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छत्तीसगढ़ आसपास विशेष स्मृति शेष आलेख •पवन दीवान और •कोदू राम दलित -आलेख- •ओमप्रकाश साहू ‘अंकुर’
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2 मार्च पवन दीवान के 8वीं पुण्यतिथि म विशेष : भगवताचार्य अउ संत साहित्यकार पवन दीवान
जउन मन मा हा छत्तीसगढ़िया मन के स्वाभिमान ला जगाय के गजब उदिम करिस वोमन मन मा श्रद्धेय खूबचंद बघेल , कृष्णा रंजन , हरि ठाकुर ,लक्ष्मण मस्तुरिया , अउ संत कवि, भगवताचार्य पवन दीवान के नांव अव्वल हवय । दीवान जी हा बाहरी मनखे मन के द्वारा जउन शोषण करे जात रिहिस वोकर अब्बड़ विरोध करिन. लाल किला ले काव्य पाठ कर छत्तीसगढ़ के मान बढाइन.
दीवान जी के जनम किरवई गांव मा 1 जनवरी 1945 मा होय रिहिन हे । वोकर कर्मभूमि राजिम के संगे- संग पूरा छत्तीसगढ़ रिहिन ।
दीवान जी एक भगवताचार्य के संगे -संग बड़का साहित्यकार अउ राजनीतिज्ञ रिहिन। विधायक, सांसद अउ अविभाजित मध्य प्रदेश के मंत्री घलो बनिस । गौ सेवा आयोग छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष बनाय गिस । माता कौशल्या शोध पीठ के अगुवा रिहिन। माता कौशल्या के स्मारक बनाय बर अब्बड़ उदिम करिन। छत्तीसगढ़िया मन के स्वाभिमान ल जगाय बर सुघ्घर कारज करिन।
दीवान जी के भागवत प्रवचन मेहा पहिली बार राजनांदगांव जिला के गांव भर्रेगांव मा सुने रेहेंव । ये ह भर्रेगांव श्रद्धेय चंदूलाल चंद्राकर के जनम भूमि हरे। जब दीवान जी के भर्रेगांव म भागवत -प्रवचन होइस वो समय मेहा मीडिल स्कूल मा पढ़त रेहेंव ।वो समय वोहा जवान रिहिन हे । वोकर भागवत -प्रवचन सुने बर अपार जन समूह उमड़ पड़े । वोकर जोरदार ठहाका ला भर्रेगांव मा सुने रेहेंव । जब वोहा हंसय ता सब ला हंसा के छोड़य । अइसने बुचीभरदा (सुरगी) मा घलो वोकर प्रवचन के लाभ उठाय रेहेंव ।बीच बीच मा अपन कविता सुना के मनोरंजन करे के संगे संग लोगन मन मा जागरुकता लाय । अपन हक बर आगू आके लड़े के प्रेरणा देवय ।
सन् 2001 मा कन्हारपुरी, राजनांदगांव मा छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति द्वारा आयोजित राज्यस्तरीय छत्तीसगढ़ी कवि सम्मेलन मा दीवान जी के काव्य पाठ सुने के अवसर मिलिस. येकर बाद छत्तीसगढ़ राज
भाषा आयोग के प्रांतीय सम्मेलन मा उंकर सुग्घर विचार सुने ला मिलिस.
सौभाग्य से हमू मन ला माई पहुना के रुप मा दीवान जी के दर्शन होइस वोकर सुग्घर बिचार
सुने के संगे संग हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी कविता ला सुनके धन्य होगेन ।
जब साकेत साहित्य परिषद् सुरगी जिला राजनांदगांव द्वारा 10 जून 2007 मा होवइया आठवां वार्षिक सम्मान समारोह बर निमंत्रण छपवायेन ता सुरगी के संगे संग आस पास के गांव के लोगन मन ला एको कनक बिश्वास नइ होय कि पवन दीवान जी हा इंकर कार्यक्रम मा आही!
