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विशेष आलेख : ‘वायनाड’ का जीवन संघर्ष – बृंदा करात [With Original Article in English] हिंदी में अनुवाद- संजय पराते

2 months ago
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🟥 ‘छत्तीसगढ़ आसपास’ के पाठकों के लिए ‘माकपा’ पोलिट ब्यूरो की सदस्य व महिला आंदोलन की अग्रणी नेत्री बृंदा करात का अंग्रेजी में लिखा यह आलेख हिंदी और अंग्रेजी दोनों में ही प्रकाशित कर रहे हैं- प्रदीप भट्टाचार्य, संपादक

उस छोटी सी लड़की की मुस्कान ऐसी है कि वह सबसे अंधेरी जगह को भी रोशन कर सकती है। अपने छोटे हाथों को फैलाते हुए वह हम तीन अजनबियों, पी.के.श्रीमती, सी.एस. सुजाता और मुझसे, इस तरह अभिवादन करती है, जैसे कि वह हमें पहचान7 हो। हम वायनाड त्रासदी के प्रभावित परिवारों से मिलने के लिए मेप्पडी में हैं। दो महीने बाद भी, आघात इतना गहरा है कि हम जिन बचे हुए लोगों से मिले, उनमें से कोई भी 30 जुलाई की रात की भयावहता के बारे में नहीं बोलना चाहता या फिर इस बारे में कि वे कैसे बच गए। सीपीआई (एम) क्षेत्रीय समिति के सचिव कॉ. हारिस उन सभी प्रभावित परिवारों के साथ नियमित संपर्क में हैं, जिन्हें प्रमुख प्रभावित क्षेत्रों – चूरामाला, मुंडक्कई, पुंजरीमट्टम और अन्य – से मेप्पडी में स्थानांतरित किया गया है। वह और अन्य स्थानीय कॉमरेड बताते हैं कि उस रात क्या हुआ था — भारी बारिश, रात 2 बजे ताबड़तोड़ जरूरी कॉल, विनाशकारी भूस्खलन, कीचड़ और दलदल, पत्थरों और चट्टानों में बचे लोगों की तलाश आदि। जबकि अन्य सुर्खियां लोगों का ध्यान खींचती हैं, यहां वायनाड में राज्य सरकार और पार्टी अभी भी प्रभावित परिवारों की मदद के लिए चौबीसों घंटे काम कर रही है। कॉमरेड श्रीमती और सुजाता जनवादी महिला समिति की इकाईयों द्वारा एकत्रित सामग्री लेकर पहले भी राहत शिविरों में आ चुकी हैं। मैं इस बार इन दोनों साथियों के साथ प्रभावित परिवारों के साथ समय बिताने और जीवन को संभालने के लिए बचे हुए लोगों द्वारा, राज्य सरकार द्वारा और स्वयंसेवकों द्वारा किए जा रहे अथक प्रयासों को समझने के लिए आई हूं। त्रासदी और निराशा में, मेरे लिए यह देखना एक प्रेरणादायक अनुभव था कि टीवी कैमरों और प्रचार से दूर रहते हुए, कैसे कम्युनिस्ट मानवता और प्रतिबद्धता के साथ लोगों के जीवन में बदलाव लाते हैं। मैंने प्रभावित परिवारों के साथ सीधे बातचीत के माध्यम से सीखा कि कैसे एलडीएफ सरकार के व्यापक सर्वसमावेशी दृष्टिकोण ने मानवीय सहायता का ढांचा खड़ा किया है।

इस बच्ची का नाम नायसा है और वह सिर्फ तीन साल की है। ”वह हमारे परिवार के लिए एक अप्रत्याशित उपहार थी,” बच्ची की मां जसीला हमें बताती है, ”वह अपने भाईयों के कई साल बाद पैदा हुई थी।” अपने बेटों का जिक्र करते हुए वह रो पड़ती है और बोल नहीं पाती। एक साथी आगे बताती है : यह परिवार चूरामला में अपने खुद के घर में रहता था, जो भूस्खलन के केंद्रों में से एक है। उसका पति और उसके दो बेटे, जिनमें से एक 16 साल का और दूसरा 12 साल का था, और उसके पति के माता-पिता सहित उसके परिवार के छह सदस्य मारे गए। अपनी छोटी बेटी को गले लगाते हुए जसीला कहती है — ”अब यह मेरे पास है, सिर्फ यही।” वे जसीला की मां जमीला के साथ किराए के मकान में रह रहे हैं। मैं हैरान थी कि नायसा क्यों जानी-पहचानी लग रही है। श्रीमती ने मुझे बताया कि यह वही छोटी बच्ची थी, जो वायनाड राहत शिविर के दौरे पर प्रधानमंत्री के पास हंसी-खुशी से गई थी तथा उनके चश्मे के साथ खेलते हुए उसका एक वीडियो भी बनाया गया था। इस वीडियो को वायरल किया गया है, जो यह दर्शाता है कि प्रधानमंत्री को उनकी कितनी परवाह है। क्या वीडियो लाइट बंद होने के बाद उन्हें कभी भी इस छोटी बच्ची की याद आई? या फिर वायनाड की ही? क्या उन्हें भावनात्मक तनाव की सीमा का भी एहसास है?

