बाल गीत, पढ़ते-पढ़ते- संतोष झांझी
क–कमल का
ख–से खरल
जीवन जीना नही सरल
ग–से गमला घ–से घड़ा
पढे लिखे का नाम बड़ा
ङ–कभी कभी ही आता,मिलता जब संस्कृत का ज्ञाता
च–से चरखा गांधीजी का
छ–से अपना छत्तीसगढ़
पढ लिख लिख पढ,पढ लिख पढ
ज–जहाज का
झ–से झरना
अब हर नारी को है पड़ ना
बड़ा आलसी है ञ कभी कभी ही कुछ किया।
ट–टमाटर ठ–ठठेरा
साक्षरता से हुआ सवेरा
ड–डमरू का ढ–से ढक्कन
देश पे हम वारेंगे तनमन
ण–आता अंत मे,,,रावण मे रामायण में,
त–तराना देश का
थ–से कहीं नहीं थमना
द–दमन न हो नारी का
ध–से है धड़कन दिल की
न–से नमन तुझे नारी
जैसे फूलों की क्यारी
प–से है अपनी पहचान
फ–से फल सेहत की जान
ब–से हैं बन्धन दिल के
भ– से भला लगे मिल के
म–से है ममता माँ की
धूप में माँ ठंडी छाँव सी
य–से यम से न डरना,इक दिन है सब को मरना,
र–से रथ पर हो सवार
ल–से न लड़ना करना प्यार
व–से वन संपदा हमारी
श–से शक भी एक बीमारी
ष–से होता है षटकोण ,शिक्षा बदलती दृष्टिकोण,
स–से समय के साथ चलें
ह–से हल उलझे जीवन का शान्ति अमन के साथ करें ।
क्ष–क्षमा बड़न को चाहिये,कुछ खोकर कुछ पाइये।
त्र–त्रुटियों पर वार करो
ज्ञ–ज्ञान का उद्धार करो ।
कवयित्री संपर्क-
97703 36177