ये सब संभव हो पाय रिहिस डॉ. नरेश कुमार वर्मा जी के कारण । मूलत : भाटापारा (बलौदाबाजार) निवासी वर्मा जी वो समय दिग्विजय कालेज राजनांदगांव मा हिन्दी के प्रोफेसर रिहिन । ।वर्मा जी अउ हमर साकेत साहित्य परिषद् सुरगी के कुबेर सिंह साहू जी , वरिष्ठ कहानीकार डॉ. परदेशी राम वर्मा जी से बढ़िया संबंध बन गे रिहिस । एकर से पहिली डॉ. वर्मा जी हाै हमर वार्षिक समारोह मा दो तीन बार पहुना के रूप मा पहुंच चुके रिहिन ।ये प्रकार ले साकेत परिषद् ले सुग्घर संबंध बन गे रिहिन ।डॉ. परदेशी राम वर्मा जी कृपा ले पवन दीवान जी के सुरगी आगमन होइस ।संगे संग हमर छत्तीसगढ़ के मुखिया आदरणीय भूपेश बघेल जी हा घलो पहुना बन के आय रिहिन । वो समय बघेल जी हा विपक्ष मा दमदार नेता रिहिन ।
ये कार्यक्रम मा दीवान जी के हाथ ले छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति राजनांदगांव के अध्यक्ष आत्मा राम कोशा अमात्य जी अउ साकेत के तत्कालीन सचिव अउ वर्तमान अध्यक्ष भाई लखन लाल साहू लहर जी ला साकेत सम्मान 2007 प्रदान करिन ।
इहाँ दीवान जी हा अपन विचार राखिस तेमा छत्तीसगढ़ी भाखा ला राजभाषा बनाय के मांग करे गिस । येमा पारित प्रस्ताव ला राज्य शासन के पास भेजे गिस.येकर बर डॉ. परदेशी राम वर्मा जी के साथ मिलके अभियान घलो चलाइस ।अपन उद्बोधन के माध्यम से छत्तीसगढ़िया मन ला जागरुक करिन।बीच बीच मा अपन जोरदार ठहाका ले लोगन मन ला गजब हंसाइस ।दीवान जी हा किहिस – “हमर छत्तीसगढ़ हा माता कौशल्या के मइके हरय तेकर सेति भगवान राम हा इहां के भांचा कहलाथे ।तेकरे सेति हमर छत्तीसगढ़ मा भांचा भांची ला गजब सम्मान देय जाथे । आगे किहिस कइसे सुग्घर ढंग ले कहिथन – कइसे भांचा राम । सब बने बने भांचा राम । कोनो हा कैसे भांचा कृष्ण नइ काहय ।अउ कहइया हा अइसने कहि दिस ता वोहा का कहाही ।”अइसन कहिके फेर जमगरहा ठहाका लगाइस अउ उपस्थित लोगन मन जोरदार ताली बजा के सभा ला गुंजायमान करिन ।ये कार्यक्रम हा
सुरगी के शनिचर बाजार चौक के मुख्य मंच मा होइस ।दीवान जी हा किहिस कि मेहा पहिली बार कोनो साहित्यिक कार्यक्रम ला खुला मंच मा होवत देखत हंव।”अइसे कहिके परिषद् के लोगन मन के उछाह बढ़ाइस।
साथ मा हमर गांव ” सुरगी ”
के सुग्घर व्याख्या घलो कर दिस ” सुर ” माने देवता अउ “गी ” माने गांव ।
एकर बाद दीवान जी हा” राख ,” “चन्दा ” अउ “तोर धरती तोर माटी रे भइया “कविता सुनाके काव्यप्रेमी मन ला आनंदित करिन.
