बाल गीत : दुर्गा प्रसाद पारकर
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हमर गवंई गाँव
सरग ले सुग्घर हमर गवँई गाँव
जिहां आमा अमली के जुड़ छांव
गाँव वाले मन करथे मन भर खेती
खेती ला कहिथे उमन अपन सेती
नदिया नरूवा म बोहावत पानी के धार
धार ह रहिथे खेती किसानी के आधार
खपरा छानी जिंहा के चिन्हारी
हरियर हरियर दिखय बखरी बारी
बारो महीना आनी बानी के तिहार
मया पिरित के पहिरे रहिथे हार
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ढेरा
चार छै पकती के ढेरा बने रहिथे
सन अउ सुमा डोरी आंटत रहिथे
सुमा डोरी आट के मजबूत बना ले
खटिया गाँथ के मन भर सुसता ले
सन ल आट के मोठ डोर बनाथे
गाड़ा ल बांधे बर सजोर बनाथे
ढेरा कस जीनगी गोल घुमत हे
सुरूज कस जीनगी उवत बुड़त हे
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खुमरी
कड़रा मन बांस ले खुमरी बनाथे
घाम पानी ले खुमरी ह बचाथे
बरदिहा मन खुमरी ओढ़ के जाथे
अलगोजवा बजावत बरदी चराथे
खुमरी ओढ़ के किसान खेत जाथे
नांगर बक्खर चलाथे खेत म जाके
रंग बिरंग के खुमरी ओढ़ के जाथे
राऊत मन घर घर नाचे बर आथे
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नंगरिहा
नांगर बोह के खेत जोते बर नंगरिहा जाथे
झेंझरी म धान धर के बांवत कर के आथे
धान के बाढ़े के बाद बियासी नांगर चलाथे
रोपा लगइया मन ह कोप्पर ले खेत मताथे
नींदई कोड़ई करके धान ल बरोबर चालथे
खेती किसानी के बखत सुग्घर ददरिया गाथे
खेती किसानी करके नंगरिहा धान उपजाथे
किसन के बड़े भइया हलधर बलराम कहाथे
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