लघुकथा, मुहल्ला -दिलशाद सैफी
सुबह का वक्त था “नत्थू चाय वाले”के दुकान पर रोज की तरह वहीं भीड़ नज़र आ रही थी।
सामने से आ रहे “दीनदयाल बाबू” को नत्थू ने आवाज़ लगायी … गुरूजी प्रणाम – क्या बात है आज आप बिना चाय पीये जा रहे है..! कौनो गुस्ताखी हो गई का माई-बाप ।
“नत्थू बातें इतनी मलाई लगा कर करता था कि चाय न पीने वाला भी ठहर कर चाय पी जाये”..!
मगर ये बात तो सही थी कि वो चाय बड़ी दिल खुश करने वाली बनाता था।
ठेले पे खड़े सभी लोग मुस्कुरा दिये…अरे आ भी जाइए दयाल बाबू ये नत्थू ऐसे नहीं जाने देगा आपको… !
दीनदयाल जी भी हँस कर ठेले के पास आ गये और कहने लगे …..अरे नहीं रे नत्थू ऐसी बात नहीं है।
सुना है पास की जमीन पे कॉलोनी बन रही है हमारी तो पुरी जिंदगी गुजर गई इन बस्तियों में लड़ते,झगड़ते
हँसते,रोते एक दूसरे के सुख:दुख बांटते अब देखे ये “कालोनी” कैसी होती है कैसे लोंग होते है …!
बड़ा बेटा कह रहा है कालोनी में “फ्लैट “लेने ।
कहता है… सभी सुख सुविधाएं है पापा अब वहीं रहेंगे।
ये मुहल्ले की रोज की चिक-चिक से दुर आप भी जाकर देख आइए…वहीं देखने जा रहा हूँ ।
अब बुढ़ापे में वहीं रह लेंगे जहाँ हमारे बच्चें रखे और वह चुप हो गये…।
तभी नत्थू बात बदलते हुये…कोनों बात नहीं गुरूजी…आप कहीं भी रहो “चाय “तो हमरे हाथ की ही पिलाऐगे हम और बाकी सब भी कहने लगे दयाल जी कुछ कर लो हमलोंग आपका पीछा नहीं छोड़ने वाले समझे… दयाल जी हँस दिये और आगे बढ़ गये।
कुछ दिनों बाद वो कालोनी में शिफ्ट हो गये।
कई महीनों ऐसे ही चलता गया कालोनी से दयाल जी का मुहल्ला आना जाना फिर अचानक बंद हो गया।
मुहल्ले के लोगो ने जानना चाहा मगर कालोनी में ऐसे किसी को भी आने-जाने की इजाजत नहीं थी इसलिए
लोगों ने भी सूध लेनी छोड़ दी…।
कालोनी में लोगों को इतनी फुरसत कहाँ किसी के बारे में जानने की सब बस अपने-अपने परिवार तक ही सीमित रहते है ।
पाँच दिन बाद सबने अखबार में पढ़ा की कालोनी के दूसरे माले पे किसी बुजुर्ग की मौत हो गयी है। तीन दिन बाद फ्लैट से बदबू आ रही थी तब पुलिस को किसी ने खबर दी दरवाजा तोड़ा गया तो पता चला कि दयाल जी के बेटे और बहु कहीं बाहर गये थे। नौकरानी भी छुट्टी पर थी दयाल जी बाथरूम में गिर गये थे और मौत हो गई थी दरवाजा बंद था तो किसी को पता न चला ।
बदबू आने लगी तो पता चला की तीन दिन से दयाल जी बाथरूम में गिरे पड़े थे लाश सड़ गई थी चिंटिया पूरे बाॅडी को खाने लगी थी।
ये खबर पढ़ सब स्तंब रह गए नत्थू के ठेले पर सब गमगीन हो बातें करने लगे… बड़े भले मानस थे दयाल जी देखो तो कैसे “मौत”हुई ।
नत्थू कहने लगा… कुछ कहों भय्या इससे तो अच्छा हमारा “मुहल्ला” है जहाँ किसी को छींक भी आए तो पूरा मुहल्ला जान जाता है । इन “काॅलोनियो” से हमारा “मुहल्ला” भला….।
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