जिन लोगों से हम मिले, उनमें 12 परिवारों के जीवित बचे लोग थे, जिन्होंने कुल मिलाकर 70 सदस्यों को खो दिया था। जिन माताओं ने अपने बच्चों को खो दिया है, उनका साहस और सम्मान जितना दिल दहला देने वाला था, उतना ही चौंकाने वाला भी था। 30 साल की एक युवा महिला सयाना अपने पति अनीश से अपने तीन प्यारे बच्चों, मिवेद, ध्यान और ईशान, के नाम बताने के लिए कहती है। वह कहती है, “वे छोटे थे, बहुत छोटे थे। सबसे बड़ा 9 साल का, दूसरा 7 साल का और सबसे छोटा, मेरा ईशान, सिर्फ 4 साल का। लेकिन वे नहीं बचे।हम कैसे बचे, हमें नहीं पता।” उसके सिर और माथे पर चोटों के निशान हैं, जिसके लिए उसे सर्जरी करानी पड़ी है और जो अभी भी ठीक हो रही है। उनके पति अनीश जो पेशे से ड्राइवर थे, अपने बच्चों के अलावा अपने माता-पिता और अपने चाचा और चाची सहित उन्होंने अपने परिवार के सात सदस्यों को खो दिया है। अब पति-पत्नी, अपने प्रियजनों के बिना, हर आने वाले दिन का सामना करने में एक-दूसरे की मदद करते हैं।

सायना से सटकर एक छोटा लड़का बैठा है, जो अपनी बड़ी-बड़ी खूबसूरत आंखों से उसे गौर से देख रहा है। जब मैं उसके पास जाती हूं, तो वह मुझे एक चमकदार मुस्कान देता है। वह नौ साल का लड़का अविगत है। उसके चेहरे और सिर पर गंभीर चोटों के निशान हैं। उसके माथे की त्वचा अभी तक ठीक नहीं हुई है। उसके बायें हाथ पर प्लास्टर चढ़ा हुआ है। वह भूस्खलन के दलदल में पाया गया था, बमुश्किल जीवित। कोझिकोड के एक अस्पताल में ले जाया गया, जहां समर्पित डॉक्टरों ने उसकी जान बचाई। उसकी तस्वीर, जिसमें वह मुश्किल से पहचाना जा सकता था, उसके परिवार का पता लगाने के लिए प्रसारित की गई। बचाई गई सायना को बताया गया कि ऐसा ही एक बच्चा मिला है। उसे उम्मीद थी कि यह बच्चा उसका ही होगा। लेकिन जब उसने तस्वीर देखी, तो उसने अनुमान लगाया कि बच्चा कौन हो सकता है। वे एक ही गांव में रहते थे, बच्चे साथ-साथ खेलते थे। अविगत की मां रमिया बहुत दूर पाई गई। उसके फेफड़े मिट्टी से बुरी तरह प्रभावित थे, उसका कंधा और पसलियां टूट गई थीं, उसका पैर टूट गया था। उसे भी तुरंत चिकित्सा सहायता मिली और वह अपनी गंभीर चोटों के बावजूद बच गई। उसने अपने बेटे को पा लिया। उसके पति महेश, उसके माता-पिता और एक अन्य रिश्तेदार की मृत्यु हो गई — छह लोगों के परिवार में से सिर्फ़ दो ही जीवित बचे हैं।

हमने रेजिना से मुलाकात की, जो नगरपालिका में कार्यरत है। उसने अपने पति और दोनों बच्चों को खो दिया है। चूरामाला में साथ रहने वाले उसके आठ सदस्यीय परिवार में से केवल रेजिना और उसका एक भतीजा ही जीवित बचे हैं। रेजिना गंभीर रूप से घायलों में से एक थी। उसे सर्जरी की आवश्यकता थी और अब उसके माथे पर घाव भरते हुए देखे जा सकते हैं। वह अपनी बहन के साथ रहती है। वह काम पर वापस जाना चाहती है, लेकिन कहती है कि उसे किसी से बात करने में कठिनाई होती है। वह कहती है कि उसे समय चाहिए, यद्यपि वह जानती है कि अपने परिवार को खोने के आघात को समय ठीक नहीं कर सकता।

