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महाप्रभु श्री जगन्नाथ रथ यात्रा पर विशेष : रथयात्रा के दिन भगवान श्री जगन्नाथ रथ मं सवार होके भक्त मन से मिले बर आथे – लेख, डॉ. नीलकंठ देवांगन
वैदिक परंपरा के अनुसार जब कोनो देव, भगवान के मूल विग्रह मंदिर मं अपन सिंहासन मं प्रतिष्ठित हो जथे, त वोला उहां ले हटाय नइ जाय । फेर भगवान जगन्नाथजी किथें के वोहा सबके नाथ हैं , अइसे मं ओखर दर्शन अउ कृपा पाय के सबला अधिकार हे । एखरे सेती वोहा रथ मं सवार होके दर्शन दे खातिर साल मं एक दिन निकलथे । जगत के नाथ जगन्नाथ के रथयात्रा मं सबो धरम संप्रदाय के लोगन मन भाग लेथें ।
शास्त्र के मुताबिक परमात्मा लकड़ी के विग्रह के रूप मं प्रकट होय हें अउ मनुष्य के समान लीला करथें । मनुष्य शरीर सात धातु ले गठित हे । रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा , वीर्य (सुखरा) । हाड़ से लेके चाम तक सात आवरण हे । उइसने जगन्नाथजी, बलभद्रजी, सुभद्राजी सात आवरण से गठित हें । हमार शरीर के धातु परिवर्तनशील हे। उइसने भगवान के शरीर भी हे । तेखरे सेती अंतराल मं स्नान यात्रा के बाद भगवान जगन्नाथजी मं कुछ परिवर्तन किये जाथे । कुछ लकड़ी के अंग निकाले जाथे अउ कुछ नवा अंग लगाय जाथे । स्नान यात्रा से लेके रथयात्रा के पहिली दिन तक येहा भगवान के सामान्य परिवर्तन के समय होथे । इही ल कहि देथें के भगवान अस्वस्थ हें । जगन्नाथजी तो परमात्मा हें । उंखर शरीर मं ब्रह्म हे । उही ब्रह्म नव कलेवर मं उंखर शरीर मं प्रवेश करथे ।
देश मं जतका महोत्सव मनाय जाथे, जगन्नाथ के रथ यात्रा सबले महत्वपूर्ण हे | ये परंपरागत रथ यात्रा न सिरफ भारत मं बल्कि विदेशी श्रद्धालु मन के घलो आकर्षन के केन्द्र होथे | रथ यात्रा असाढ़ महिना के अंजोरी पाख के दूज तिथि मं मनाय जाथे | ये दिन भगवान जगन्नाथ, बड़े भाई बलभद्र अउ बहिन सुभद्रा देवी के साथ सुसज्जित तीन रथ मं विराजित होके गुंडिचा मंदिर जाथें | ऊंखर मूर्ति मन ल रथ मं स्थापित किये जाथे | श्री जगन्नाथ जी के रथ ल नंदिघोष, श्री बलभद्र जी के रथ ल तालध्वज अउ श्री सुभद्रा जी के रथ ल देवदलन केहे जाथे | हफ्ता भर से जादा मौसी घर खुशी मनाय के बाद ओ मूर्ति मन ल वापस लाके स्थापना करे के साथ महोत्सव समाप्त होथे |
रथ खींचे ले मिलथे सौ यज्ञ कराय के बरोबर पुन्न ~ रथयात्रा मं तीनों भाई बहिनी के प्रतिमा ल रथ मं बैठा के शहर भ्रमन कराय जाथे। मानता ही के जउन व्यक्ति भगवान जगन्नाथ के रथ ल खींचथे, वोला दुबारा जन्म नइ ले परय यानी वोला इही जन्म मं मुक्ति मिल जथे। इहू केहे जाथे के रथ खींचे ले सौ यज्ञ कराय के बरोबर फल मिलथे। भक्त ल अपार सुख समृद्धि के आशीर्वाद देथे अउ सब बाधा ले दूर कर देथे।
महाप्रसाद के महत्व ~ भगवान जगन्नाथ के रसोई दुनिया के सबले बड़े रसोई में जाथे। एक अकेला मंदिर जिहां के प्रसाद “महाप्रसाद” कहलाथे। yela पकाय सिरफ लकड़ी अउ माटी के सात बरतन के उपयोग किए जाथे। ये मंदिर के एक विशेषता रहस्य हे के चाहे कतको धूप हो, लेकिन मंदिर के परछाई कभू नइ बनय।
