रचना आसपास : पूनम पाठक ‘बदायूं’
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• मानवीयता से ये दूर
पैसे से अमीर होते हैँ /कहीं कुछ लोग
हाँ पैसे से /मगर दिल से नहीं
ख्याल रखते हैँ /अपनी सुविधा का
कैसा ख्याल /ख्याल दूसरों का नहीं
बिल्कुल ये रोम के /राजा जैसे होते हैँ
जैसे कि ये /सावन के अंधे होते हैँ
जिन्दा होते हुए भी /मरी होती है आत्मा
धन धनात्मक होता रहे /चाहे कोई रोता रहे
स्वार्थ में ये खोये रहते /अनेक बहाने करते
दूसरों को नुकसान मिले /इन्हें फर्क कहाँ
पत्थरों के मकान में /पत्थर दिल लोग
छोड़ते खंडहर ये /बस्तियों के बीच
भर जाते बरसात में /रोते हैँ लोग
कीड़े -मकोड़े इनके /घर तक नहीं पहुंचते
खंडहर जिन घरों के बीच /डरते हैँ लोग
अमानवीयता के करीब /मानवीयता से ये दूर
अपना सुख चैन /अपना हँसना अच्छा लगे
समाज में होते ऐसे /गेंहूँ में मंडूसी घास लगे
०००००