और उन बच्चों का क्या, जो अपने पूरे परिवार को खोने के बाद बच गए हैं? हम साजिद यूसुफ से मिलते हैं, जो एक 15 वर्षीय किशोर है, पतला और कमजोर। वह कक्षा 10 का छात्र है और चुलियोद गांव में रहता था। उसने अपना पूरा परिवार, अपने माता-पिता, अपनी दो बहनों और अपने दादा-दादी को खो दिया है। लड़का धीरे से बोलता है। “मैं अपनी बुआ सानिया के साथ रह रहा हूं, जो मेरे पिता की बहन है। वह भी गमगीन है, क्योंकि उसने अपने दो भाइयों, मेरे पिता और उनके छोटे भाई को खो दिया है। मुझे एक स्कूल में दाखिला मिल गया है, लेकिन मुझे पढ़ाई करने में मुश्किल होती है।” वह दूसरी ओर देखता है और फिर कहता है, “मुझे अपनी बहनों, अपनी मां और पिता की याद आती है, मैं उनके बारे में सोचता हूं, लेकिन मैं अपना रोना रोकने की कोशिश करता हूं।” स्नेहा 22 वर्ष की है, जो उसकी बातें ध्यान से सुन रही है। वह उसके दुख को समझती है। चार्टर्ड अकाउंटेंसी की छात्रा स्नेहा उस सप्ताह अपने गांव चूरीमाला से दूर अपनी परीक्षा की पढ़ाई कर रही थी। उनका नौ सदस्यीय परिवार तीन घरों के समूह में एक दूसरे के करीब रहता था। उसके परिवार के नौ सदस्य मारे गए, जिनमें उसके माता-पिता और दो भाई भी शामिल हैं। परिवार में कोई भी जीवित नहीं बचा। उसकी एक बड़ी बहन यूके में नर्स के रूप में काम करती है। यह साहसी युवती वर्तमान में अपनी मौसी के साथ रह रही है और अपनी परीक्षा पूरी करने की कोशिश कर रही है। फिर छह साल की एक छोटी लड़की, सिदारते मुन्ता, अपनी मौसी की गोद में है। बच्ची ने अपने माता-पिता, दादा-दादी को खो दिया है और अपने सात सदस्यीय परिवार में केवल वह ही बच पाई है। जिष्णु 25 साल का है। वह सऊदी अरब में काम करता है और अपने परिवार को पैसे भेजता है, जो मुंडकाई के पुंजिरत्तम में रहते थे। यह वह गांव है, जो पहाड़ी की चोटी पर था और जहां से भूस्खलन शुरू हुआ था। उसने अपने परिवार के नौ सदस्यों को खो दिया, जिसमें उसके माता-पिता और भाई-बहन शामिल थे। केवल उसका छोटा भाई, जिसे रीढ़ की हड्डी में गंभीर चोट आई थी, बच गया। एक अन्य युवक, प्रणव, जो एक रिसॉर्ट में काम करता था, उस रात मुंडकाई में अपने घर से बाहर था। वह आठ सदस्यीय परिवार में एकमात्र जीवित व्यक्ति है।

ये बचे हुए लोग उन कई अन्य परिवारों में से हैं, जिनसे हम मिले हैं — वे सभी अपने प्रियजनों और अपने जीवन में सब कुछ खोने के दुख और आघात से निपट रहे हैं। वे अपने जीवन को फिर से ढर्रे पर लाने के काम में लगे हैं। यह वह संदर्भ है, जिसमें केरल सरकार और वहां के लोगों ने दिखाया है कि देश के बाकी हिस्सों के लिए केरल मॉडल क्यों है। जैसा कि सबको ज्ञात है और दस्तावेजों से पुष्ट है, 30 जुलाई की त्रासदी के तत्काल बाद अगले दिन से ही आधिकारिक एजेंसियां और स्वयंसेवक बचाव कार्यों में लग गए थे। परिवारों की मदद और बचाव के लिए राजनीतिक दलों में एकजुटता थी। 9000 से अधिक प्रभावित लोगों को राहत शिविरों में स्थानांतरित किया गया था। उनमें से कई, जिनके घर नष्ट नहीं हुए थे, वे कुछ हफ्तों के बाद घर जा चुके है। राज्य सरकार ने चार कैबिनेट मंत्रियों की एक टीम नियुक्त की थी, जो एक महीने तक वायनाड में रही, निगरानी और जरूरतों का आकलन करने और समन्वय करने में उसने मदद की। मंत्रियों के मौके पर किए गए इस हस्तक्षेप के कारण ही विभिन्न क्षेत्रों में सरकारी हस्तक्षेप संभव हो सका तथा भविष्य की आवश्यकताओं का आकलन संभव हो सका।

