कवि और कविता : डॉ. प्रेम कुमार पाण्डेय
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एक चिरैया
एक चिरैया, दबा चोंच में
ले आई इक तिनका|
बड़ी अकड़ से, मेरे घर में
रख छोड़ा कुछ धुनका||
रोज़- रोज़ फुर्र- फुर्र कर
लगी सताने मुझको|
आंख दिखाकर पूछा मुझसे
क्या दिक्कत है तुझको?
मैंने सोचा इस जिद्दी से
कैसे मैं अब निपटूं?
हार न जाऊँ इस कारण से
इधर-उधर मैं भटकूँ||
घर मालिक बन घर के अंदर
अपना महल बनाया|
इक दिन उस घर के भीतर
दो अंडे मैंने पाया||
एक सुबह चींचीं- चींचीं से
घर का अंगना गूंजा
झांका घर में बड़े प्यार से
पाया दो ठो चूजा|
मखमल से पंख खोल
चूजों ने उड़ना सीखा|
इक दिन दूर गगन में
नन्हों का दल दीखा||
बची अकेली नन्हीं चिड़िया
फिर भी फुदक रही थी|
चेहरे पर संतोष लिए वह
मुझको निरख रही थी||
कितना अच्छा होता हम
चिड़ियों से सीखे होते|
बच्चों के उड़ जाने पर
गमगीन न दीखे होते||
एक पेड़ के बीज बहुत
क्या पेड़ के नीचे उगते?
अपना-अपना निज वजूद ले
दूर-दूर ही दिखते||
अपनों के जाने का गम ले
क्यों तुम दुखी जिओ|
शाश्वत नियम अटल हैं बंधु
हंसकर गरल पिओ||
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चुनो ऐसी सरकार
कौड़ी जिसके पास में, सत्ता उसकी जेब |
मेहनतकश से कर रहे, नूतन नित्य फरेब ||
आश्वासन की बाढ़ है, बस लोकतंत्र है पर्व|
अधिकारों के हरण हित, चरण पखारें सर्व||
कोरोन के काल में, घर बैठे हैं लोग|
रोटी के लाले पड़े, नेता कर रहे भोग||
सूखा ओला बाढ़ में, कृषक हुआ बरबाद |
व्हिस्की के संग ले रहे, अधिकारी सालाद||
आयुध का आयात कर, बढ़ा रहे संषर्ष|
भूखी जनता रो रही, महफिल में है हर्ष||
रोजी- रोटी दे सके, चुनो ऐसी सरकार|
खुशहाली सर्वत्र हो, कोई न हो बेकार||
[ डॉ.प्रेमकुमार पाण्डेय केंद्रीय। विद्यालय वेंकटगिरी आंध्रप्रदेश में पदस्थ हैं.
•संपर्क- 98265 61819 ]
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