रचना आसपास : ओमवीर करन
• गज़ल
• ओमवीर करन
[ भिलाई : छत्तीसगढ़ ]
तुमको भुलाने में वक्त लगा है
दिल को समझाने में वक्त लगा है
गम छुपाने का हुनर अब आया है
हमको मुस्कुराने में वक्त लगा है
कुछ तुमने कुछ दुनिया ने दिखाई
सच्चाई नज़र आने में वक्त लगा है
सब मेहनत नही कुछ किस्मत भी है
तुमको खोकर पाने में वक्त लगा है
तुम किसी की किस्मत मैं किसी का सिंदूर
अपना अतीत भुलाने में वक्त लगा है
ज़िंदगी से निकलकर मेरी शायरी में आ गई तुम
तुमको वहाँ से यहाँ तक आने में वक्त लगा है
मैं तो दीवाना था सो जिस्म की ख्वाहिश ही नही थी तुमसे
मोहब्बत तेरी रूह तक पहुँचाने में वक्त लगा है
मौत में समाकर कुछ लोग वापस भी लौटे हैं
तुम भी लौटोगी ये आस लगाने में वक्त लगा है
तुमसे बिछड़कर मर जाऊंगा ऐसा सोचता था मैं
मैं ही जानता हूँ कैसे मुझको जिंदा नज़र आने में वक्त लगा है
एक शायर को कब समझी है ये दुनिया
नासमझ दुनिया को एक शायर बनाने में वक्त लगा है
एक एक शेर के लिए खाक छानी है करण ने
सो महफ़िल में ये ग़ज़ल लाने में वक्त लगा है.
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