यह महत्वपूर्ण है कि 2018 में बाढ़ आने के अनुभव के बाद, एलडीएफ सरकार ने सभी पंचायतों में आपदा प्रबंधन दल का गठन किया था — जिसमें स्थानीय निकाय के निर्वाचित प्रतिनिधियों के साथ-साथ आधिकारिक एजेंसियों और नागरिक स्वयंसेवकों का संयोजन था। इन आपदा दलों के पास सभी प्राकृतिक आपदा समस्याओं से निपटने के लिए संचार के लिए समर्पित व्हाट्सएप समूहों के माध्यम से अपना स्वयं का नेटवर्क है। वायनाड में भी, ये दल सबसे पहले मौके पर पहुंचे। राहत शिविरों में परिवारों को उनकी तत्काल जरूरतों के लिए आधिकारिक एजेंसियों द्वारा आपूर्ति किए गए भोजन और अन्य सामग्रियों से मदद की गई। राजनीतिक दलों और अन्य संगठनों से उदारतापूर्वक दान मिला। बहरहाल, परिवार अपना खुद का स्थान चाहते थे। यहीं पर, सरकार द्वारा बचे लोगों के साथ घनिष्ठ बातचीत के बाद उनकी जरूरतों का आकलन करने के फैसले काफी सराहनीय हैं। कुडुम्बश्री समूहों ने भी ऐसे आकलन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जिला प्रशासन के मार्गदर्शन में, जिसका नेतृत्व एक महिला कलेक्टर कर रही थी और जिन्होंने सभी प्रकार के आपदा प्रबंधन के कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, 250 कुडुम्बश्री महिला कार्यकर्ताओं ने 1009 परिवारों का सर्वेक्षण किया और उनकी वर्तमान स्थिति और जरूरतों के बारे में विस्तृत जानकारी एकत्र की। इस डेटा का उपयोग प्रत्येक प्रभावित परिवार के लिए सूक्ष्म नियोजन के लिए किया जा रहा है।

इस प्रकार सरकार ने निर्णय लिया कि सभी बचे हुए लोगों को किराए के आवास के लिए धन के प्रावधान के माध्यम से अपने स्वयं के स्थान पर रहने का अवसर दिया जाना चाहिए। यह एलडीएफ सरकार का सबसे संवेदनशील दृष्टिकोण है, अन्य स्थानों के विपरीत, जहां लोगों को महीनों तक राहत शिविरों में रहना पड़ता है। प्रत्येक परिवार को किराए के रूप में हर महीने 6000 रुपये की सब्सिडी दी जाती है। बड़ी संख्या में बचे हुए लोगों को राहत शिविरों से ऐसे किराए के स्थानों में जाने में सक्षम बनाया गया है। वे परिवार, जो रिश्तेदारों के साथ रह रहे हैं, वे भी किराया सब्सिडी का लाभ उठा सकते हैं। हमने पाया कि प्रभावित क्षेत्र के करीब वायनाड के विभिन्न इलाकों के लोग बचे हुए लोगों को घर उपलब्ध कराने में उदार और दयालु रहे हैं। हम जिन बचे हुए लोगों से मिले, उनमें से अधिकांश बागान मजदूरों, कृषि मजदूरों, दिहाड़ी मजदूरों या ड्राइवरों, वेल्डर, बढ़ई और मजदूर वर्ग के परिवारों के थे। हमें पीड़ितों ने बताया कि स्वास्थ्य विभाग ने नियमित रूप से उनके घरों में जाकर उनसे मिलने के लिए प्रशिक्षित परामर्शदाताओं को नियुक्त किया है। यह भी काफी अनोखा प्रयास है। आमतौर पर आपदा के पीड़ितों को ही इलाज के लिए अस्पतालों में जाने की उम्मीद होती है, लेकिन यहां सरकार घर-घर जाकर उनका इलाज कर रही है। इसके अलावा कुदुम्बश्री के सदस्य भी नियमित रूप से परिवारों की मदद करने के लिए घरों में जाते हैं।

