कविता
●तुम्हारी आँखें….
●लाल देवेंद्र कुमार श्रीवास्तव
●उत्तरप्रदेश
तुम्हारी झील सी आँखों को देखकर..
सबसे पहले मुझे हुआ प्यार का एहसास..
जीवन के लिए जी उठी जीने की आस..
तुम्हारी नीली आँखों में ख़ुद को..
हमेशा के लिए बसाने की हसरत..
अपने प्रेम के लिए कई बार..
असत्य की भी मैंने अपनाई फ़ितरत..
तुम्हारी आँखों में प्रेम की दिखती है..
एक सम्पूर्ण अवर्णनीय परिभाषा..
चाहत की कितनी छुपी है आशा..
शायद अगर ये समुंदर जैसी..
तुम्हारी आँखों में मैं न झाँकता..
तो हमारा प्यार न चढ़ता इतना परवान..
एक दूसरे से न होती स्पर्श की पहचान..
शुक्रगुज़ार हूँ इन सुंदर सी आँखों का..
जिसने मुझे चलना सिखाया..
‘मैं’ से ‘हम’ बनाया..
जीवन के सौंदर्य का बोध कराया..
एक दूसरे का साथ होने से हमारे जीवन में..
कितनी ख़ुशियाँ, कितनी उमंग..
हर तरफ़ खिले हों जैसे गुलाब के फूल..
आनंद के अनगिनत तरंग..
एक दूसरे के आँखों में झाँकने से..
एक अप्रितम सुखद अनुभूति
और जी चाहता है सदैव हम रहे संग..
●लाल देवेंद्र कुमार श्रीवास्तव की कविताएं देश की तमाम पत्र-पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित हो रही है
●कई पत्रिकाओं का संपादन, सम्मान प्राप्त, लाल देवेंद्र कुमार श्रीवास्तव जी ग्राम-कैतहा, पोस्ट-भवानीपुर, जिला-बस्ती,उत्तरप्रदेश के निवासी हैं
●छत्तीसगढ़ आसपास में उनकी पहली रचना है, अपनी प्रतिक्रिया से अवगत करायें, संपादक