इन औरतों पर कोई कविता नहीं बनती- डॉ. सोनाली चक्रवर्ती
ये औरतें
जो सोचती रहती है
सहमती है
घिरती है हमेशा इसी चिंता में
कोई नाराज तो नहीं
आप नहीं मानते?
वह देखिए
तीज मिलन समारोह में सीधे बालों वाली वह औरत जो बार बार,बात बात पर हंस रही है
पहना है उसने आज चटकदार लहंगा बेटी के कहने पर
कुछ घंटे घर से बाहर रहने की अनुमति की कीमत उसने कुछ ऐसे चुकाई
दिन भर लगा कर घर भर की पसंद का पहले खाना बनाई
परंतु मन है कि बार-बार कहीं भटक रहा
एक सवाल सीने में अटक रहा
आज शाम 4:00 बजे सास को चाय बना कर नहीं दे पाएगी
सास नाराज तो नहीं
एक और औरत की बात सुनिए
उस दिन मार्च के महीने में पति गंभीरता पूर्वक घर की अर्थव्यवस्था पर भाषण दे रहे थे
खर्चे कहां और कैसे कम करना है समझा रहे थे
वह तीखी धूप में सड़क किनारे पत्थरों के बीच खिले एक छोटे से पीले फूल को देख
हंस पड़ी
पति नाराज तो नहीं ?
भाई बाइक पर कॉलेज जा सके
मां के अधूरे सपने पूरे कर सके
पिता का नाम रोशन कर सके
इसलिए यह मूर्खता की हद तक भावुक लड़की
घर घर पैदल जाकर ट्यूशन करती है
आज सुबह गुस्से के बावजूद मिमिआते हुए कह दिया
कम से कम एक सायकल भी नहीं होगी तो दूर के ट्यूशन कैसे लूंगी
पापा नाराज तो नहीं?
भाई नाराज तो नहीं ?
फूफा जी नाराज तो नहीं ?
मामा जी कुछ कहेंगे तो नहीं?
पड़ोसी कुछ समझेंगे तो नहीं?
मन में इन सवालों का बोझ लिए फिरती
दिन रात इन्हीं चिंताओं में है घिरती
यह अपने मन का कभी कुछ नहीं करती
अपनी नाराजगी अपने ही मन में भरती
इनकी कभी किसी से नहीं ठनती
यकीन मानिए
इन पर कोई कविता नहीं बनती
【 डॉ. सोनाली चक्रवर्ती ‘स्वयंसिद्धा’ की प्रमुख हैं एवं ‘छत्तीसगढ़ आसपास’ ग्रुप की संपादकीय बोर्ड ऑफ डायरेक्टर की सदस्य हैं. 】