प्रत्येक प्रभावित परिवार के दो वयस्क सदस्यों को प्रतिदिन 300 रुपये की सहायता मिल रही है, जो कि 18,000 रुपये प्रति माह बनती है। यह सरकारी राहत उपायों का एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है, क्योंकि वर्तमान में अधिकांश सदस्य अभी भी काम करने में असमर्थ हैं। उन्होंने हमें बताया कि यह केवल इस सरकारी दृष्टिकोण के कारण है कि वे जीवित रहने में सक्षम हैं। घायलों को मुफ्त चिकित्सा उपचार के अलावा अतिरिक्त वित्तीय सहायता मिल रही है। मुंडाकई में सरकारी निम्न प्राथमिक विद्यालय और वेल्लारमाला में उच्चतर माध्यमिक सरकारी विद्यालय नष्ट हो गए हैं। इससे लगभग 600 छात्र प्रभावित हुए हैं। प्रत्येक बच्चे को वर्दी और किताबें प्रदान की गई हैं। उन्हें स्कूलों में स्थानांतरित कर दिया गया है और उनके परिवहन के लिए तीन सरकारी बसें समर्पित की गई हैं।

अभी भी बहुत से निवासी “लापता” हैं। इसका मतलब है कि शव नहीं मिले हैं, जिससे जीवित परिवार के सदस्यों पर भावनात्मक तनाव बढ़ गया है। डीएनए रिपोर्ट के माध्यम से परिवार के कनेक्शन को स्थापित करने के लिए शवों की पहचान करना सबसे कठिन कामों में से एक है। भूस्खलन इतना भयंकर था कि कई मामलों में शवों के टुकड़े-टुकड़े हो गए थे। हम उन बचे हुए लोगों से मिले, जो डीएनए रिपोर्ट और अपने प्रियजनों के शवों या शरीर के अंगों की पहचान का इंतजार कर रहे हैं। यहां भी सरकार और खासकर स्वास्थ्य और फोरेंसिक विभाग डीएनए नमूनों का मिलान करने के लिए चौबीसों घंटे काम कर रहे हैं। शवों की ऐसी पहचान के साथ-साथ परिवारों के लिए भावनात्मक तनाव का एक कानूनी पहलू भी है क्योंकि आपदा प्रबंधन के नियमों के अनुसार प्रत्येक मृतक के लिए आठ लाख रुपये का मुआवजा केवल पहचान की पुष्टि के बाद ही दिया जा सकता है। अभी भी ऐसे परिवार हैं, जिन्हें मुआवजा नहीं मिला है, क्योंकि डीएनए प्रक्रिया चल रही है। जिन नाबालिगों ने अपने माता-पिता दोनों को खो दिया है, उन्हें दस लाख मिलेंगे।

ये कुछ ऐसे तात्कालिक उपाय हैं, जो राज्य सरकार द्वारा उठाए जा रहे हैं। दीर्घकालिक योजना दो टाउनशिप बनाने की है, जहाँ हर उस परिवार को घर मुहैया कराया जाएगा, जिसने अपना घर खो दिया है। भूस्खलन की आशंका वाले क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को इन टाउनशिप में सुरक्षित क्षेत्रों में स्थानांतरित किया जाएगा और इसके लिए भूमि की पहचान पहले ही कर ली गई है। बुनियादी सुविधाओं, स्कूलों और अस्पतालों की भी योजना बनाई गई है। जबकि राज्य सरकार वायनाड में प्रभावित क्षेत्रों के पुनर्वास के लिए कड़ी मेहनत कर रही है, केंद्र सरकार ने वायनाड के लोगों के साथ विश्वासघात किया है।

वायनाड पहुंचने से एक दिन पहले हमें बताया गया कि केंद्र सरकार ने विभिन्न राज्यों के लिए आपदा राहत कोष में केंद्र के योगदान की घोषणा की है। महाराष्ट्र को 1492 करोड़ रुपए मिले; आंध्र प्रदेश को 1036 करोड़; असम को 716 करोड़; बिहार को 655.60 करोड़; गुजरात को 600 करोड़ और केरल को सिर्फ़ 145.60 करोड़ रुपए। यह राक्षसी सरकार ही हो सकती है, जो राहत के नाम पर राजनीति करते हुए इस तरह का संकीर्ण रवैया अपनाए। राज्य सरकार ने 2000 करोड़ रुपए मांगे थे। यह केरल और हर परिवार के लिए बहुत बड़ा मुद्दा है। कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व वाली यूडीएफ के केरल से 19 सांसद हैं, लेकिन संसद में इस मुद्दे पर उनकी तरफ़ से चुप्पी ही रही है।

