लघु कथा, दो दिये- महेश राजा, महासमुंद-छत्तीसगढ़
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कालोनी में पिछले दिनों ही एक बुजुर्ग की मौत हुई।वे बहुत भले इंसान थे।चारों तरफ मातम पसरा था।
त्योहार था।सभी घरों में साफ सफाई हो रही थी।परंतु एक घर में पूर्ण अंधेरा था।
सामने के परिवार का बच्चा लाइट डेकोरेशन की जिद कर रहा था और फटाके भी चलाना चाहता था।
घर के बुजुर्ग ने सबको समझाया था कि पडोस में मातम है तो हमें इस बार बहुत सादगी से त्योहार मनाना है.हाँ दिये जरूर जलाना है।बच्चे को समझाया गया कि दूसरी कालोनी में मित्र के यहाँ जाकर थोडीदेर तक फूलझडी चलाना।बच्चा मान गया।
परिवार के मुखिया ने घर की बहु को निर्देश दिये कि पडोस वाले घर पर दो दिये जरूर जलाये।आखिर अंधेरा जो मिटाना है।
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