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व्यंग्य : ‘ उसका छक्का ‘ : श्रीमती दीप्ति श्रीवास्तव [भिलाई छत्तीसगढ़]
रातों की नींद गायब हो कहां घूमने जाती थी सारी रात इस चिंता में निकलती किस्मत क्या गुल खिलाएगी । दिल की धड़कनें अब थम गई लिस्ट निकली नामांकन भी गाजे-बाजे दल बल के साथ अपने बाहुबल का प्रदर्शन करते हुए हो गया । अब तो निश्चित हो गया कौन कौन चुनाव में उतरा है और अपने प्रचार प्रसार के लिए गली मुहल्लों कूचे कूचे छान रहे हैं जहां कभी न रखते थे कदम वहां पड़ रहें कदम । आज का कदम ही अगले पांच साल के भविष्य की यात्रा का सुखद या दुखद बनाने वाला होगा । समर्थक संग भैयाजी ने जोर-शोर से चुनावी अभियान का शुभारंभ कमजोर तबके से करने की सोची वैसे भी मध्यम वर्गीय तबका पढ़ा लिखा समझदार होता है उनका माइंड सेट रहता है प्रत्याशी के कच्चे चिट्ठे का रसपान इन दिनों उन लोगों का प्रिय सगल होता है जहां इकट्ठे हुए चार जन चल पड़ी चुनावी चर्चा कैसा है कौन है हम मध्यमवर्गीय को लेकर चलेगा कि नहीं हमारे सिस्टम में बीच वाले बड़े बुरी तरह पीसते है जैसे गेंहू के संग घुन वैसे ही बेचारगी की चादर ओढ़े मध्यम वर्ग । उसकी तो कोई पूछपरख ही नहीं किस्से न गढ़े तो क्या करे । धनाढ्य वर्ग का तो अपना प्रत्याशी होता है इसलिए कोई भी आये या जाये उनको ज्यादा फ़र्क नहीं पड़ता ।
भैयाजी ने शहर के तीर पर बसी नई बस्ती से अभियान का श्रीगणेश करने की इच्छा समर्थकों से जाहिर की । पहुंच गए दल बदल सहित सुखिया के झोपड़ी में , सुखिया के तो दिन फिर गये । हक्की बक्की सुखिया कुछ संज्ञान लेती वोट देने की गुहार लगाते प्रत्याशी के समर्थक पर्चा बांट ही रहे थे कि सुखिया ने करूण विलाप शुरू कर दिया । अपनी दारुण अवस्था को इसकी जिम्मेदार बताया आनन-फानन में सुखिया का घर राशन-पानी से लबालब भर गया वह कई महिने आराम से रोटी तोड़ सकती थी । फिर जैसे ही इन लोगों ने अपनी बात कहना प्रारंभ किया बोलने लगी – ‘हम कैसे बोट डाले हमारा तो नाम ही नहीं यहां पर ‘ पूरा दल इस बात से सकपका गया पहला घर तिस पर पैसा लुटा राशन भरवाया और अब बता रही है । भैयाजी की ओर सब की नजरें थी उन्होंने आंखों से समझा दिया । कोई पंग न लेना इस समय मिडिया ,सोशल मीडिया सुंघते हुए पहुंच गये तो बंटाधार हो सकता है । दिमाग क्रोध में भैयाजी का उफन रहा था फिर भी वाणी में मिठास घोल बोले -‘ कोई बात नहीं अम्मा दूसरों को हमारे को इस छाप पर सील लगाने बोलना ।’
उनके जाते ही अम्मा ठठामार जोर जोर से हंस रही थी । हंसी की आवाज सुनकर पड़ोसी आया
‘क्यों इतना हंस रही है ।’
‘आज मैंने छक्का मारा ‘
पड़ोसी विस्फृत नेत्रों से सुखिया को देखा
वह पूरी रामकहानी एक सांस में सुना दी ।
उधर नेताजी के चमचे उनकी बुद्धि की बलिहारी लिए जा रहे थे हाथ से छूटे तीर को भी कैसे निशाने पर पहुंचा दिया । भैयाजी की बुद्धि के ऊपर वाले भी कायल हैं इसलिए तो टिकट मिला । इधर भैयाजी मन ही मन सोच रहे थे इनको क्या पता टिकट पाने जूते के तले घिसकर पेंदे में छेद कर गये । प्रतिष्ठा बरकरार रखने यह सब सात तालों में बंद रखना पड़ता है।
सुखिया बड़े पर्दे पर मैदान में क्रिकेट मैच क्या देखकर आई की वही भाषा बोलने लगी । कहती हैं चुनाव ही तो नेताओं की पिच है। ग्यारह खिलाड़ी उनके समर्थक । हम बाल है रन बना दिया तो जीत गए वरना विपक्षी टीम ज्यादा रन बना उनको मैदान से बाहर का रास्ता नापवा देगी। कॉमेंटेटर आज का हाथ में पकड़ा हुआ मोबाइल है जो खबरों की चुगली किए फिरता है विडियो लाइव ब्राडकास्ट करता है ।
मैं तो चुनाव के समय अपने गांव जाकर अपने जातबंध को वोट दूंगी तो हुआ न यह छक्का । हमको बहुत बुद्धू बनाया अब तो हम भी चालाकी सीख गये शहर आकर वरना पहले तो हम भोले भाले निश्छल थे जिसने जैसा बोला उसकी बात सिर आंखों पर । अब सामान भी हथियाते साथ अपने मनमर्जी का करते हम मतदाता हैं हम पर किसी का जोर नहीं चाहे कितना भी मचाओ शोर ।
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