समसामयिक विशेष कविता : प्रकाशचंद्र मण्डल
▪️
माँ का रूप क्या ऐसा ही होता है!
– प्रकाशचंद्र मण्डल
[ भिलाई छत्तीसगढ़ ]
मुझे ज्ञात है – मां को भगवान
के आसन में बिठाते हैं
भगवान के कर्तव्यों को मां निर्वहन करती है
इसलिए भगवान भी कभी-कभी
मां से खफा रहती है
किंतु यह क्या! क्या मां ऐसी होती है
इतनी क्रूर इतने निष्ठुर
कैसे इतनी कठोर हो सकती है मां
इतनी हृदय हीनता कैसे हुई
यह भयंकर काम करते हुए
उनका हृदपिंड कांप नहीं उठा
मां का चरित्र तो इस तरह
परिभाषित नहीं होता ।
जिस मां को हम ऊंचे आसन में
बिठाते हैं
वही यदि ऐसे घृणित कृत्य करती है
तो उसे क्या कहा जाएगा
एक निष्पाप फूल जैसे शिशु को
जो पृथ्वी पर आकर भी
पृथ्वी को ठीक से जान नहीं पाया
समझ नहीं पाया ,
उसे जघन्य तरीके से पापी
एक मां –
सदा के लिए दुनिया से
उसका अस्तित्व मिटा दिया ।
वह कैसी मां है ?
क्यों वह ऐसे कृत्य किया ,
प्रश्न बार-बार मेरे हृदय को
आघात कर रहा है –
और पूछ रहा है
क्या मां ऐसे ही होती है ?
क्या मां ऐसे ही होती है?
••••• ••••• ••••• •••••
•संपर्क-
•94255 75471
▪️▪️▪️▪️▪️▪️▪️▪️▪️▪️▪️▪️