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पुस्तक समीक्षा : साझा काव्य संग्रह ‘जीना इसी का नाम है’ : रचनाकार- रितु शर्मा ‘पाठक’, प्रवेश शर्मा ‘पाठक’ : संपादिका- पूनम पाठक ‘बदायूं’ : समीक्षक- सी पी सुमन यूसुफ़पुरी
आज हम साहित्य के एक संगम पर खड़े हैं। इस स्थान पर एक तरफ़ हैं गंगा की लहरों जैसी 75 कविताएं तो दूसरी तरफ़ हैं यमुना की लहरों जैसी 62 कविताएं और यहां गुप्त रूप से संगम कर रही है सरस्वती की लहरों समान “पूनम पाठक बदायूं ” जी का कुशल संपादन। इन्होंने अपनी दो बहनों “रितु शर्मा पाठक” और प्रवेश शर्मा पाठक” की कविताओं को समाहित किया एक काव्य संग्रह में जिस का नाम है ” जीना इसी का नाम है”
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आइए पहले “रितु शर्मा ” की कविताओं से परिचित कराते हैं आप को।
आप की हर कविता अपने आप में एक कहानी बुनती है।कई सपने बुनती है।एक आईना दिखाती है और मानव की मनुजता को झकझोरती है। यथा कुछ पंक्तियां
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त्यौहार कुछ कहने आते हैं
हमें प्रेम की सीख बताते हैं
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बेटियां मधुर एहसास होती हैं
दो कुलों का मान रखती हैं
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स्त्री कठपुतली नहीं है
वह सब को सुनती है, समझती है।सब को जोड़ती है।
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बड़ों के दिए उपदेश होते हैं रेड लाइट की तरह । हमारी रक्षा करते हैं।
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“रितु शर्मा पाठक” अपनी कविताओं के माध्यम से जीवन के इंद्रधनुषी रंगों की छटा को अपनी अनुभूतियों में व्यक्त करती हैं।
“रितु शर्मा पाठक” की कविताओं में शब्दों और भावों की “सुंदर जोड़ी” है।”ज्ञान के सरोवर” हैं। “तीज और त्यौहार”के रंग हैं। “परोपकार” के संदेश हैं। सत्य की “धूप” है। “सकारात्मकता ” है।”उत्साह” की छाया है।” भक्ति में शक्ति” है।”आशा” और “संयम” है।
आइए कुछ पंक्तियों में इस सत्य का दर्शन करें
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सकारात्मकता पथ प्रदर्शक है हमारी । सफलता की कुंजी है, मजबूती देती है।
आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है।
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जीवन में आते हैं कई उतार – चढ़ाव
खुशियां ऊंचाइयों पर पहुंचा देती पर अनापेक्षित दुःख चोट है पंहुचाता।
पर आत्म विश्वास बनाए रखना। धैर्य कभी न खोना।
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अगर पुतला बोल सकता तो कहता
कितना मारोगे तुम मुझे?
अपने अंदर जो रावण हो, उसको तो मिटाते चलो
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जब भी कोई त्यौहार आता है तो चांद बहुत हंसता है।
चांद को देख ईद मनाई जाती है। करवा चौथ और शरद पूर्णिमा। अगर ये ज़मीन पर होता तो चांद के लिए भी लोग लड़ जाते। क्या चांद को हंसने देते लोग?
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शब्द कोष में शब्दों के अर्थ हैं। न समझने पर सभी व्यर्थ हैं। सही अर्थ समझने में आजकल इंसान बड़ा ही असमर्थ है।
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वास्तव में “रितु शर्मा पाठक” की कविताओं में पौराणिक चिंतन और आध्यात्मिकता का गहरा प्रभाव है।
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आइए अब यमुना की लहरों समान कविताओं की धारा को देखें जिसे प्रवाहित किया है “प्रवेश शर्मा पाठक” ने।
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भारतीय साहित्य की मूल भाव भूमि को आध्यात्मिक माना गया है
“प्रवेश शर्मा पाठक” का काव्य साहित्य ऐसा ही है।
“प्रवेश शर्मा पाठक” की कविताओं में जीवन के अर्थ का विस्तार समाहित है
मन की आहट और हलचल की सार्थक अभिव्यक्ति है। आइए इसे आप भी महसूस कीजिए कुछ पंक्तियों द्वारा
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पाश्चात्य सभ्यता जो अपनाओगे
जीवन को संकट मय बनाओगे।
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धरती प्रकृति की कन्या है
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घर की बंद आलमारी में बंद किताबें कभी चीख कर कभी सिसक कर कहती हैं ” कभी तुम मोबाइल छोड़ कर हमें भी देखो सुनो।
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खुशियां नहीं मिलती बाज़ार में। यह तो होती हैं दिल और दिमाग में।
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यह सच है पृथ्वी हमेशा रहेगी बात सिर्फ़ प्रकृति बचाने की है।
यह सच है रिश्ते ख़त्म नहीं होंगे बात सिर्फ़ रिश्ते निभाने की है।
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चित्रकार हो या लेखक जब तक वह बंधन में बंधा है
वह सच्चा चित्र नहीं बना सकता
वह सच नहीं लिख सकता
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“प्रवेश शर्मा पाठक” की कविताओं में “भारत की शोभा” है। “किताबों की आवाज” है। “संस्कारों की यात्रा है। “पीपल के पत्ते” हैं । ” बेला के फूल हैं।
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“प्रवेश शर्मा पाठक” की कविताएं कागज़ की नाव पर समुद्र पार करने की जद्दोजहद है।
प्रकृति के प्रति कवयित्री का सच्चा अनुराग भरा है “प्रवेश पाठक” की कविताओं में यथा कुछ पंक्तियां
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संस्कार भी करते हैं यात्रा ।
पीढ़ी दर पीढ़ी । व्यक्ति से व्यक्ति तक
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मेरी कलम मेरी कलम है
सरस्वती मां को मेरा नमन है
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अंत में हम सादर नमन करते हैं इन दोनों क्वयित्रियों को और उनकी लेखनी को साथ ही इस संग्रह की संपादक “पूनम पाठक बदायूं” का हम हार्दिक आभार व्यक्त करते हैं जिन्होंने अनमोल उपहार के रूप में हमें ये पुस्तक प्रदान किया।
और आप के प्रति हमारी दुआएं आप ही के पुस्तक में समहित इन पंक्तियों द्वारा —
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दुआएं लगती ज़रूर हैं अगर दिल से दी जाएं।
दवा से बड़ी होती है दुआ।
क्यों न दुआओं को कमाया जाए।
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आप तीनों “पूनम पाठक बदायूं”
“रितु शर्मा पाठक और
“प्रवेश शर्मा पाठक” को हमारी दुआएं हैं दिल से । आप की कविताओं की ये यात्रा निरंतर गतिमान रहें।
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