कविता आसपास : प्रदीप ताम्रकार
• कविता
• साथ नहीं छोडूंगा
– प्रदीप ताम्रकार
[ धमधा, जिला-दुर्ग, छत्तीसगढ़ ]
सत्य नीति और ईमान को
साथ लेकर चलते-चलते
शायद मैं तन्हा रह गया
मेरी तन्हाई को देख
लोग अट्टहास करने लगे
कहकहे लगाने लगे
मजाक उड़ाने लगे
और मैं किमकर्तव्यविमूढ़
आक्रोशित होकर
क्रोध रहित मौन रहता गया
एक दिन मेरे मन में
यह विचार आया की
क्यों ना मैं सत्य नीति और
ईमान का साथ छोड़ दूं
ताकि मेरे पीछे कारवां चले
या मैं किसी कारवां का
हिस्सा बन सकूं
जैसे ही मेरे मन में
यह ख्याल आया
सत्य नीति और ईमान का
श्र क्रंदन सुनाया
ये तीनों क्रंदन करते हुए
कह रहे थे कि
श्र प्रदीप तुमने हमें साथ रखकर हमारे साथ चलकर
पूरी जिंदगी
तनहाई में बिता दी
अब कुछ बची हुई जिंदगी में
तुम हमारा साथ
छोड़ देना चाहते हो
जैसे ही मुझे सत्य नीति और
ईमान का क्रंदन सुनाया
मेरी आंखों में आंसू आ गए
मैंने कहा सत्य नीति और इमान मेरे दोस्त मेरे भाई
भले ही मैं पूरी जिंदगी
तनहाई में बिता दूंगा
लेकिन तुम लोगों का साथ
कभी नहीं छोडूंगा
कभी नहीं छोडूंगा
[ रचनाकार प्रदीप ताम्रकार एक प्रतिष्ठित पत्रकार हैं. ‘छत्तीसगढ़ आसपास’ में इनकी पहली कविता प्रकाशित की जा रही है. कैसी लगी लिखें- संपादक ]
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