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छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2023 : राजनैतिक विश्लेषण – गणेश कछवाहा
विधानसभा सभा चुनाव 2023 के दूसरे चरण का मतदान 17 नवंबर को होना है। चुनाव प्रचार अंतिम चरम पर है। प्रमुख राजनैतिक व कुछ निर्दलीय प्रत्याशियों के प्रचार अभियान और उनके चुनावी वचनों से लोग इस दुविधा में जरूर पड़ गए हैं कि इतना भारी भरकम खर्च करके अचानक समाज सेवा का जुनून और समाज सेवा करने की इतनी तड़फ क्यों और कैसे उत्पन्न हो गई है? समाज सेवा के लिए इतना खर्च करके विधायक बनने की जरूरत क्यों पड़ी है? क्या समाज सेवा के लिए विधायक बनना जरूरी है? कहीं समाज सेवा की आड़ में और कुछ और तो नहीं है? एक बड़ी पार्टी के बड़े नेता जहां भी जाते हैं अपने भाषण में कहते हैं तुम इनको जिताओ मैं इन्हें बड़ा आदमी बनाऊंगा, ये बडे़ बोल लोगों की दुविधा को और अधिक बढ़ा देते हैं कि उम्मीदवार समाज सेवक बनने की बात कर रहा है और उनके पार्टी के गॉडफादर बड़ा आदमी बनने की बात कह रहे हैं ,आखिर माजरा क्या है ? मतदाताओं में चर्चा का विषय बना हुआ है।
यह चर्चा भी आम हो गई है कि भारत की सर्वोच्च प्रशासनिक सेवा ‘ आई ए एस ‘ का पद त्याग कर राजनीति में आकर कौन सी और क्या उत्कृष्ट समाज सेवा करना चाहते हैं ? यह निर्णय क्या विद्वतापूर्ण है ? यह सवाल हर व्यक्ति के मस्तिष्क को झकझोर रही है, लेकिन सब निरुत्तर हैं। बड़ी बड़ी घोषणाएं और वायदे भी किए जा रहे है । लोगों का कहना है कि सन 2014 के वायदे और घोषणाएं जब जुमले बाजी और फेकूं शब्दकोश के श्रृंगार हो गए।केंद्र और जिन राज्यों में सरकार है वहां लोगों को यही जुमले बाजी और फेकूं दो नए शब्दकोश ही मिले हैं । विश्वनीयता और भरोसा को कुचल दिया गया है।तो वर्तमान घोषणाएं और वायदों के विश्वनीयता पर बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह खड़ा होना स्वाभाविक है।
छत्तीसगढ़ में 15 वर्षों का शासन काल लोगों ने देखा भी है और भोगा भी है।केवल प्रमुख तीन लोगों ब्रजमोहन अग्रवाल, राजेश मूणत और रमन सिंह के हाथों में पूरे छत्तीसगढ़ की बागडोर थी। मूल छत्तीसगढ़िया की प्रमुख भागीदारी और छत्तीसगढ़ की कला संस्कृति गौण थी।पूंजीपति ,बड़े ठेकेदारों और नौकरशाहों का गठबंधन हावी दिखाई पड़ रहा था।विकास के नाम पर मानवीय मूल्य और जीवन को दरकिनार कर अंधाधुंध अनुयोजित उद्योगिक करण ने जल,जंगल और ज़मीन का बेतहासा दोहन व शोषण कर छत्तीसगढ़ के भागौलिक,ऐतिहासिक ,सांस्कृतिक और मानवीय जीवन स्वास्थ्य का भूगोल व विज्ञान ही बिगाड़ दिया है।
विद्वतजनों के बीच यह गंभीर विमर्श का विषय बना हुआ है कि संसद की मर्यादा और सामाजिक नैतिक व मानवीय मूल्यों,धार्मिक सद्भाव शांति, संवैधानिक संस्थाओं, लोकतंत्र और संविधान के संरक्षण की जरूरत पर जोर दिया जाना वर्तमान समय की बहुत जरूरत है। इन सब सवालों के बीच घिरे रहने के बावजूद ओ पी चौधरी धुंआधार चुनाव प्रचार अभियान में सबसे आगे हैं। बहुत ही सुनियोजित ढंग से आधुनिक और परंपरागत सभी माध्यमों का बखूबी उपयोग कर रहे हैं और अभियान में सबसे आगे चल रहे हैं।सबसे बड़ा सवाल है यह सब वोटों में तब्दील होगा या नहीं या सवालों के मध्य घिर जाएगा।
