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साहित्य : मानवीय संवेदनाओं और भाव चित्रण के कवि डूमन लाल ध्रुव – श्रीमती कामिनी कौशिक
▪️ डीएल ध्रुव
छत्तीसगढ़ी साहित्य संसार में बहुत ही कम लेखक कवि हैं, जिनके रचना संसार में अग्रज पीढ़ी की लम्बी परम्परा के स्त्रोत दिखाई पड़ते हों। साहित्यिक जीवन के प्रमाणिक दस्तावेज के साथ ’’छत्तीसगढ़ का सांस्कृतिक परिदृश्य’’ ,’’लोक जीवन के बदलते संदर्भ’’, छत्तीसगढ़ी लोक साहित्य और लोक जीवन में वाचिक परंपरा से अपनी पहचान बनाने वाले लेखक, कवि साहित्यकार हैं श्री डुमन लाल ध्रुव जी। राष्ट्रीय परिदृश्य पर धमतरी नगर को साहित्यिक पहचान देने वाले यशस्वी साहित्यकार स्व. श्री नारायण लाल परमार, त्रिभुवन पाण्डेय, सुरजीत नवदीप,मुकीम भारती, भगवती सेन, रमेश अधीर,रंजीत भट्टाचार्य जैसे साहित्य मनीषियों का सानिध्य लेकर साहित्य सेवा में प्रमुखता से आगे आये। स्व.हरि ठाकुर, पद्मश्री श्याम लाल चतुर्वेदी, संत कवि पवन दीवान, लक्ष्मण मस्तुरिया, डॉ. जीवन यदु, रामेश्वर वैष्णव, मेहतर लाल साहू, सुशील यदु, डॉ.चितरंजनकर, डॉ.गिरीश पंकज, डॉ.राजेन्द्र सोनी, शत्रुघन राजपूत, मुकुंद कौशल, चन्द्रकांत देवताले, विनोद कुमार शुक्ल, विनोद शंकर शुक्ल, ललित सुरजन, प्रभाकर चौबे, डॉ.रमाकांत श्रीवास्तव, डॉ.गोरेलाल चंदेल, रवि श्रीवास्तव, बसंत देशमुख, श्रीमती संतोष झांझी, जयंत थोरात सहित अनेकों साहित्यकारों के साथ वैचारिक संबंद्धता निकटता से रही है।
हिन्दी- छत्तीसगढ़ी साहित्य में विशिष्ट स्थान रखने वाले श्री डुमन लाल ध्रुव का जन्म 17.9.1974 में मुजगहन ( धमतरी )गांव में एक किसान परिवार में हुआ। उनके पिता का नाम श्री बोहरन लाल ध्रुव और माता का नाम श्रीमती पार्वती ध्रुव। प्राथमिक शिक्षा गांव के स्कूल में हुई तथा एशिया का एकमात्र संगीत विश्वविद्यालय इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ में एम.ए.तबला की पढ़ाई की। आकाशवाणी रायपुर के इम्प्रूव्ड गीतकार डुमन लाल ध्रुव ने रचना धर्मिता के माध्यम से जीवन के तमाम उतार चढ़ाव व विभिन्न आयामों के साथ ही अपने समय,काल व परिस्थितियों से रुबरु कराती है। जहां तक मेरा मानना है कि आज कोई भी रचनाकार, सजग रचनाकार, जागरूक रचनाकार अपने वर्तमान के प्रति तटस्थ निरपेक्ष नहीं रह सकता। हमेशा समय समाज से टकराता है और जब-जब भी समाज में परिवर्तन होता है समाज के साथ-साथ समाज बदलता है और जब समाज बदलता है तो उसके साथ साहित्य भी उसके साथ टकराता है। जब हम अपनी कविताओं में नई शताब्दी की बात करते हैं तो पिछली शताब्दी बार-बार हमारे दिमाग में आती है लेकिन यह हमें नहीं भूलना चाहिए कि भविष्य की हर समस्या का समाधान अतीत में है। पुरानी संस्कृति में, पुरानी परंपराओं में दिखाई देती है।
अपन छितका कुरिया ला
निहार के
दूसर के दुख ल
आपस म बांटन
अउ अपन घर ल
सुख से भर
समय ल रोके बर
न कोनो रावण पैदा होय हे
न राम
बस रही जाथे घेरी बेरी सुरता हा
अउ समय के सादा कुरता हा …
कवि डुमन लाल ध्रुव की काव्याभिव्यक्ति में अर्थ- गाम्भीर्य और भावों की मधुरिमा एवं अनुभूति की गहराई अधिक आकर्षक है। अधिकांश कविताओं में कवि की युग चेतना, उत्थान और देशभक्ति की भावना अभिव्यक्त हुई है। हां सहानुभूति का कोष भी अक्षय है जो सबके लिए खुला है और मानव वेदना को स्वाभाविकता प्रदान करता है। वस्तुतः डुमन लाल ध्रुव नयी भाव भूमियों के पालक और व्यापक जीवन के भावक हैं।
सब ल रोटी सब ल काम
इही देश के उपहार हे
पूंजीपति के हाथ ला बांधो
अब काला बाजार के काम नइहे
जन-गण-मन के गीत रीत म
अब भ्रष्टाचार के काम नइहे