आस्था के केंद्र – पुरी के जगन्नाथ मंदिर भक्त मन के आस्था के केंद्र हे जिहां साल भर श्रद्धालु मन के भीड़ लगे रहिथे | मंदिर के निर्मान 12 वीं शदी मं गंग वंश के प्रतापी राजा अनंगभीम द्वारा होय रिहिसे | स्थापत्य कला अउ शिल्प कला के बेजोड़ उदाहरन हे | मंदिर अपन बेहतरीन नक्काशी अउ भव्यता के लिए जाने जाथे | रथ उत्सव के समय तो एखर छटा बेहद निराला होथे | ये दौरान भक्त मन ल सीधा प्रतिमा तक पहुंचे के मौका मिलथे | भगवान मंदिर से निकल भक्त मन के बीच खुद आथे |
विश्व प्रसिद्ध रथ यात्रा – जगन्नाथ पुरी मं रथ यात्रा महोत्सव सबले शानदार ढंग ले मनाय जाथे | देश दुनिया के हजारों लाखों श्रद्धालु भक्त ये ल देखे बर पुरी आथें | अतका भीड़ हो जथे के येला संसार के सबले बड़े उत्सव मं गिने जाथे |
ये उत्सव भगवान जगन्नाथ के सम्मान मं मनाय जाथे | जगन्नाथ ल विष्णु के दस अवतार मं ले एक अवतार माने जाथे | दस दिन के उत्सव के तैयारी अकती (अक्षय तृतीया ) के दिन श्री कृष्ण, बलभद्र अउ सुभद्रा के रथ निर्मान से शुरू होथे | महीना भर धार्मिक अनुष्ठान पूजा पाठ किये जाथे |
रथ के बनावट – भव्य विशाल रथ खास लकड़ी के बने होथे | मीनार मं सोन चांदी के परत मढ़े होथे, सुंदर चित्रकारी नक्काशी किये होथे | रथ देखतेच बनथे | जगन्नाथ जी का रथ 832 लकड़ी के टुकड़ा से बनाय जाथे | येमा 16 पहिया होथे | ऊंचाई 33 हाथ 5 अंगुल होथे | रथ के आवरन लाल पीला रंग के होथे | बलभद्र जी के रथ 763 लकड़ी के टुकड़ा ले बने 14 पहिया वाला 32 हाथ 10 अंगुल ऊंचा होथे | रथ के आवरन लाल नीला रंग के होथे | सुभद्रा जी के रथ 413 लकड़ी के टुकड़ा ले बने 12 पहिया वाला 31 हाथ ऊंचा होथे | रथ के आवरन करिया लोहा के रंग के होथे |
रथ के रस्सी खींचना बड़ पुन्न माने जाथे – रथ मं घोड़ा जुते दिखाये जा थे, लेकिन ये विशाल रथ मन ल मोटा रस्सी के सहारे आदमी मन खींचथें अउ अपन आप ल धन्य मानथें | श्री कृष्ण के अवतार जगन्नाथ के रथ यात्रा के पुन्न सौ यज्ञ के बराबर माने जाथे | मोक्ष भी मिलथे |
हर साल नवा रथ बनाय जाथे – ये मंदिर ले जुड़े एक महत्वपूर्ण सिद्धांत हे – ‘ दुनिया नाशवान हे ‘ | एखरे सेती हर साल नवा रथ बनाय जाथे | दूसर मंदिर मं जिहां एक बार प्रतिमा के प्रतिष्ठापन होय ले हमेशा बर स्थायी हो जथे, उहें जगन्नाथ पुरी के मंदिर मं हर बारा साल मं जब दू अषाढ़ परथे भगवान के नवा मूर्ति रखे जाथे | नीम विशेष के लकड़ी ले मूर्ति बनाय जाथे | मंदिर के रसम रिवाज पुनर्जनम ल दर्शाथे जउन ह हिंदू परंपरा के आधार स्तंभ हे |
तीनों मूर्ति ल रथ मं विराजमान करे के बाद परंपरागत ढंग ले प्रमुख द्वारा ‘ छेरापंहरा ‘ के रसम निभाय जाथे | रथ के सामने मुखिया ह सोन बुहारी से बुहारी कर सेवक होय के प्रमान देथें | दोपहर बाद अपार भक्त जन समूह के बीच रथ यात्रा शुरू हो जथे | लाखों के संख्या मं विभिन्न धरम के मनैया आस्तिक जन इहां आके रथ मं बइठे भगवान ल देख के धन्य हो जथें |
वइसे तो देश के नगर गांव मं रथ यात्रा निकाले जाथे | गजामूंग परसाद बांटे जाथे, फेर ओड़िसा के जगन्नाथ पुरी के रथ यात्रा के अलग महत्व हे, प्रभाव हे ,शक्ति हे| महाप्रभु जगन्नाथ के रथयात्रा सबले होथे खास।
• डॉ. नीलकंठ देवांगन
• संपर्क : 84355 52828
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