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- बसंत, राम काव्य, पंडवानी और रंगमंच की जड़ें संस्कृत में- आचार्य डॉ. महेशचंद्र शर्मा : बसंत काव्य संध्या में रायपुर में संस्कृत विश्वविद्यालय स्थापना सराही गयी…
बसंत, राम काव्य, पंडवानी और रंगमंच की जड़ें संस्कृत में- आचार्य डॉ. महेशचंद्र शर्मा : बसंत काव्य संध्या में रायपुर में संस्कृत विश्वविद्यालय स्थापना सराही गयी…
रायपुर [छत्तीसगढ़ आसपास न्यूज़] : ऋषिप्रधान और कृषिप्रधान हिन्दुस्तान में सन्त और बसन्त का विशेष महत्त्व है। वाल्मीकि, व्यास, कालिदास, तुलसीदास और भरतमुनि के बिना भारत की कल्पना भी असम्भव है। रामकाव्य, पण्डबानीऔर रंगमंच की जड़ें संस्कृत-संस्कृति में हैं।इनके विकास और पोषण के लिये छत्तीसगढ़ में संस्कृत विश्वविद्यालय स्थापित हो,शासन का संकल्प स्वागत योग्य है। साहित्य – कला प्रेमी, सारस्वती भक्त हंस ही दूध-पानी कीअलग पहॅंचान का विवेक रखते हैं।” ये उद्गार हैं भिलाई के साहित्यविद् आचार्य डॉ.महेशचन्द्र शर्मा के। देश – विदेश में साहित्य – संस्कृति विषयक अनेक सफल भ्रमण करचुके आचार्य डॉ.शर्मा छत्तीसगढ़ साहित्य मण्डल रायपुर द्वारा पं.सरयूकान्त झा स्मृति भवन पुरानी बस्ती रायपुर में “बसन्त आया, बहार आयी” काव्य सन्ध्या के मुख्य अतिथि के रूप में साहित्य प्रेमियों को सम्बोधित कर रहे थे।
संस्था के प्रमुख सचिव एवं सुकवि सुनील पाण्डेय ने बताया कि उपस्थित काव्य रसिकों ने मन्त्रमुग्ध होकर आचार्य डॉ.शर्मा को सुना। डाॅ. शर्मा ने आगे कहा कि ऋतुराज बसन्त में लाल-लाल फूलों से सजी वसुन्धरा सुन्दरी दुल्हन – सी लगती है। उन्होंने कवि और सन्त की परिभाषा भी दी। उपस्थित सभी कवियों को उन्होंने भी पूरी तल्लीनता से सुना और सराहा। अनीता शरद झा ने “पतझड़ के मौसम को बसन्त बहार बनाती हूॅं ” कहकर नारीशक्ति की झलक दिखायी। एन.पी.विश्वकर्मा ने “पेड़ों के पत्तों से तालियाॅं ” बजबाकर श्रोताओं को खूब गुदगुदाया। मोहन श्रीवास्तव ने प्रायः छन्दविहीन स्वच्छन्दता के काव्यजगत् में बसन्ततिलका छन्दबद्ध सस्वर काव्यपाठ करते हुये काव्य प्रेमियों को सुकून भरा राहत कार्य किया। वहीं वैदिक मन्त्रों की सस्वर प्रस्तुति से शोभा श्रीवास्तव ने काव्य सन्ध्या की शोभा तो बढ़ाई ही, वेदों और संस्कृत के कठिन प्रचारित करनेवालों को भी तत्त्वज्ञान दिया। अज़ीज़ शायर मोहम्मद हुसैन ने भॅंवरे की तरह गुलों से दूर होने पर ख़ुद के बासन्ती – बलिदान की चेतावनी तक देदी। गोपाल सोलंकी ने कामवाण और रतिनृत्य को कविता में पिरोया। पं. प्रभात शुक्ल ने प्राणेश्वरी में पलाश की तलाश कहकर खूब वाहवाही बटोरी। उधर महाभारत से प्रभावित युवा कवि विवेक भट्ट ” आशा परशुराम” ने दुर्योधन,कर्ण और अश्वत्थामा के पश्चात्ताप और प्रायश्चित्त पर प्रेरक कविता सुनाकर खूब तालियाॅं बटोरीं। काव्य सन्ध्या की अध्यक्षता करते आचार्य पं.अमर नाथ त्यागी ने ” उषा की एक नयी किरण जग गयी होती ” कविता सुनाकर सबको उनके साथ गुनगुनाने पर विवश कर दिया।
उल्लेखनीय है कि आयोजक संस्था के अध्यक्ष इंजीनियर पं.त्यागी विज्ञान – तकनीकी ज्ञान के साथ साहित्य लेखन में भी सक्रिय हैं। कुशल एवं संचालन करते हुये सुनील पाण्डेय ने भी रोचक और प्रासंगिक कविता सुनाकर सरहाना पायी। इस अवसर पर साहित्यिक पुस्तकों का आदान-प्रदान भी हुआ। आचार्य डॉ. महेशचन्द्र शर्मा ने अपनी नवमी पुस्तक ” साहित्य और समाज ” अध्यक्ष पं.अमर नाथ त्यागी के माध्यम से छ.ग.हिन्दीसाहित्य मण्डल रायपुर को भेंट की। जनकवि गोपाल जी सोलंकी ने डॉ महेशचन्द्र शर्मा को अपनी काव्य कृति ” मेरी बगिया के फूल ” भेंट की। आयोजन में पं.शारदेन्दु झा आदि का विशेष सहयोग रहा।डाॅ.किरण श्रीवास्तव, सुश्री नीलिमा मिश्र, डॉ.जे.के. डागर, भूपेन्द्र शर्मा, सुश्री शिवानी मैत्रा, मन्नूयदु, डॉ.युक्ता राजश्री एवं श्रीमती कमल वर्मा की कवितायें भी सराहीं गयीं।
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