हमें पार्टी कार्यकर्ताओं से मिलने का मौका मिला, जो आपदा की रात से ही बचाव और राहत कार्यों में शामिल थे और जो प्रभावित परिवारों के साथ अपना काम जारी रखे हुए हैं। प्रभावित क्षेत्रों में चूरामाला स्थानीय समिति के सचिव कॉ. बैजू हैं। वहां शाखा सचिव कॉ. अब्बास हैं। मुंदकई में शाखा सचिव कॉ. राशिद हैं। इस समय पूरे भारत में पार्टी सम्मेलन आयोजित किए जा रहे हैं। एक सक्रिय शाखा और शाखा सचिव का महत्व इन साथियों द्वारा किए गए जबरदस्त काम से पता चलता है। उनकी मदद डीवाईएफआई नेता और पार्टी क्षेत्रीय समिति के सदस्य कॉ. फ्रांसिस ने की, जिन्होंने दूसरों को बचाने के लिए अपनी जान जोखिम में डालकर अग्रणी भूमिका निभाई। जनवादी नौजवान सभा की स्थानीय इकाइयों ने भी जबरदस्त काम किया है। डीवाईएफआई के पास एक “युवा ब्रिगेड” है, जिसे संकट के समय मदद और बचाव, प्राथमिक चिकित्सा आदि में बुनियादी प्रशिक्षण प्राप्त है। उनके कार्यालयों में आवश्यक सामग्री भी है – रस्सी, मशालें, यहां तक कि पोर्टेबल मोटर कटिंग मशीनें भी, जो उस भयानक रात में काम आईं।

हमने उनकी कहानियां बहुत ही तथ्यात्मक तरीके से और बिना किसी आत्म-गौरव के सुनीं कि कैसे उन्होंने एक-दूसरे के साथ समन्वय किया, कितने परिवारों को वे बचा पाए, शवों को खोजने के लिए कितना संघर्ष करना पड़ा, सरकार का मार्गदर्शन आदि। हम समझ गए कि उन्होंने खुद को कितना जोखिम में डाला था — वे नायक हैं, जिन पर हम गर्व कर सकते हैं और साथ ही उन सभी स्वयंसेवकों पर भी, जिन्होंने उनके साथ काम किया है। मुझे लगता है कि यह समुदाय आधारित एकजुट काम की सही झलक है, जो केरल का प्रतीक है — युवा पुरुष, जिनके नाम अलग-अलग धार्मिक समुदायों का प्रतिनिधित्व करते हैं — सभी पार्टी और नौजवान सभा सभा द्वारा लोगों की सेवा करने के लिए प्रेरित एकजुट इच्छा के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। वायनाड में पार्टी द्वारा सभी स्तरों पर किया जा रहा काम पूरी पार्टी के लिए प्रेरणास्पद है।

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A View of ‘WAYANAD’
[ Article by Brinda Karat ]

The little girl has a smile that would light up the darkest space. Stretching out her little hands, she greets us, three strangers, P.K.Sreemathi, C.S. Sujatha and myself as though she knows us, We are here in Meppady to meet affected families of the Wayanad tragedy. Even two months later, so deep is the trauma that none of the survivors we meet speak about the horror of that night on July 30th, or how they survived. The CPI(M) area committee secretary Com Haris is in regular contact with all the affected families who have been relocated to Meppady from the main affected areas of Chooramala, Mundakkai, Punjirimattam and others. He and other local comrades relate what happened, the heavy rains, the desperate urgent calls at 2 am, the devastating landslide, the search for survivors in the mud and sludge, the stones and rocks. While other headlines occupy public attention, here in Wayanad the state government and party are still working 24/7 to help the affected families. Comrades Sreemathi and Sujatha have been to the relief camps earlier, bringing material collected by AIDWA units. I came with both of them this time to spend time with the affected families and to understand the efforts being made to rebuild lives— by the survivors, by the state government and by tireless volunteers. In tragedy and despair, for me it was an inspiring experience to see how communist humaneness and commitment, away from TV cameras and publicity make a difference to peoples lives. I learnt through direct interaction with the families how the LDF government’s comprehensive approach has provided a framework of humane succour.

The child’s name is Naisa, just three years old. “She was an unexpected gift for our family,” the child’s mother Jaseela tells us, “she was born many years after her brothers.” She breaks down after mentioning her sons, unable to speak. A comrade continues : The family lived in their own home in Chooramala, one of the centres of the landslide. Her husband and her two sons, one 16 years old, the other 12, and her husband’s parents— six members of her family were killed. Hugging her little daughter, Jaseela says — “I have her now, only her. They are living with Jaseela’s mother Jamila in a rented house. I was puzzled as to why Naisa looked familiar. Sreemathi tells me it was this little girl who had gone so willingly to the Prime Minister on his visit to a Wayanad relief camp, filmed in a video, playing with his spectacles— a viral video to show how much the Prime Minister cares. Did he ever remember this little girl after the video lights were switched off? Or Wayanad? Does he even comprehend the extent of emotional stress?

