बाल कविता, उठो-उठो जी उठो-उठो हुआ सवेरा, उठो-उठो -बलदाऊ राम साहू
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उठो-उठो जी उठो-उठो
हुआ सवेरा, उठो-उठो।
मुर्गे ने हैं बाँग लगाई
उठो-उठो
चिड़ियाँ भी हैं चीं-चीं गाईं
उठो-उठो।
कौंवे बन आये हलकारे
उठो-उठो
गुन-गुन,गाते भौंरे कारे
उठो-उठो।
धूप लिए सूरज जी आये
उठो-उठो
दादी अम्मा सिर सहलाये
उठो-उठो।
बाबा जी गा रहे तराने
उठो-उठो
पापा जी आ रहे जगाने
उठो-उठो।
मम्मी पूरी साग बनाई
उठो-उठो
मुनिया बैठी है ललचाई
उठो-उठो।
【 ‘छत्तीसगढ़ आसपास’ में बलदाऊ राम साहू की बच्चों के लिए बाल कविता नियमित प्रकाशित हो रही है. वीवर्स अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराएं.-संपादक 】