लघुकथा
4 years ago
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●याददाश्त और जीवन की कटुता
-महेश राजा
भाई साहब कह रहे थे,क्या बात है,आजकल कुछ याद नहीं रहता..बात करते-करते भूल जाता हूं…..किसी को बहुत दिनों बाद देखता हूं या मिलता हूं तो पहचानने में मुश्किल होती है।
मैने उन्हें समझाया कि ऐसा थकान या बेवजह तनाव के कारण होता है।साथ ही वह बात जो दिल पर घाव या चुभन नहीं छोड जाती,हमारी याददाश्त से बाहर हो जाती है।
भाई साहब उम्र मे मुझसे काफी बडे है।76 वर्ष पार कर चुके है लेकिन मुझसे मित्र वत व्यवहार करते है।मैंने कहा-“सुबह शाम दूध के साथ बादाम लिजिए…. याददाशत के लिये फायदेमंद होगा।
भाई साहब दार्शनिक अंदाज मे हंसे,फिर बोले,-“दूध बादाम से कुछ नहीं होने वाला।मैं तो यह सोच रहा था कि ईंसान की पूरी याददाश्त ही खो जाये तो कितना अच्छा हो….जिन्दगी की सारी कटुता इस याददाश्त की वजह से ही तो.है”।
chhattisgarhaaspaas
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