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कवि इंदुशंकर मनु के काव्य संग्रह ‘ प्रश्न शेष है… ‘ पर एक दृष्टि – विद्या गुप्ता
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बहुत कुछ कहता हुआ गीत संग्रह ‘ प्रश्न शेष है…’
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‘प्रश्न शेष है…’!! कवि इंदुशंकर मनु : मनु के अंतर विभिन्न आयामों से जुड़कर उत्तर खोजते प्रश्न…
•इंदुशंकर मनु
क्या रामायण पूरी हुई…..?
क्या महाभारत अधूरी है…..?
क्या मणिपुर में घटी घटनाएं सिर्फ घटनाएं थी….?
. इतिहास से लेकर वर्तमान तक…. सीता, उर्मिला द्रौपदी, यशोधरा या मणिपुर की स्त्री के साथ न्याय हुआ…..
अंधे धृतराष्ट्र और दुर्योधन के अंधा न्याय से जुड़ा कवि का आक्रोश का बयान है
प्रश्न शेष है गीत संग्रह …
.उत्तर खोजता अंतर्द्वंद का दस्तावेज…..
पीड़ा से उपजा होगा गान …. लेकिन कवि केवल वेदना का पक्षधर नहीं है अलबत्ता कविता के केंद्र में प्रेम को आवश्यक बताया है। उनके गीतों में आक्रोश विरोध और शिकायत स्वरों की बांनगी मिलेगी ।
प्रेम रिश्तो और भावनाओं का ऐसा गुलदस्ता है जिसमें जीवन के सारे रंग समाए हुए हैं। प्रेम राष्ट्र के प्रति, मानवता के प्रति, मनुष्य का मनुष्य के प्रति….. जहां भी खाई देखी कवि ने प्रेम के सेतु की बात कही.
इस संग्रह में प्रेम की विभिन्न झांकियां है
गीत केवल साहित्य की एक विधा ही नहीं…!! जीवन की आदिम गुनगुनाहट…..
शब्द हीन स्वर में गाई मां की ममता भरी थपक …..लोरी पहला आदिम गीत ….
सुधियों और स्मृतियों के आरोह अवरोह पर तैरते आभास है गीत
पीड़ा के मंथन से निकला हुआ नवनीत
और वेदना, करुणा स्नेह के वाद्यों पर गूंजता अनुराग है गीत
गीतों में कहीं आंसुओं का स्पर्श,. कहीं दुआ की छुअन,….कहीं दर्द की निशब्द व्याख्या कहीं संकल्प की शपथ…. कभी क्रांति की हुंकार, कहीं समर्पण की अरदास भी है ……कहीं भक्ति कहीं मुक्ति कहीं मौसम की मस्ती है गीत…..¡
लेकिन जहां प्रश्नों की बात आती है वहां गीतों में भी कटीले चुभते प्रश्न आधार बन जाते हैं। यह सारी चीज सिर्फ प्रश्न बनकर उभरती हैं जहां लेखक का स्वर विद्रोही हो जाता है, जब चारों ओर से प्रश्नों का सैलाब उभरता है तब इन गीतों का स्वर बदल जाता है….. चाहे इतिहास हो चाहे वर्तमान मगर हर ओर….. प्रश्न ही प्रश्न और उत्तर की तलाश ….उत्तर के लिए छटपटाहट वहां गीतों का स्वर बदल जाता है
कभी दिवस थे अमलतास से
गुलमोहर सी मस्ती थी
फागुन की बोराई गलियां
महुआ की बस्ती थी
उषा पहनती सुबह चूड़ियां
शाम सितारों वाली थी
मेरा भी एक चमन कहीं था
मेरी भी दिवाली थी
तुम तो घर छोड़ चले गौतम
बेसुध गोपा सोई थी
मैं घर छोड़ राहुल रोया
मेरी रानी रोई थी…. 21 पृष्ठ
इन उद्गारों में यशोधरा की पीड़ा को अंकित किया तो
शीर्षक रचना ……प्रश्न शेष है की बानगी देखिए…..
अंतर मेरा पूछ रहा है
नहीं पथ पर सूझ रहा है
जीवन में यह प्रश्न शेष है
परिभाषा का कौन वेश है
उपालंभ है यह जीवन का
या निर्णय है अनुशीलन का
…. विश्वास और परस्पर संबंध को लेकर कवि की धारणा है
मन चातक सा विश्वासी था
यह चांद मगर बेईमान हुआ
श्रद्धा के मैंने सुमन दिए
यह कलयुग का इंसान हुआ
कवि मन का आक्रोश सिर्फ कवि का ही नहीं बल्कि समाज से प्रश्न पूछता है उत्तर की खोज करता है कहीं झकोरता भी है संग्रह में 35 गीतों का समावेश है सुंदर प्रभावशाली मुखपृष्ठ और सुंदर मुद्रण है कवि की भाषा साफ और अगले प्रश्नों को खोलती हुई है.
•विद्या गुप्ता
•संपर्क :96170 01222
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