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होली विशेष : डॉ. नीलकंठ देवांगन
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जिनगी के हर रंग समाय हे होली तिहार म
– डॉ. नीलकंठ देवांगन
[ शिवधाम कोडिया, जिला-दुर्ग, छत्तीसगढ़ ]
रस रंग रास अउ उमंग के तिहार होली बसंत ऋतु मं मनाय जाने वाला देश के प्राचीन अउ महत्वपूर्ण तिहार हे | ये परब मं सबके मन मं उमंग खुशी उल्लास समाय रहिथे | फागुन महीना के पुन्नी मं मनाय जाथे | पारंपरिक रूप ले येहा दू दिन मनाय जाथे | पहिली दिन होलिका दहन होथे अउ दूसर दिन रंग खेले जाथे | बसंत ऋतु मं मनाय के कारन येला बसंतोत्सव भी किथें | फाग गीत बसंत पंचमी ले निनादित होथे, फागुन पुन्नी मं जवान होथे और रंग पंचमी, रंग तेरस तक अनुगुंजित रहिथे |
होलिका दहन – भगवान विष्णु ह नरसिंह रूप धारन करके भक्त प्रह्लाद के रक्षा खातिर लोहा के खंभा ले परगट होके हिरण कश्यप के नाश करे रिहिसे | प्रह्लाद के पिता हिरण्य कश्यप अपन बल के घमंड मं खुद ल भगवान माने लग गे रिहिसे अउ कोनो ल भगवान के नांव लेबर पाबंदी लगा दे रिहिसे | पुत्र प्रह्लाद ईश्वर भक्त रिहिसे | वोला कतको कठोर दंड दिस | तभो ले भगवान के भक्ति नइ छोड़िस | ओखर बहिनी होलिका ( प्रह्लाद के बुआ ) ब्रह्मदेव के वरदान के प्रभाव ले रोज अग्नि स्नान करय, जरय नहीं | तब वोला प्रह्लाद ल गोदी मं बिठाके अग्नि स्नान करे बर किहिस | होलिका जर के मर गे, प्रह्लाद बच गे | वो भुला गे के वोहा खुद अग्नि स्नान कर सकत रिहिसे, कोनो ल साथ लेके नहीं | फेर रंग उत्सव मनाय गिस | तब ले ये तिहार मनाय के परंपरा चल पड़िस | बैर अउ पीड़ा के प्रतीक होलिका जल के | परेम अउ उल्लास के प्रतीक प्रह्लाद बच गे | प्रह्लाद के अर्थ होथे आनंद |
रंग उत्सव – होलिका दहन के बाद रंग उत्सव मनाय गिस | रंग उत्सव मनाय के परंपरा शुरू होगे | तब ले एखर नांव फगवाह होगे, काबर के येहा फागुन के महीना मं मनाय जाथे , फाग गीत गाय जाथे | ढोल नगाडा़ झांझ मंजीरा बजाय जाथे | फागुन के महीना के ये उत्सव जेमा लोगन मन एक दूसर ऊपर खूब रंग गुलाल डारथें, रंग ले सराबोर कर देथें, नाचथें गाथें | प्रेम, श्रृंगार, प्रणय, बसंत, राधा कृष्ण के प्यार के गीत गाथें |
प्रेम के अनूठा परब हे फागुन के होली | होली मं जब रंग के सावन बरसथे अउ ढोल, नगाडा़, मृदंग के थाप बादल गरजे कस लगथे, तब जन मन उमंग उल्लास ले भर जथे अउ मन मयूर थिरकन लगथे, नाचन लगथे | ये प्रेम कहूं भक्ति के रूप मं निखरथे त कहूं वात्सल्य प्रेम के गंगा बनके बहे लगथे |
काम दहन – बसंत पंचमी के दिन होले डांड़ मं बइगा के अगुआई मं अंडा पेड़ ल गड़िया के पूजा पाठ करके वासनात्मक फाग गीत गाय के शुरुआत करथें | इही दिन ले वो जगा सुक्खा लकड़ी एकट्ठा करे के काम घलो करथें जउन फागुन पुन्नी होले जलाय के समय तक चलथे | रोज संझउती बेरा नहीं त रतिहा ढोल नगाडा़ मृदंग मंजीरा के ताल मं काम जगाय के वासना भरे फाग गीत गाके नाचथें कूदथें | पहिली तो किसबिन नचाय के परंपरा रिहिसे जेन ल रति नाच कहंय | अब ये नंदा गेहे | ओखर जगा मं परी (पुरुष ह महिला के सवांग धर के) नचवा लेथें |
