कविता : दुर्गा प्रसाद पारकर
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हसदेव
22 जनवरी 2024 के दिन
प्रभु श्रीराम
अयोध्या म बिराजे के बाद
अपन ममा गाँव छत्तीसगढ़ म
हसदेव घुमे बर आही
त माथ धरके बइठ जही
खनिज संपदा के चक्कर म
जम्मो रूख राई ल काट डरे हे
कहिके ओकर जीव ह
अइठ जही
हाँसत कुलकत हसदेव
कइसे चातर होगे
रूख राई के कटवइया मन के
बुध कइसे पातर हो गे
अयोध्या जा के
माता कौशिल्या ल का बताही
ममा गाँव के जंगल मन के
सत्यानाश हो गे हे कहिके
कइसे समझाही
रूख राई के तन ल
काटे के बखत
उकर आँखी ले कतना आँसू
बोहइस होही
छत्तीसगढ़ महतारी ल
इमन रहि रहि के
कतना रोवइस होही
भगवान श्रीराम ह
सब ल चेताही
यदि जंगल नइ बना सकव
त काटे के अधिकार
कोनो ल नइहे
सब झन सुन लव
अपन करम के फल ल
भोगे बर
तुमन तैयार रइहव
कोनो ल हसवा नइ सकव
त तुमनओला रोवावव झन
तुंहर मन ले बिनती हे
हरियर छत्तीसगढ़ के आखी ले
आँसू ल ढरकावव झन
आँसू ल पोछत पोछत
छत्तीसगढ़ महतारी के अचरा ह
गिल्ला हो गे
जउन छत्तीसगढ़िया बेटा मन ल
सिधवा हे कहिके काहत रेहेंव
उमन ल का हो गे
अब तो अइसे लागथे
बिनती करइया मन के
आँसू घलो सुखा जही
जब जम्मो
रूख राई ह कटा जही
ताहन एक दिन
हसदेव के नाम ह
अपने अपन
छत्तीसगढ़ के नक्शा म मेटा जही
प्रायश्चित करना हे त
जतना पेड़ कटवावत हव
ओकर ले चार गुना पेड़ लगावव
सब झिन जुर मिल के
नवा हसदेव बनावव
नवा हसदेव बनावव
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पतंग
मकर सक्रांति के पतंग कस
आकाश म
बहुत दुरिहा तक
उड़ाहूं कहिके सपना देखे रेहेंव
तीली लाड़ू कस
गुड़ म फल्ली दाना मिला के
सुग्घर पाग धरे रेहेंव
फेर मोर सपना के डोरी ल
मुसवा कस
कोन कतर दिस
जीते बाजी ल
देखते देखत
कइसे हरवा दिस
हारे के बाद पता चलिस
मोर विश्वास ह तो पक्का रिहिस
फेर धागा ह कच्चा रिहसे
बेइमानी के धागा ले
मोर ईमानदारी के धागा
पक्का रिहिसे
एसो हारेंव ते हारेंव
फेर पतंग उड़ाए बर कभू
नइ छोंड़व
पतंग प्रतियोगिता बर
कभू मुंह नइ मोड़व
एक न एक दिन बाजी ल
जरूर जितहूं
इरादा यदि पक्का हे त
जीत के इतिहास ल जरूर लिखहूं
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