Among those we met were survivors of 12 families who between them had lost 70 members. The courage and dignity of mothers who have lost their children was striking as much as it was heartbreaking. Sayana a young woman in her thirties looks to her husband Anish to spell out the names of their three beloved children, their sons Mived, Dhyan and Ishan. She says “they were young, so young the eldest 9, the second 7 and the youngest, my Ishan, just 4– but they died, all of them. How we survived we do not know. “ She herself bears the marks of the injuries she suffered on her skull and forehead requiring a surgical procedure which is still healing. Her husband Anish a driver by profession apart from his children, lost his parents and his uncle and aunt. They lost seven members of their family. Today husband and wife support each other to face each day without their loved ones.

There is a little boy sitting quite near Sayana, looking at her intently with his beautiful big eyes. When I reach out to him he gives me a dazzling smile. He is Avigath a nine year old boy. His face and head bear marks of serious injuries. His forehead with his skin peeled off is yet to heal. His left arm is in a plaster. He was found in the mud of the landslide, barely alive. Rushed to a hospital in Kozhikode, the dedicated doctors saved his life. His photograph in which he is barely recognizable was circulated to locate his family. Sayana who had been rescued was told of such a child being found. She had hoped that this child was one of her’s. But when she saw the photograph she suggested who the child could be. They lived in the same village, the children had played together. Avigath’s mother Ramiya was found far away. Her lungs were badly affected by the mud, her shoulder and rib cage fractured, her leg broken. She too was helped by the prompt medical intervention and she survived her acute injuries. She was reunited with her son. Her husband Mahesh, his parents and another relative died—in a family of six, just two of them survived.

We met Regina, employed in the municipality. She lost her husband and both her children. Of her eight member family who lived together in Chooramala only Regina and a nephew survived. Regina was among the seriously injured. She required surgery and one can see the healing wounds on her forehead. She lives with her sister. She wants to go back to work but says she finds it difficult to converse with anyone. She needs time she says. She says she knows though that time does not heal the trauma of losing her family.

And what of the children who survived losing their entire families? We meet Sajid Yusuf, a 15 year old adolescent, thin and frail. He is a Class 10 student and was living in Chulliyod village. He lost his entire family, his parents, his two sisters and his grandparents. The boy speaks softly. “ I am living with my aunt Saniya my father’s sister. She too is bereaved as she lost her two brothers, my father and his younger brother. I have got admission in a school, but I find it difficult to study. “ He looks away and then says “ I miss my sisters, my mother and father, I think of them but I try not to cry.” Sneha is a 22 year old, who listens carefully to what he says. She knows the sorrow he feels. Sneha a student of chartered accountancy was away from her village in Choorimala that week studying for her exams. Her family of nine were living close to each other in a cluster of three houses. There were no survivors. Nine members of her family died including her parents and two brothers. She has an older sister working as a nurse in the UK. This courageous young woman is at present living with her aunt trying to complete her exams. Then there is a little girl of six, Sidarate Munta, in the lap of her aunt. The child lost her parents, grandparents, of her seven member family only she survived. Jishnu is 25 years old. He works in Saudi Arabia sending money home to his family who lived in Punjirarattam, in Mundakai. This was the village at the top of the hill where the landslide started. He lost nine members of his family, including his parents and siblings. Only his younger brother, who suffered a severe spinal injury, survived. Another young man, Pranav, working in a resort was away that night from his home in Mundakai. He is the only survivor of an eight member family.

These survivors are among many other families we met—all of them dealing with the grief and trauma of losing their loved ones and everything in their lives, faced with the task of rebuilding their lives. It is in this context that the Government and people of Kerala have shown why Kerala is such a model for the rest of the country. As is known and well documented in the immediate aftermath of July 30, on the next day itself the official agencies and volunteers went into action. There was unity across political parties to help and rescue families. There were more than 9000 affected people shifted to relief camps. Of them many whose houses were not destroyed could go home after a few weeks. The State government appointed a team of four Cabinet Ministers who lived in Wayanad for a month, monitoring and helping to coordinate and assess the requirements. It was this on-the-spot intervention of Ministers which enabled the multiple areas of government intervention and assessment of future needs.

It is significant that after the experience of the floods in 2018, the LDF government had set up disaster management teams in all panchayats—a combination of official agencies and civil volunteers along with local body elected representatives. These teams have their own network through dedicated whatsapp groups for communications for all natural disaster problems. In Wayanad too, these teams were the first on the site. In the relief camps families were helped for their immediate needs by food supplied by official agencies and other material. There were generous donations from political parties and other organisations. However, the families were wanting their own space. It is here that the decisions of the government assessing the needs of survivors after close interactions with them is highly appreciable. Kudumbashree groups also played an important role in such assessments. Under the guidance of the district administration headed by a woman Collector who by all accounts played an important role in the disaster management multiple tasks, 250 Kudumbashree women workers, surveyed 1009 families collecting detailed information about their current situation and needs. This data is being used for micro planning for each affected family.