होली से जुड़े कामदेव अउ भगवान शंकर के प्रसंग — ये प्रसंग ह शंकर जी अउ कामदेव ले जुड़े हे | कामदेब प्रेम अउ काम के देवता आय | ताड़कासुर के वध शंकरजी के पुत्र द्वारा होना रिहिस हे | वो तो अखंड समाधि मं लीन रिहिसे | देवता मन तब कामदेव ल शंकर के समाधि भंग करे, वाला जगाय खातिर किहिंन | पहिली वोहा ना नुकुर करिस फेर देवता मन के जोजियाय मं तैयार होइस | अपन काम सेना संग शंकरजी ल जगाय के उदिम, वोमा काम भावना जगाय के वासना जनित फूल के बान मारे के शरारत हरकत करन लगिस |गन्ना (कुसियार) के छड़ी मं मधुमक्खी के तार ले बने प्रत्यंचा मं तैय्यार पुष्पधनु मं फूल के बान मारके कामदेव ह शंकरजी के समाधि ल भंग कर दिस | अउ जब शंकरजी जगिस, नाराज होइस | ओखर तीसरा नेत्र से कामदेव भस्म होगे, जर गे | काम के दहन होगे | तेखर सेती येला काम दहन घलो केहे जाथे | शंकर जी जाग गे | फेर तो खुशी मं सब मिलके रंग गुलाल अबीर लगाइन | नाच गा के धमा चौकड़ी मचाइन , उत्सव मनाइन | येला बसंत उत्सव, मदन उत्सव, प्रणय उत्सव घलो कहिथें | कामदेव के भस्म होय के बाद ओखर पत्नि रति ह तपस्या करिस | तप से प्रसन्न होके शंकरजी ह वोला पुनर्जीवित कर दिस | उत्तर प्रदेश के बलिया जिला के कामेश्वर धाम ल ओखर भस्म होय के जगा कहिथें | आज भी वो प्रसंग ले जुड़े कुछ चिन्ह उहां मौजूद हे |
दूसर कारन – एखर अलावा ये परब राक्षसी पूतना, राधा कृष्ण के रास, कामदेव के पुनर्जन्म से जुड़े हे | कतको मानथें के होली मं रंग लगाके नाच गाके लोगन शंकर के गण के वेश बनाके बारात के दृश्य बनाथें | इही दिन प्रथम पुरुष मनु के जनम होय रिहिसे, एखर कारन येला मन्वादितिथि कहिथें |
कृष्ण राधा ले परंपरा के शुरुआत – कृष्ण ल राधा से प्यार होगे | कृष्ण सांवला अउ ओखर आत्मिक सखी राधा बहुत गोरी रिहिस | कृष्ण ल डर रिहिस के ओखर नीला त्वचा के कारन वोहा ओखर संग प्यार नइ करही | यशोदा ह कन्हैया ल सुझाव दिस के वोहा राधा के मुंह मं मन चाहा रंग लगादे | राधा घलो मान गे | नटखट कन्हैया उइसने करन लागिस | इही प्रेम भरे शरारत ह प्रचलित होगे अउ होली के परंपरा के रूप मं स्थापित होगे | रंग भरे छेड़छाड़ ये तिहार के विशेषता हे | बिरिज मं तो एक महिना पहिली ले ये तिहार शुरू हो जथे | कभू फूल से होरी खेलथें , कभू रंग मं नहाथें त कभू रेत मं लोटथें | कई तरह से होली खेलथें | बिरिज के होली काफी मशहूर हे | रंग तिहार के रूप मं मनाय जाने वाला ये परब मं किशोर किशोरी, जवान लड़का लड़की, लइका सियान सबो एक दूसर ऊपर रंग गुलाल लगाथें | पिचकारी ले लाल, नीला ,पीला, हरियर, गुलाबी रंग बरसाथें | छोटे गुब्बारा में घुले रंग भरके मारथें | होली तिहार मं भाग लेवैया लोगन मन राधा कृष्ण के समान एक दूसर के गाल, त्वचा मं रंग लगाथें |
