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संस्मरण : गुरु जीवन का मार्गदर्शन – डॉ. रौनक जमाल
यह मेरे बालक अवस्था की बात है। मेरे इंजिनियर पिता जी कीमती कोसे के कुर्ते पहना करते थे। और विदेशी कम्पनी की बनी हुई कैप्टन सिगरेट पिया करते थे। पिता जी इंजीनियर थे। ऊपर से गुस्से के भी बहुत तेज थे | हम बहन -भाइयों के अलावा बुआ जी, चाचा जी अड़ोसी -पड़ोसी के बच्चे वगैरह भी पिता जी से बहुत डरते थे। जमीदार होने की वजह से हमारी गाँव में बहुत बड़ी हवेली थी। पिता जी सरकारी नौकरी में थे । इसलिए गाँव में हमारे परिवार को बहुत आदर सम्मान दिया जाता था। यानि पिता जी से सब डरते थे | मुझे अच्छी तरह याद नहीं लेकिन हाँ कोई त्यौहार आने वाला था। पिता जी मुझे कपड़े वगैरह दिलाने के लिए पहली बार अपने साथ लेकर शहर गये थे। मैं पहली बार शहर जा कर और शहर में घूमकर बहुत प्रसन्न था ।पिता जी मुझे शहर की सड़कों व रास्तों के बार में समझते जा रहे थे | घुमते-घुमते और खरीदी करते करते चार बज गये थे। मुझे भूख भी लग रही थी और थकान की वजह से बैठने की इच्छा भी हो रही थी | मैंने पिता जी से कहा तो वो मुझे एक होटल में लेकर गए | खाना मँगवाया खाना खाए पिता जी ने खाना खाने के बाद अपने लिए चाय मँगवाई चाय पीने के बाद बिल देकर बाहर निकलने लगे तो पिता जी ने जेब से सिगरेट निकालकर काउन्टर पर रखे लाइटर से सिगरेट जलाई और धुआ छोड़ते हुए सड़क पर या गए | बोले बेटा सामने वाली गली से चलते है |
थोड़ी सकरी और गंदी जरूर है, लेकिन जब हम गली के उस पार निकलेंगे तो सामने बहुत बड़ा मार्केट है। वहा से बस स्टैन्ड भी निकट है हमने गली में प्रवेश किया | पिताजी सिगरेट पीते हुए मध्यम गति से चल रहे थे क्योंकि मेरे दोनों हाथों में समान था | पिता जी एक हाथ में भारी समान और दूसरे हाथ में सिगरेट थी | हम बात करते हुए आगे बढ़ रहे थे की अचानक सामने एक बुढ़ा व्यक्ति दिखाई दिया और पिता जी ने तेजी से पीछे की ओर मुह करके धुआ छोड़ और जलती हुई सीगरेट अपने जेब में डाल कर दूसरे हाथ का समान जमीन पर रख दिया और बूढ़े व्यक्ति के चरण स्पर्श करने झुक गए इतनी देर में सिगरेट ने कुर्ते की जेब को जला दिया और वो जेब से जमीन पर गिर गई थी जिस पर मैंने फौरन पैर रख दिया था। पिता जी ने सीधे खड़े होते हुए सुलग रही जेब को बुझाया और आदर से बोले .
गुरु जी.. यह मेरा बेटा है, चौथी कक्षा में पढ़ता है।
यह सुनकर मैंने भी उनके पैर छूए उन्होंने मुझे ढेर सारा आर्शीवाद दिया। थोड़ी देर वो और पिता जी इधर-उधर की बाते करते रहे और फिर वह चले गये। पिताजी ने मेरे एक हाथ का सामान ले लिया और हम सामान उठाकर आगे बढ़े तो मैंने पिताजी ये पूछा … ” ये आपके गुरूजी थे।
हा बेटा.. ये मुझे गणित और भौतिक पढ़ाया करते थे।” मैं अपनी मेहनत, लग्न और गुरुजी की कृपा से ही अच्छे
नम्बरो से पास हुआ करता था | गुरु जी हमेश मेरा मार्गदर्शन किया करते थे उन्होंने ही मुझे इंजीनियरिंग कॉलेज में भर्ती करवाया था वरना हमारे परिवार में कोई मैट्रिक भी पास नहीं कर पाया था । मैं गुरु जी का अहसान जीवन भर नहीं चुका पाऊँगा|
यह कहते हुए पिता जी सर गर्व से तन गया था। आज मै कोर्ट के मामूली क्लर्क के पद पर कार्यरत हु | पिताजी को गुजरे हुए बीस वर्ष बीत गए है | कोर्ट की मामूली सी नौकरी और यह बच्चों की पढ़ाई, शादी, माजी की दवादारू बहुत मुश्किल काम है |.. आज भी मुझे पिता जी और उनके गुरु जी की वो मुलाकात याद आती है तो मै सोचता हु की मेरे जीवन में भी उन जैसे कोई गुरुजी आता तो शायद मेरा जीवन भी सफल हो जाता…..
•अंतर्राष्ट्रीय साहित्यकार डॉ. रौनक जमाल
•संपर्क : 88390 34844
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