तो ये किसम ले संत कवि पवन दीवान जी के कार्यक्रम हा यादगार बनिस ।हमर साकेत के कार्यक्रम मा पहुंच के परिषद् ला गौरवान्वित करिन । 10 जून 2007 हा हमर परिषद् अउ गांव बर ऐतिहासिक तिथि के रुप मा अंकित रही । जब दीवान जी ह मध्यप्रदेश म जेल मंत्री रिहिन त अपन पीरा ल व्यक्त करिन-”
मोर कर तो कोनो काम नइ रहि गे जी। अब तुही मन बताव ग मंय ह तुमन ल कोन कोन ल जेल म डालंव।”अइसे कहिके जोरदार ठहाका लगाय अउ लोगन मन ल घलो हंसा दय।”
2 मार्च 2016 मा दीवान जी हा स्वर्ग लोक चले गिस । आज उंकर 8 वीं पुण्यतिथि मा शत् शत् नमन हे.
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5 मार्च 114वीं जयंती म विशेष : गाँधीवादी विचारधारा के हास्य व्यंग्य कवि कोदूराम दलित
जब हमर देश हा अंग्रेज मन के गुलाम रिहिस ।वो बेरा म हमर साहित्यकार मन हा लोगन मन मा जन जागृति फैलाय के गजब उदिम करय । हमर छत्तीसगढ़ मा हिन्दी साहित्यकार के संगे- संग छत्तीसगढ़ी भाखा के साहित्यकार मन घलो अंग्रेज सरकार के अत्याचार ला अपन कलम मा पिरो के समाज ला रद्दा देखाय के काम करिस ।छत्तीसगढ़ी के अइसने साहित्यकार मन मा लोचन प्रसाद पांडेय, पं. सुन्दर लाल शर्मा, पं. द्वारिका प्रसाद तिवारी विप्र, कुंजबिबारी चौबे ,प्यारे लाल गुप्त, अउ स्व. कोदूराम दलित के नाम अब्बड़ सम्मान के साथ लेय जाथे ।येमा विप्र जी अउ दलित जी हा मंचीय कवि के रुप मा घलो गजब नांव कमाइन। छत्तीसगढ़ी मा सैकड़ो कुंडलिया लिखे के कारण वोला छत्तीसगढ़ के गिरधर कविराय कहे जाथे।
जन कवि कोदू राम दलित के जनम बालोद जिले अर्जुन्दा ले लगे गांव टिकरी मा 5 मार्च 1910 मा एक साधारण किसान परिवार मा होय रिहिन । उंकर ददा के नांव राम भरोसा रिहिस। उंकर सुरुआती शिक्षा अर्जुन्दा म होइस। वोकर बाद नार्मल स्कूल रायपुर अउ नार्मल स्कूल बिलासपुर म पढ़ाई करिन।
पढ़ाई पूरा करे के बाद दलित जी ह प्राथमिक शाला दुर्ग म मास्टर बनिस । फेर बाद म उहां के प्रधान पाठक के दायित्व ल सुघ्घर ढंग ले निभाइस।1931 ले 1967 तक शिक्षा विभाग म सेवा दिस।
बचपन ले वोकर रुचि साहित्य डहर राहय। 1926 ले लेखन कारज के सुरुआत करिस। ग्राम अर्जुन्दा के आशु कवि पिला राम चिनोरिया ह वोकर कविता लेखन के प्रेरणा स्त्रोत रिहिन।
दलित जी ह अपन परिचय ल सुघर ढंग ले कुंडलियां म दे हावय-
लइका पढ़ई के सुघर, करत हवंव मैं काम ।
कोदूराम दलित हवय मोर गंवइहा नाम ।।
मोर गंवइहा नाम, भुलाहू झन गा भइया ।
जनहित खातिर गढ़े हवंव मैं ये कुंडलियां ।।
शउक महूँ ला घलो हवय, कविता गढ़ई के ।
करथव काम दुरुग मा मैं लइका पढ़ई के ।।
दलित जी ह हास्य- व्यंग्य के हिट कवि रिहिन हे । वोकर समकालीन मंचीय कवि मन म विप्र जी, पतिराम साव,शिशु पाल, बल्देव यादव, निरंजन लाल गुप्त,दानेश्वर शर्मा रिहिन।
