ग़ज़ल – डॉ. संजय दानी
4 years ago
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पेड़ों के बदन से कपड़े सारे उतर गये,
बारिश के करिंदे दे कर दर्द गुज़र गये।
कुछ मज़हबी आंधियां यूं आ रहीं नीचे से,
के सख़्त पहाड़ों के सीने भी सिहर गये।
गो शब ने बुझा दिया गांवों के चराग़ों को,
पर चांद के गीतों से घर सारे निखर गये।
महबूबा के पैरों पे पाजेब नहीं रही,
हम घुंघरुओं की तरह फिर आज बिखर गये।
ये ज़िन्दगी सूखे रेगिस्तान का दरिया इक
कुछ राही कहीं , कहीं कुछ राही ठ्हर गये।
【 पेशे से नाक-कान-गला के डॉक्टर संजय दानी,कवि ह्रदय भी हैं. उनकी दो ग़ज़ल संग्रह ‘मेरी ग़ज़ल मेरी हमशक्ल’ औऱ ‘ख़ुदा ख़ैर करे’ प्रकाशित हो चुकी है.
संपर्क-98930 97705 】
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