डुमन लाल ध्रुव की काव्य साधना में उनके काव्य कला का अविरल रूप से विकास तो हुआ ही, पर यह भी ज्ञात होता है कि उनके व्यक्तित्व, अनुभूति, जीवन दर्शन, अध्ययन, कल्पना आदि का भी क्रमशः उत्कर्ष होता गया है। उन्होंने अपनी काव्य- सीमा को पर्याप्त मात्रा में व्यापकता देने का सफल प्रयास किया है। उनका काव्य अधिकतर प्रत्यक्ष जीवन पर आधारित है, मानवता की भावना से परिपोषित और छत्तीसगढ़िया के गुणों से उद्बुद्ध है। छत्तीसगढ़ी काव्य की सांस्कृतिक और नैतिक काव्य धारा के तथा युगीन काव्य प्रवृत्तियों के सफल कवि हैं। उनके काव्य में व्यापक जीवन का सन्निवेश हुआ है। सृजन के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी, प्रबुद्ध और रसचेता सृष्टा हैं। ऐसे कवि की सर्जना पर चिंतन मनन का प्रभाव होना नितांत आवश्यक है। समस्या का गहन अध्ययन, विषय वस्तु का सूक्ष्म चयन, मार्मिक गठन और प्रवाहमयी अर्थगर्भित शैली का अनुठापन ही उनके काव्य की विशेषता है। डुमन लाल ध्रुव के अनुभूतिपरक रचनाएं छत्तीसगढ़ी लोक की अक्षय और अमर निधि हैं।
अंजोर बाटे के पहिली
आवव अंधियार के
हिसाब करन।
अपन बांटा के परकास ल
दूसर के अंधियार म भरन।
जोति बांटे के अइसन
उपाय बेकार नई जाय
अउ बांटे परकास ह फेर
हमरे पास लहुट के आही।
डुमन लाल ध्रुव की साहित्य परिधि को यशस्वी गीतकार कवि स्व. श्री नारायण लाल परमार ने सिंचित किया, उसकी उर्वरा शक्ति बढ़ाई और बीजों ने अंकुरित होकर शनैः-शनैः पौधे का रूप धारण कर लिया। एक दिन यही पौधा विशाल वट वृक्ष हो गया। धमतरी जिला हिन्दी साहित्य समिति के अध्यक्ष के रुप में डुमन लाल ध्रुव छत्तीसगढ़ के अधिकांशतः नये रचनाकारों को शीतल छाया एवं मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं । देखा जाए तो उनमें आवेग और कल्पना का मणिकांचन योग सहज रूप में हुआ है। कभी उन्होंने समय के वातावरण से उद्वेलित हो विक्षोभकारी घोष किया है और कभी प्रकृति तथा मानव संसर्ग से आत्मगत अनुभूति परक सौंदर्य और प्रेम के गीत गाए हैं। उनका जीवन गत्यात्मक है जो उनकी काव्य कृतियों एवं छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक परिदृश्य में अभिव्यक्त हुआ है। उनका साहित्य सजग, क्रियात्मक एवं प्रभावशील है। उसमें समसामयिक परिस्थितियों का स्पंदन और मानवीय संवेदनाओं का भाव चित्रण है।
दुख पीरा ल चिरई घलो बांटत हे
अड़हा के कमई ल चतुरा मन छांटत हे।
कोन ल हम साव कहिबो
कोन ल कहिबो चोर।
इहां तो सब सावचेतिहा हे
मीठ लबरा कस घोर।।
सब अपन-अपन राग अलापत हे।
डुमन लाल ध्रुव के साहित्य को समग्र रूप से देखा जाए तो लोक जीवन का बदलता स्वरूप दिखाई पड़ता है। जीवन के मोड़ों तथा जीवन की उपलब्धियों के साथ चिंतन एवं जीवन-दर्शन में भी परिवर्तन आता गया और कविता का स्वर भी क्रमशः परिवर्तित होता गया। डुमन लाल ध्रुव की अब तक 12 किताबें प्रकाशित हो चुकी है। ’’पैदल जिंदगी का कवि नारायण लाल परमार’’ व्यक्तित्व- कृतित्व पर केंद्रित कृति ने एम. ए. प्रीवियस पंडित रवि शंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर के पाठ्यक्रम में पहचान दिलाई। मानवीय भावनाओं की अभिव्यक्ति के अग्रदूत के साथ -साथ वे कहानीकार हैं। आकाशवाणी केन्द्र रायपुर से उनकी छत्तीसगढ़ी में शताधिक कहानियों का प्रसारण समय समय पर की जा रही है। साहित्य का प्रयोजन आत्मानुभूति है। उसकी प्रेरणा भी अनुभूति ही है। अनुभूति वही है जो काव्य या कलाओं के रूप में अभिव्यक्त होती है। गहरे अनुभवों का व्यक्तित्व से निकट संपर्क और जीवन के इतिहास में, उपक्रम में जो घनिष्ठतम अनुभव होते हैं उन्हें ही अनुभूति की संज्ञा दी जाती है। साहित्य का मूल भी आत्मानुभूति की अभिव्यक्ति ही है। डुमन लाल ध्रुव के साहित्य में यही अनुभूति सर्वत्र अभिव्यक्त हुई है। छत्तीसगढ़ी साहित्य में उनका एक विशिष्ट स्थान सदैव बना रहेगा यही मेरी शुभभावना है।
[ समीक्षक श्रीमती कामिनी कौशिक रिसाईपारा, धमतरी, छत्तीसगढ़ से हैं]
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