उंकर कविता के उदाहरण आजो छत्तीसगढ़ी कवि सम्मेलन के सुरुआत म दे जाथे –
जइसे मुसवा निकलथे बिल ले।
वइसने कविता निकलथे दिल ले।।
शोषण करइया मन के बखिया उधेड़ के रख देय ।दिखावा अउ अत्याचार करइया मन ला वोहा नीचे लिखाय कविता के माध्यम ले कइस अब्बड़ ललकारथे वोला देखव –
ढोंगी मन माला जपयँ, लमभा तिलक लगायँ।
हरिजन ला छूवय नहीं, चिंगरी मछरी खाय ।।
खटला खोजो मोर बर, ददा बबा सब जाव ।
खेखरी साहीं नहीं, बघनिन साहीं लाव ।।
बघनिन साहीं लाव, बिहाव मैं तब्भे करिहों ।
नई ते जोगी बनके तन मा राख चुपरिहौं ।।
जे गुण्डा के मुँह मा चप्पल मारै फट ला ।
खोजो ददा बबा तुम जा के अइसन खटला ।।
ये कविता के माध्यम ले हमर छत्तीसगढ़ के नारी मन के स्वभिमान ला सुग्घर ढंग ले बताय गेहे । संगे संग छत्तीसगढ़िया मन ला साव चेत करिन कि एकदम सिधवा बने ले घलो काम नइ चलय ।अत्याचार करइया मन बर डोमी सांप कस फुफकारे ला घलो पड़थे ।
दलित जी के कविता मा गांव डहर के रहन सहन अउ खान पान के गजब सुग्घर बखान देखे ला मिलथे –
भाजी टोरे बर खेतखार औ बियारा जाये ,
नान नान टूरा टूरी मन धर धर के ।
केनी, मुसकेनी, गंडरु, चरोटा, पथरिया,
मंछरिया भाजी लाय ओली ओली भर के । ।
मछरी मारे ला जायं ढीमर केंवटीन मन,
तरिया औ नदिया मा फांदा धर धर के ।
खोखसी, पढ़ीना, टेंगना, कोतरी, बाम्बी, धरे ,
ढूंटी मा भरत जायं साफ कर कर के ।।
दलित जी गांधीवादी विचारधारा के साहित्यकार रिहिन।गांधी जी के गुनगान करत उंकर रचना देखव –
सबो धरम अउ सबो जात ला,एक कड़ी म जोड़े।
अंगरेजी कानून मनन ला, पापड़ सही तोड़े।।
चरखा-तकली चला -चला के, खद्दर पहिने ओढ़े।
धन्य बबा गांधी,सुराज ला लेये तब्भे छोड़े।।
देस के अजादी बर सहीद होवइया सपूत मन बर लिखे हावय –
फांसी म झूलिस भगत सिंह,
होमिस परान नेता सुभाष।
अउ गांधी बबा अघात कष्ट,
सहि -सहि के पाइस सरगवास।
कतको बहादुर मरिन- मिटिन,
तब ये सुराज ल सकिन लाय।
बहुजन हिताय बहुजन सुखाय…।।
अजादी के समय के नेता अउ आज के नेता के तुलना करत उंकर रचना म व्यंग्य के धार देखव –
तब के नेता काटे जेल ।
अब के नेता चौथी फेल।।
तब के नेता गिट्टी फोड़े।
अब के नेता कुर्सी तोड़े।।
तब के नेता लिये सुराज।
अब के पूरा भोगैं राज।।
दलित जी ह हमर छत्तीसगढ के दसा पर कलम चलाके पीरा ल व्यक्त करे के संगे- संग बताय हावय कि काबर पिछड़े हे-
छत्तीसगढ़ पैदा करय, अब्बड़ चांउर
दार।
हवयं लोग मन इहां,सिधवा अउ उदार।।
सिधवा अउ उदार हवयं,दिन -रात कमावयं।
दे दूसर ल मान,अपन मन बासी खावयं।।
ठगथयं ये बपुरा मन ला बंचक मन अब्बड़।
पिछड़े हवय अतेक,इही कारण छत्तीसगढ़।।