हर रंग के अपन अर्थ – कतेक प्यारा हे हमार तीज तिहार मन? सब बर प्यार अउ सौहाद्र के भाव भरे रहिथे | जिनगी के उदासी ल भगाके उमंग के साथ जिये के संदेश देथे | जिनगी ल रंगीन बना देथे | हर रंग के अपन अर्थ हे, गुन हे, विशेषता हे | लाल रंग प्रेम के प्रतीक हे त ताकत के घला | पिंवरा रंग पवित्रता के, हरियर रंग खुशी खुशहाली के अउ आघू बढ़े के, भगवा रंग साधुता के, सादा रंग सादगी अउ सच्चाई के प्रतीक हे | करिया रंग अशुभता के सूचक हे अउ दुख के घला | हर रंग के अपन अस्तित्व हे | हमर तिहार मानो इही रंग ले बने हें, हमला जिनगी के संदेश देथें | जिनगी घलो रंग के तरह हे | जिनगी मं कभू प्रेम आथे त कभू उदासी | कभू आघू बढ़े के मन करथे त कभू आसमान छुये के जिद | कभू दुख के बादर छाथे त कभू खुशी ले जीवन झूमे ल लागथे | सुख दुख, विरह मिलन जिनगी मं लगे रहिथे, आवत जात रहिथे | ये रंग हमला समझाथे, जिनगी के उतार चढ़ाव ल बताथे |
भेद भाव के स्थान नहीं – ये तिहार मं जाति भेद, वर्ण भेद, छोटे बड़े, ऊंच नीच, अमीर गरीब के कोई स्थान नइ रहय | सब भेद भाव भुलाके ये तिहार ल प्रेम से मनाथें, फाग गीत गाथें | नगाडा़ के थाप मं झूम झूम के नाचथें | प्रेम से भरे नारंगी, लाल, गुलाबी, हरियर, पिंवरा, बैगनी, नीला, करिया रंग सबके मन से कटुता, वैमनस्य ल धो देथे अउ सामुदायिक मेल जोल ल बढ़ाथे, समरसता के भाव जगाथे | ये दिन सब घर मिठाई, पकवान बनथे | खाथें अउ खिलाथें | छत्तीसगढ़ मं घरो घर खास व्यंजन – ठेठरी, खुरमी, चीला, बोबरा, अइरसा बनथे | बुला बुला के खाथें खवाथें |
प्रकृति के रंग – ये समय प्रकृति के छटा देखतेच बनथे | खेत खार मं गेहूं के सोनहा बाली, सरसों, पलाश, गेंदा के फूल तमाम रंग बिखेरत, बगरावत रहिथें | अइसे लगथे मानो खुद प्रकृति ह रंग के तिहार मनावथे | रंग के छींटा धरती ऊपर मारथे | नरम नाजुक नवा हरियर कोमल पत्ता, गुलमोहर के दमकत सुर्खी, छोटे छोटे गुलाबी, बैगनी फूल के गुलाल मन के भाव ल मुखरित कर देथे | प्रकृति के हर रंग मं भाव निहित होथे | येला देखके सब जीव जंतु, पशु पक्षी अउ मनखे मन खुश हो जथें | बसंत के मादकता वातावरण मं छाये रहिथे |
बुरा न मानो होली है – होली रंग उमंग अउ हास परिहास के परब हे | येहा अइइसे परब हे जेमा अपन पसंद के काम कर सकथें, चाहे कोनो ल छेड़ना होय या अजनबी के साथ शरारत करना होय | सब कटुता, क्रोध, दुश्मनी भुलाके ‘बुरा न मानो होली है’ के आवाज मं डूबके घुल मिल जाथें | यही होली के अच्छा स्वरूप हे | इही होली के परंपरा के अंग हे, पहिचान हे | पारंपरिक रूप ले केवल प्राकृतिक व जड़ी बूटी से बने रंग के ही इस्तेमाल् करके होली खेलंय |
