- Home
- Chhattisgarh
- लघुकथा : तारकनाथ चौधुरी
लघुकथा : तारकनाथ चौधुरी
▪️ एकलव्य बोल रहा हूँ
प्रात-भ्रमण के बाद चाय की गुमटी पर बैठकर अदरक वाली चाय पीना और मोबाइल पर आये संदेशों को पढ़ना-मेरे और अरुण के लिए जैसे जीवन का अनिवार्य अंग हो गया है।आज भी हम दोनों अपनी-अपनी मोबाइल पर,चाय की चुस्कियाँ लेते हुए ये रुटीन वर्क कर रहे थे लेकिन अरुण बार-बार बाधित हो रहा था-एक अननोन नंबर की काॅल से।उसकी झुँझलाहट देख मैंने कहा-“अब अगर उसी नंबर से काॅल आये तो उठा लेना…हो सकता है किसी को तुम्हारी ज़रुरत हो या फिर कोई प्रशंसक हो।तुम्हारा शिष्य भी तो हो सकता है।”मेरी बात को विराम लगते ही अविराम घंटी बजने लगी अरुण के मोबाईल की और स्क्रीन पर वही नंबर फ्लैश होने लगा।इस बार अरुण खीझते हुए फोन उठाया और बड़े रुखे ढंग से कहा-“क्यों परेशान कर रहे हैं भाई?कौन हैं आप?” उधर से आवाज़ आई-“मैं एकलव्य बोल रहा हूँ।” “प्रणाम गुरूवर!”श्रद्धासिक्त इस संबोधन शैली ने अरुण के अधर, मुस्कान की एक हल्की लकीर खींच दी थी,और लहजे में नरमी भी ला दी थी।अरूण ने स्वाभाविक ढंग से कहा-“मगर हम तो द्रोणाचार्य नहीं,हमारे लिए ये श्रद्धा के भाव किसलिए?”
उस अपरिचित एकलव्य ने विनम्रता से कहा-“मैंने भी महाभारत काल के एकलव्य की तरह आपसे छंद-ज्ञान सीखा है,और अपनी भावनाओं को आपके अनुशासन में नियंत्रित कर पुस्तक का रुप दिया है।” “प्रकाशन पूर्व आपका आशीर्वाद पाने और गुरू दक्षिणा देने की उत्कट अभिलाषा है।”
एकलव्य की सम्भाषण-कुशलता से सम्मोहित अरुण ने
प्रत्युत्तर में उसे अपने निवास पर आने का आमंत्रण दे दिया और दक्षिणा देने की इच्छा को घर पर ही छोड़ आने का सख्त निर्देश भी दे डाला।
हम अब चाय की गुमटी से उठकर घर की ओर लौट रहे थे।अरुण रह-रहकर मुस्कुरा रहा था,शायद उसके कानों में प्रतिध्वनित हो रही होगी-“एकलव्य बोल रहा हूँ।”
[ •तारकनाथ चौधुरी सेवानिवृत व्याख्याता हैं. • ‘ छत्तीसगढ़ आसपास ‘ के नियमित लेखक हैं.
– संपर्क : 83494 08210 ]
🟥🟥🟥🟥