दलित जी खादी कुर्ता,पायजामा अउ गांधी टोपी पहनय।हाथ म छाता पकड़े राहय। साहित्य साधना म अत्तिक रम जाय कि खाना- पीना अउ सोवई के ठिकाना नइ राहय। साहित्य साधना म एक मजदूर जइसे पसीना बहाय।उंकर रचना आठ सौ के लगभग हे। हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी म बरोबर ढंग ले लिखिस। पद्म के संगे -संग गद्य म कलम चला के अपन एक अलग पहिचान बनाइस। हिंदी साहित्य समिति दुर्ग के मंत्री पति राम साव के सहयोग ले 1967 म उंकर रचना “सियानी गोठ” प्रकाशित होइस।येमा उंकर 76 हास्य व्यंग के कुंडलियां सामिल हावय। स्थिति अइसन नइ रिहिन कि अपन सबो रचना ल किताब के रूप म प्रकाशित करवा सकय। जीते जियत एके किताब छप पाइस।
बाद म सन् 2000 म “बहुजन हिताय बहुजन सुखाय” फेर “छनन छनन पैरी बाजे ” ह प्रकाशित होइस।
दलित जी के आने रचना म कनवा समधी,अलहन,दू मितान,हमर देस, कृष्ण जन्म,बाल निबंध,कथा- कहानी,
छत्तीसगढ़ी शब्द भंडार अउ लोकोक्ति
सामिल हावय।उंकर रचना कई ठन अखबार म प्रकाशित होइस। आकाशवाणी भोपाल, इंदौर, नागपुर अउ रायपुर ले उंकर कविता अउ लोक कथा के प्रसारण होइस। दलित जी ह उज्जैन म आयोजित सिंहस्थ मेला म कविता पाठ करिन। वोहा कवि सम्मेलन के अब्बड़ मयारू कवि रिहिन। हमर छत्तीसगढ म कवि सम्मेलन म जब हिंदी कवि मन के दबदबा रिहिस वो बेरा म घलो दलित जइसे कुछ कवि मन छत्तीसगढ़ी के धाक जमाइस अउ श्रोता वर्ग ले अब्बड़ तारीफ पाइस। उंकर रचना म ग्रामीण जन जीवन के सुघ्घर चित्रण ,
देसभक्ति , गांधीवादी विचारधारा के दरसन होय। शिष्ट हास्य – व्यंग ले भरपूर रचना के कारण कवि सम्मेलन म छा जाय।
दलित जी हा 28 सितंबर 1967 मा अपन नश्वर शरीर ला छोड़ के सरगवासी होगे ।
दलित जी के सपूत अरुण कुमार निगम जी हा अपन पिता जी के रद्दा ल सुग्घर ढंग ले अपना के साहित्य सेवा करत हावय । संगे संग” छंद के छंद “जइसे साहित्यिक आंदोलन के माध्यम ले हमर छत्तीसगढ़ के नवा पीढ़ी के साहित्यकार मन ला छंद सिखा के सुग्घर ढंग ले छंदबद्ध रचना लिखे बर प्रेरित करत हावय त दूसर कोति” छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर ग्रुप” के माध्यम ले ग्रुप एडमिन के भूमिका ल सुघ्घर ढंग ले निभावत छत्तीसगढ़ी के गद्य विधा ल पोठ करे बर साहित्यकार मन ल प्रेरित करत हावय। उंकर ब्लाग “छंद के छ पद्य खजाना “अउ “छंद के छ गद्य खजाना” के माध्यम ले सुघ्घर ढंग ले रचना मन संरक्षित होवत हे जेला आने देस के लोग मन घलो पढ़त हावय। येहर एक एक पुत्र द्वारा अपन साहित्यकार पिताजी ल सच्चा श्रद्धांजलि हरय।
जन कवि, गीतकार लक्ष्मण मस्तुरिहा दलित जी के दमाद रिहिन हे जउन ह अपन गीत के माध्यम ले छत्तीसगढ़िया मन के स्वाभिमान ल जगाय के अब्बड़ उदिम करिन ।
आज दलित जी ला उंकर 114 वीं जयंती मा शत् शत् नमन
हे.
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