कविता आसपास : तारकनाथ चौधुरी
▪️
अंतर केवल इतना है
तुम्हारे आँगन
आज भी उतरती हैं गौरेया…
अपनी मधुर चहचहाट से
जगाती हैं तुम्हें
और मेरी नींद टूटती है
कागा के कर्कश ध्वनि से
अंतर केवल इतना है
हम दोनों के जागरण में
कि तुम हो निश्चिंत नई सुबह को पाकर
और मैं
अज्ञात के आगमन की सूचना पाकर
विचलित हूँ….
अंतर कितना है देखो-
गौरये और कागा में-
एक है सौभाग्य-समृद्धि का सूचक
तो दूसरा
जीवन के श्राद्ध का।
०००
▪️
किसे लिखूँ?
मोबाइल की शक्ल में
वो खूबसूरत का़तिल
बारी-बारी से ख़त्म कर गया
ख़तों की जिंदगियाँ…
क़ब्रों/मठों की तरह अब भी रखे हैं
पुराने संदूकों में…
पहला ख़त,आखि़री ख़त
यार का ख़त,प्यार का ख़त
दुआओं के वर्क में लिपटा
माँ की दुलार का ख़त…
बेनूर,बेवा सी खडी़ रहती है
सुहागन सी लगने वाली पत्र-पेटी
डाकिया हैरान है
उसके भीतर के खालीपन को देखकर
नज़राना पाने की सारी उम्मीदें
ख़त्म हो गई हैं कासिद की…
जी चाहता है लिखकर एक ख़त
लौटा लाऊँ उस खुगवार ज़माने को
पर किसे लिखूँ?
शक़ के घेरे में फँसे रिश्तों ने
बदल डाले हैं ठिकाने
ख़त मेरा लौट आयेगा बैरंग
और हो जायेगी जिंदगी
पहले से ज़्यादा बदरंग।।
०००
• संपर्क-
• 83494 08210
🟥🟥🟥