिखाई देता है
जब किनारा
कोई भी सहारा
सारे संसार में
फंस जाते हैं जब मंझधार में
हो जाते हैं बेबस व असहाय
दिखाई दे जाती है तब
उन्हें अपनी मां की
ममतामयी, करुणामयी मूरत
आ जाती है तब
हां ,आ जाती है वह
अपने दिव्य तेज के साथ
रख देती है पांव धरती
नवरात्रि में
सुनाई देने लगता है
मधुर स्वर पायल के
घुंघरुओं का
मंदिरों में शंखनाद का
गूंज उठती है दिशाएं
समाहित हो जाता है जिसमें
सारा का सारा संसार
नतमस्तक हो जाती हूं मैं ।
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