होली के विकृत रूप – आजकल होली खेले के तरीका गलत होत जाथे | स्वरूप बदलत जाथे | कृत्रिम रंग एखर स्थान लेवत जाथे | कखरो साथ शरारत या मजाक करना चाहत हें, ओखर ऊपर रंगीला झाग या गंदा झाग से भरे गुब्बारा मारथें | कोनो ग्रीस से होली खेलथें, कोनो कालिख पोतथें | एखर चलत कतको महिला मन बाहिर नइ निकल पावंय काबर के वोमन ल भय रहिथे के लोगन भद्दी गाली झन दे दंय, कोनो रासायनिक रंग न लगा दंय | आजकल होली के स्वरूप विकृत होवत जाथे | प्रेम भाव के जगह कटुता पनपत जाथे | ये दिन बदला लेके रंग के तिहार ल खूनी बना देथें | हर साल ये दिन लड़ाई झगड़ा के कई घटना सामने आथे | नुकसान पहुंचइया रंग ले या अनुपयोगी चीज ले होली खेले मं कखरो नुकसान तो होबे करही | कोनो आहत मत होय, कोनो ल दुख न होय, ये ढंग ले होली खेलंय तभे होली के मजा हे | नहीं त दुश्मनी मिटाय के बजाय दुश्मनी हो जाही | कखरो होली बिगड़िस, गलत रंग ले कखरो मुंह खराब होइस त उहू ह उइसने कर सकथे | फेर होली खेले के मतलब का होइस? एखर सेती ध्यान से प्यार से होली खेलना चाही जेखर प्यार बाढ़य, खुशी बाढ़य अपनत्व के भाव जागय | अमन चैन खुशहाली आवय, तभे तिहार के आनंद ले सकथन | गरीब तबका के लोगन मन मंहगाई के कारन हंसी खुशी के साथ तिहार नइ मना पावंय, उंखरो जिनगी मं मिठास भरे के प्रयास करन, उंखरो चेहरा मं मुस्कान ला सकन, तभे ये तिहार मनाय के सार्थकता हे |
होली मनाय के सार्थकता – होली विलक्षण परब हे | येमा जलाना, मनाना अउ खिलाना होथे | येला भावार्थ मं लेना चाही | केवल लकड़ी अउ कंडा के जलाय ले पापात्मा राक्षसी के नाश नइ होवय, अनिष्ट के नाश नइ हो सकय | पापात्मा राक्षसी होलिका हमर मन मं बइठे आसुरी वृत्ति अउ पाप करम के सूचिका आय | स्वभाव, करम मं जउन दुख देवइया आदत हे, जउन कटुता, क्रूरता, विकार रूपी झाड़ झंखाड़ हे, लकड़ी अउ कंडा के प्रतीक हे | अग्नि योगाग्नि के प्रतीक हे | अपन बुरा संस्कार, आदत, विकार रूपी होलिका ल योगाग्नि मं भस्म कर देना ही होलिका दहन हे | मन के कुभाव रूपी कचरा ल जलावन अउ ज्ञान, प्रेम के रंग ले एक दूसर ल रंगन, प्रेम के रंग सब मं लगावन अउ सही होली मनावन | केहे गेहे – ‘प्रेम के रंग सा न रंग कोई दूजा l’ तभे मनखे के मन मं खुशी, हर्ष, आल्हाद होना स्वभाविक हे | तभे हास परिहास के ये तिहार ल ओखर वास्तविक स्वरूप मं मना सकथन | दिल खुश रूपी मिठाई खिला सकथन | खुशी आनंद बांट सकथन | प्रेम के रंग लगावन अउ खुशी बांटन |
होली संबंधी धारणा हमर जीवन मं तभे घटित होही जब होली ल हो ली ( याने जउन होगे, वोला भुलाके, बीती ल बीती कर के ) मानके आघू के शुभ काम ल शुरू करन | होली उत्सव के इही वास्तविक रहस्य हे | उल्लासमय जीवन जिये के अमृत संदेश येमा समाय हे |
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• 84255 52828
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