Thus the government decided that all survivors should have an opportunity to live in their own spaces through the provision of funds for rented accommodation. This is a most senstiibe approach of the LDF government in contrast to other places where people have to languish in relief camps for months together. Each family is provided a subsidy of 6000 rupees every month as rent. A large number of survivors have been enabled to move out of the relief camps into such rented places. Those families who are living with relatives can also avail of the rent subsidy. We found that people of the different localities in Wayanad close to the affected area have been generous and kind in helping provide homes to the survivors. Most of the survivors we met were of families of plantation workers, agricultural workers, daily waged workers or of drivers, welders, carpenters, working class families. They belonged to different religious communities, Hindus, Muslims,Christians and a few tribals. They were provided with “back to home” kits for essential household items by the government. We were told by the survivors that the health department has deputed trained counsellors to visit them in their homes regularly. This too is quite unique. Usually victims of trauma are expected to go to hospitals for sessions but here the government is arranging home visits. Additionally kudumbashree members also regularly visit homes to help families.

Two adult members of each affected family can get 300 rupees per day as subsidy, which works out to 18,000 rupees a month. This is a very important part of the government relief measures as at present most members are still unable to work. They told us that it is only because of this government approach that they are able to survive. Those with injuries got additional financial assistance apart from free medical treatment. The government lower primary school in Mundakai and the Higher secondary government school in Vellarmala were destroyed. This affected around 600 students. Each child has been provided with uniforms and books. They have been relocated to schools and three government buses have been dedicated for their transport.

There are still scores of residents who are “missing.” This means that bodies have not been found with added emotional stress for the surviving family members. One of the most difficult situations has been the identification of the bodies to establish the family connections through the DNA reports. So violent was the force of the landslides that in many cases bodies were dismembered. We met survivors who are waiting for DNA reports and identification of the bodies or body parts of their loved ones. Here also the government and especially the health and forensic departments are working round the clock to match DNA samples. Such identification of bodies along with the emotional stress for families also has a legal aspect as the compensation of eight lakhs rupees for each deceased according to the rules of the Disaster Management authorities can only be given after the identification is confirmed. There are still families who have not received the compensation as the DNA process is on. Minors who lost both parents will get ten lakhs.

These are some of the immediate measures being taken by the state government. The long term plan is to build two townships where houses will be provided to each family who have lost their home. Those who are in landslide prone areas will be shifted to safer zones in these townships and for this land has already been identified. Infrastructure facilities, schools and hospitals are also planned. While the state government is working hard for the rehabilitation of the affected areas in Wayanad, the Central government has betrayed the people of Wayanad.

The day before we reached Wayanad we were told that the central government had announced the Centre’s contribution to the Disaster Relief Fund of various states. Maharashtra received 1492 crores rupees; Andhra Pradesh 1036 crores; Assam 716 crores; Bihar 655.60 crores; Gujarat 600 crores and to Kerala just 145.60 crores rupees. It can only be a monster government which adopts such a sectarian approach playing politics with relief. The state government had demanded 2000 crores rupees. This is a huge issue for Kerala and for each individual family. The UDF led by the Congress party has 19 MPs from Kerala but there has been a deafening silence from them on this issue in Parliament.

We had the opportunity to meet party cadre who had been involved in the rescue and relief efforts from the night of the disaster and who continue their work with the affected families. In the affected areas the Chooramala local committee secretary is Comrade Baiju. The branch secretary there is Comrade Abbas. In Mundakai the branch secretary is Comrade Rashid. Party conferences are being held now throughout India. The importance of an active branch and branch secretary was exemplified in what we heard of the tremendous work done by these comrades. They were helped by Comrade Francis the DYFI leader and party area committee member who played a leading role risking his own life to save others. The DYFI local units also did a tremendous job. The DYFI has a “youth brigade” who have basic training in help and rescue, first aid and so on to help in times of distress. They also have the required material in their offices—rope, torches, even portable motor cutting machines which all came into use that terrible night.

We listened to their stories told in such a matter-of-fact way and with no sense of self pride—how they coordinated with each other, the number of families they could save, the hard struggle to find bodies, the guidance of the government. We understood the great risk they put themselves in—they are heroes we can be proud of along with all the numerous volunteers who worked along side them. I thought it was such an appropriate reflection of the community based united work that symbolizes Kerala—young men with names that represent different religious communities – all working together with the united will inspired by the party and the DYFI to serve the people. The work being done in Wayanad by the party at all levels is an inspiration for the entire party.

• बृंदा करात

• संजय पराते

🟥🟥🟥

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