इस माह के ग़ज़लकार : रियाज खान गौहर
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ग़ज़ल{1}
कौन से हमको सपने दिखाऐ नहीं
करके वादे तो हमसे निभाऐ नहीं
कौन कहता है ये मुझको भाऐ नहीं
आप मेरे लिये तो पराऐ नहीं
आप कहते हैं कुछ और करते हैं कुछ
आज तक क्यों गले से लगाऐ नहीं
खुद तो कहते यही हम सभी के लिये
क्यों मुहब्बत का दीपक जलाऐ नहीं
बात अच्छी लगी आप भी ख़ूब हैं
आपने क्या से क्या गुल खिलाऐ नहीं
आपके राज़ तो हैं सभी जानते
राज़ क्या हमसे अपने छुपाऐ नहीं
आजकल क्यों शराफ़त दिखाने लगे
क्या कभी आपने घर जलाऐ नहीं
अब तो मिलती नहीं है ख़बर आपकी
हाल अपना ज़रा भी सुनाऐ नहीं
वो तो अच्छी तरह जानते हैं मुझे
सामने वो तो आऐ लुभाऐ नहीं
अपनी करनी की गौहर सज़ा है मिली
रोज़ क्या हमने आँसू बहाऐ नहीं
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ग़ज़ल {2}
तुझे क्या मज़ा आऐगा दिल्लगी में
मरा जा रहा है तू जब मुफ़्लिसी में
वो अब तक भटकता रहा तिरगी में
उसे क्या मिला आज तक ज़िन्दगी में
किसी और का हक़ नहीं हमने मारा
यही सोच दिल में रहे हर किसी में
कभी मुफ़्लिसी को भला क्या वो जानें
हमेशा वो रहते रहे हैं खुशी में
गवारा न था सोचना कुछ भी ऐसा
रहूँ मैं भी जाकर कभी रौशनी में
खुशी को कभी उसने देखा नहीं है
हमेशा वो रहता रहा रन्ज ही में
बला होती है क्या रौशनी जानें कैसे
कभी वो रहे ही नहीं रौशनी में
वो हर एक को दोस्त अपना समझता
पता ही नहीं कब रहा दुश्मनी में
रहा ज़िन्दगी से ये मायूस गौहर
वो जीता रहा आज तक बेबसी में
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ग़ज़ल {3}
उन्ही का काम है घर को जला देना
कभी होता नहीं उनसे बुझा देना
नहीं ऐसा सियासत के सिवा होता
किसी को भी किसी से लड़ा देना
सज़ा देने से पहले सोच लेना तुम
परख लेना किसी को जब सज़ा देना
गुनाहों का ये इन्साँ हो गया पुतला
खुदा का काम है इसको सज़ा देना
नहीं है इससे अच्छा काम दुनिया में
किसी के टूटते घर को बसा देना
नहीं मिलते हैं मुन्सिफ़ आजकल सच्चे
किसी को भी सज़ा कुछ भी सुना देना
किसी के सामने झुकना नहीं यारो
भले ही अपनी गर्दन को कटा देना
कभी भी बात अच्छी हो नहीं सकती
किसी को देखना और मुस्कुरा देना
हमेशा पास ही तुम पाओगे गौहर
किसी भी वक्त में मुझको सदा देना
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