दूसरी तरफ पांच साल का शासन काल है। लोगों का कहना है कि स्थानीय उम्मीदवार कोई भी हो, कैसा भी हो पर छत्तीसगढ़ सरकार ने छत्तीसगढ़ की कला संस्कृति,सभ्यता, खानपान,रहन सहन,मूल निवासियों के सम्मान और गौरव को पूरे वैश्विक जगत में विशिष्ट पहचान दिलवाने और स्थापित करने में सफल हुई है।नरवा गरवा घुरवा बाड़ी के विकास की सोच ,गौ धन से गोठान की परिकल्पना को साकार कर आय स्त्रोत का आधार बनाने की पहल ,देश में नए अर्थशास्त्र के नवीन मॉडल का चर्चा का विषय बना हुआ है।अन्य राज्य और देश के लोग रिसर्च कर रहे हैं।मूल निवासियों का भी सम्मान ,बस्तर के एक ठेठ ग्रामीण आदिवासी कवासी लखमा को मंत्री बनाना भी अच्छी पहल आम चर्चा में है।यह स्थिति लगभग पूरे छत्तीसगढ़ का चुनावी परिवेश है।भूपेश बघेल सरकार की कार्यशैली का प्रभाव अच्छा प्रतीत हो रहा है जिससे कांग्रेस की स्थिति मजबूत दिख रही है।
रायगढ़ के मतदाता काफी असमंजस में हैं।भूपेश बघेल ने घोषणा की रायगढ़ को संभाग बनायेगें। सामाजिक कार्यकर्ता में आश्चर्य और चर्चा विमर्श हो रहा है की संभाग तो ठीक है लेकिन रायगढ़ में जीवन जीने के लिए खतरनाक प्रदूषण से मुक्त जिला होना जरूरी है क्या इस तथ्य से मुख्यमंत्री अनभिज्ञ हैं। लेकिन इन सब के बीच एक चर्चा विचार विमर्श भी अहम है वह है विचारधारा का अंतर्द्वंद , एकतरफ गांधीवादी विचारधारा है दूसरी तरफ गोडसे की पूजा करने वाली तथा आर आर एस की विचार धारा है।एकतरफ देश में नफरत,हिंसा, घृणा और असत्य की राजनीतिक विचार धारा है,दूसरी तरफ प्रेम, भाईचारा,सद्भाव,अहिंसा, सत्य और शांति की विचारधारा है।जनता सब जानती है के तर्ज पर विश्लेषण कर रही है।वैसे जनता कई हिस्सों बटी हुई नजर आ रही है।
कुछ निर्दलीय प्रत्याशी भी है इसमें दो प्रमुख प्रत्याशी प्रमुख राजनैतिक दलों के बागी प्रत्याशी हैं।इनका अपना अपना समीकरण है।एक जातीय आधार तथा पंचायत कार्यशैली पर उम्मीद लगाए है और एक धन बल पर आधारित है।और एक निर्दलीय प्रत्याशी संघर्षशील व्यक्तित्व है।इन सबसे एक बात स्पष्ट नजर आ रही है कि ये तीनों चुनाव परिणाम को कुछ तो प्रभावित कर सकते हैं।
अब देखना यह है कि विजय का सेहरा किसके सर पर बंधता है। कुछ भी हो जनता सबकुछ जानती है अंततः लोकतंत्र मजबूत,समृद्ध और विजयी होगा ।जागरूक व मजबूत लोकतंत्र, खुशहाल और समृद्ध राष्ट्र के निर्माण को सुनिश्चित करता है।इसलिए लोकतंत्र के उत्सव में संवैधानिक अधिकार प्राप्त नागरिकों को मतदान अवश्य करना चाहिए।इसी उम्मीद और विश्वास के साथ कि लोकतंत्र को और अधिक मजबूत व समृद्ध करने हेतु समस्त नागरिक संविधान के तहत प्राप्त अपने मतदान के अधिकार का पूर्ण उपयोग आगे बढ़ चढ़ कर करेंगे।सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तान हमारा।
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