लघु कथा, फ़्री हो क्या ? -शुचि ‘भवि’
फ़्री हो क्या? फोन उठाते ही यह प्रश्न सुन मीटिंग में बैठी डायरेक्टर रैंक की प्रीतो ने उत्तर दिया,नहीं अभी नहीं , मीटिंग में हूँ, कुछ देर में कॉल करती हूँ।फोन उसकी प्रिय सहेली शिल्पा का था।प्रीतो ने कारण भी नहीं पूछा था,न ही ज़रूरत पर ध्यान दिया था।शिल्पा यदा कदा ही, अति आवश्यक होने पर ही फ़ोन करती थी, उसे पता था कि प्रीतो, घर-परिवार और ऑफ़िस में अति व्यस्त रहती है।पंद्रह दिन पहले भी उसने फोन किया था प्रीतो को,और पाँच मिनट में करती हूँ शिल्पा,वाला फोन आज तक नहीं आया था।कल शाम भी शिल्पा ने प्रीतो को फोन किया था मगर घंटी बज बज कर बंद हो गयी थी।
शिल्पा और प्रीतो विचारों की समानता के कारण कब इतनी पक्की दोस्त बन गईं,दोनों को ही पता नहीं चला था।पहले घर आसपास होने के कारण, मिलना अक्सर हो जाता था, मगर पिछले दो वर्षों से कुछ किलोमीटर की दूरी ही छह माह जितनी लम्बी हो गयी थी।व्यवहार में प्रीतो,शिल्पा जितनी कुशल नहीं थी।वो काम को प्राथमिकता देती थी, रिश्तों को नहीं जबकि शिल्पा के लिए रिश्ते-एहसास-अगले की भावनाएँ सर्वोपरि थीं।
चार दिन बाद ऑफ़िस में लंच लेते वक़्त अचानक प्रीतो को याद आया कि शिल्पा का फोन आया था और खाना खाते खाते उसने शिल्पा का नंबर डायल किया।फोन शिल्पा के बेटे ने उठाया और नमस्ते मौसी बोला ही था कि प्रीतो ने कहा शिल्पा को फोन दो, मुझे बहुत काम है अभी मैं ऑफ़िस में हूँ बेटे।मौसी, माँ तो कल चली गईं।आपके लिए एक लेटर छोड़ गई हैं, बोली थीं पोस्ट मत करना, प्रीतो आएगी जब कभी भी, तब दे देना।
लेटर, वो क्यों, आजतक तो लेटर वेटर उसने लिखा नहीं, फोन कर लेती,कब आएगी,आएगी तो कहना फोन करेगी मुझे।प्रीतो इतना कह कर फोन रखने ही वाली थी कि शिल्पा के बेटे ने धीरे से कहा, माँ तो भगवान के घर गईं, अब नहीं आएँगी, आप लेटर ले लीजियेगा मौसी।माँ कह रहीं थी, आप बहुत बिज़ी रहती हैं, पता नहीं लेटर भी पढ़ेंगी या नहीं, फिर भी लिख ही देती हूँ।
प्रीतो ने फोन कब रखा औऱ कब वो शिल्पा के घर पहुँची उसे ख़ुद भी मालूम नहीं था।
लेटर के साथ शिल्पा और प्रीतो की एक तस्वीर भी थी जो उसकी बेटी ने बनाई थी जिसे शिल्पा अपने हाथों से प्रीतो को देना चाहती थी।
लेटर में सिर्फ़ चार की लाइनें लिखीं थी।
प्रीतो,काम ज़रूरी है मगर एहसास भी।
जा रही हूँ बिना मिले, तुम अति व्यस्त जो रहती हो।
15 दिन पहले ही पता चला था,कैंसर का,बताना तो चाहा था मगर बात न हो सकी।
रोना मत बिल्कुल और ख़ुद को दोष भी मत देना,ज़्यादा नहीं लिखती,तुम्हारे पास समय कहाँ होगा पढ़ने का।
तुम्हारी शिल्पा