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विश्व शांति और पर्यावरण संरक्षण की शिक्षा हमारे वैदिक साहित्य में – आचार्य डॉ. महेशचंद्र शर्मा : आकाशवाणी रायपुर से प्रसारित डॉ. महेशचंद्र शर्मा के ‘चिंतन’ की श्रोताओं ने की सराहना
‘छत्तीसगढ़ आसपास’ [भिलाई]
साहित्य-संस्कृति मर्मज्ञ आचार्य डॉ महेश चन्द्र शर्मा का कहना है कि विश्व शांति और पर्यावरण संरक्षण की शिक्षा भी हमारे वैदिक साहित्य में है। उन्होंने कहा कि “ऋग्वेद के संज्ञान सूक्त में सामाजिक समरसता सह अस्तित्व और आपसी सौहार्द की शिक्षा दी गई है। यह वेद जुआ न खेलने और खेती करने की भी सीख देता है। हमारे ऋषि प्रधान और कृषि प्रधान देश का मूल वेदों में निहित है।
देश-विदेश के अनेक सफल शैक्षणिक और साहित्यिक भ्रमण कर चुके,लेखक एवं प्रवक्ता आचार्य डॉ. शर्मा ने आकाशवाणी रायपुर से प्रसारित “चिन्तन” और “धर्म ग्रन्थों से पाठ” के अन्तर्गत उक्त विचार व्यक्त किये। इन लोकप्रिय कार्यक्रमों के अनेक श्रोताओं ने उनकी सराहना करते हुवे बधाई दी। आचार्य डॉ.शर्मा ने कहा कि वेदों के व्यवस्थापक वेदव्यास ने महाभारत में भी जुए की निंदा की है। वे युधिष्ठिर को धर्म का विशाल वृक्ष बताते हुए अर्जुन को स्कन्ध और भीम को उसकी शाखा बताते हैं। नकुल-सहदेव उसके फूल-फल हैं, जबकि परमात्मा योगेश्वर श्रीकृष्ण,ऋषि-मुनि और विप्र उस विशाल धर्म वृक्ष की गहरी-लम्बी जड़ें हैं।
युधिष्ठिर,भीम, अर्जुन और नकुल-सहदेव क्रमशः आकाश, वायु, अग्नि और जल-पृथ्वी के प्रतीक हैं। वैदिक शान्ति पाठ में विश्व शान्ति की प्रार्थना की जाती है। आकाश, अंतरिक्ष, पृथ्वी, वनस्पतियों और औषधियों की शान्ति की कामना की जाती है। आज विश्व शान्ति की महती आवश्यकता है। आचार्य डॉ.शर्मा ने “अनेकता में एकता, भारत की विशेषता” को रेखांकित करते हुए राष्ट्रीय विकास में इसकी महत्ता को भी बताया। दान की महिमा बताते हुए उन्होंने कहा कि धन की तीन गतियां दान,उपभोग और नाश होती हैं। जो न दान करता है और न ही उपभोग करता है, उसकी तीसरी गति अर्थात् नाश निश्चित है। परोपकार या दान ही धन की श्रेष्ठ गति है। इसलिये कहा गया कि हाथ की शोभा कंगन से नहीं दान से होती है।
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