लघुकथा, उधार की सांसें -विक्रम ‘अपना’
ये छोटे लोग हैं।
इनसे दोस्ती मत करो। पड़ोस के मंगलू मजदूर की बेटी राधा की ओर इशारा करते हुए ऐश्वर्या की मम्मी ने कहा।
पर…..ये छोटे कहाँ हैं? उसकी मम्मी भी तो आपकी जितनी बड़ी है। अचार के जार को तो ऊंचे रैक से वह भी निकाल लेती हैं।
देखो बहस मत करो। मैंने कहा दिया ना बस!!! कहते हुए उसकी मम्मी उस पर फट पड़ी।
ऐश्वर्या बचपन से दिल की मरीज थी। डॉक्टरों ने उसके हार्ट ट्रांसप्लांट की सलाह दे दी थी।
समय बीता। अब राधा और ऐश्वर्या बड़ी हो गयी थी।
मंगलू के पिता प्रवासी मजदूर थे। त्योहार मनाकर, वह खचाखच भरी बस में परिवार के साथ दिल्ली लौट रहे थे। बस अभी थोड़ी दूर, आगे बढ़ी ही थी कि आधी रात के अंधेरे में, अंधे मोड़ पर ड्राइवर को झपकी आ गई और बस सीधे पेड़ से टकराकर पलट गई। चारों ओर चीख-पुकार मच गई।
अंधेरे में लोग अपने-अपने परिजनों को तलाशने लगे। गांव वालों ने आकर सबको बाहर निकाला और अस्पताल पहुंचाया।
मंगलू को सिर में चोट आयी थी और उसकी पत्नी का हाथ फ्रैक्चर हो गया था लेकिन खिड़की के पास बैठी राधा की सांसे थम गई थी।
उधर उसके बचपन की सहेली को जब यह हृदयविदारक समाचार मिला तो वह सदमे से बेहोश हो गई। उसकी गंभीर हालत देखकर डॉक्टरों ने फौरन ऑपरेशन करने की बात कही।
राधा का दिल ऐश्वर्या को लगा दिया गया।
ऐश्वर्या के होश में आने पर उसकी माँ अपनी बेटी को ग्लानि में भरकर, भीगे शब्दों में कह रही थी…. सुन रही हो ना बेटी राधा!!!
ऐश्वर्या की सांसें तुम्हारी उधार की दी हुई हैं।
【 ●लेखक विक्रम ‘अपना’ की कविताएं औऱ लघुकथा ‘छत्तीसगढ़ आसपास वेब पोर्टल’ में नियमित प्रकाशित हो रही है, अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराएं, संपादक 】