सत्य घटना पर आधारित कहानी : ‘सब्जी वाली मंजू’ : ब्रजेश मल्लिक
• कहानी
• सब्जी वाली मंजू
‘सब्जी ले लो सब्जी'” दिदि ओ दिदि, ताजा ताजा सब्जियां लाईं हूं”।
रात लगभग 10 बज रहा था। श्रावण महिना, लगातार बारिश हो रही थी। शिवनाथ नदी उफान पर हैं। भिलाई इस्पात संयंत्र, जिला दुर्ग छत्तीसगढ़ कोरोना के कारण
कलेक्टर महोदय सुबह 6 बजे से सुबह 10 बजे तक 4 घंटे तक जरूरी सामान के लिए छुट दे रखें हैं।
मंजु आयीं हैं पानी में भिग कर लगभग रात्रि 10 बजे।
आज़ भी मंजु आतीं है बहू जया के पास सब्जी लेकर।
अवश्य अपना दिदि कों याद करतीं हैं एवं आंसु निकलतीं हैं!
शहर के चप्पे-चप्पे पुलिस एवं निगम के आदमी घुम रहे हैं। मंजु लाकडाउन उपेक्षा करके छुप छुप के आयीं हैं सब्जी बेचने!
बैंक से रिटायर्डमेन्ट के बाद कविता एवं कहानी लिख कर समय व्यतीत कर रहा हूं। बड़े बड़े कवि सम्मेलन में भी स्टेज में प्रस्तुति दे रहा हूं एवं प्रसिद्धि प्राप्त किया मैंने। मेरी पत्नी झरना मल्लिक मैडम केन्द्रीय विद्यालय में अध्यापिका थी दीर्घ 36 साल से। उसकी भी रिटायरमेंट हो गई है।
-“क्या बात है मंजु बेटी, इतनी शाम को तुफान के समय बारिश में सब्जी बेचने आयीं हैं?”
क्या करब दादा,दो हजार का कच्चा माल, अभी नहीं बेचु तो सुबह तक खराब हो जायेगा! लेवें क्या दादा, सस्ते में दें दुंगी।
मैं सुबह बाजार से ठेड सारे सब्जी घर के लिए खरीद कर के लाया था, इसलिए मैं “ना”बोलने जा रहा था, लेकिन मुझे पत्नी मुझे रुकते हुए कहा -“अच्छा हुआ मंजु, सब्जी लेकर आयीं हैं। देखना घर पर एकदम सब्जी नहीं हैं! तोड़ दादा कों बार बार कहा -“जाओ, बाजार जाओ, सब्जी लाओ, लेकिन कहा बाजार में पुलिस घुम रहे हैं।”
मंजु के चेहरे पर एका एक खुखी नजर आयीं, पत्नी जबरदस्ती ढेर सारी सब्जियां खरीद लिया!
-“माफ़ करना दिदि, मुझ से आज़ गुनाह हों गयी है!”
-“क्या हों गया है मंजु बेटी?”
-“इतनी रात को मुझे कानून तोड़कर सब्जी बेचने नही आना था! लेकिन मैं मजबूर थीं! महाजन से सब्जी मंडी में दो हज़ार उधारी करके सब्जी लाईं हूं,कल तक अगर पैसे आपस नहीं करूंगी तो आगे उधारी नहीं देगा!”
गरीब लाचार मंजु पानी में भिगकर विदाई हो गई।
दुसरे दिन सुबह लगभग 8 बजे घर के सामने बगीचे में बैठेकर मैं और पत्नी झरना चाय पी रहे थे, बहू जया 2 साल का पोता कों मेरे पास छोड़ा एवं सासु मां को हिदायत दी -“मम्मी, आप समय पर अपना दवाईयां जरूर लें लेना”।
कोरोना काल में बेटा राजीव का कपड़े का दुकान विगत एक माह से बंद है,कब खुलेगी कुछ नहीं मालूम! दुकान का रेंट, कर्मचारी का वेतन देना पर रहा! नहीं तो बेचारे लोगों का परिवार भुखे मर जायेंगे! लेकिन बिग बाजार,मल,सुपार मार्केट, शराब भट्टी, इंग्लिश वाईन दुकान खुल गई है सरकारी मेहरबानी से!
अचानक मंजु हमारे घर गेट खुलकर प्रबेश किया। आज़ कौई सब्जी नहीं लाईं हैं साथ में। एकदम उदास, आते ही हमारे सामने जमीन पर बैठ गई!
-” क्या हुआ बेटी मंजु?”मैंने पुछा।
-“दादा,कल रात कों पुलिस का गाड़ी मेरा पुरा सब्जी जब्द कर लिया है! आज़ अभी थाना से आ रही हूं,
यहां कौई सब्जी नहीं, पुलिस वाले मुझे भगा दिया हैं!
बोला:-“भाग जा यहां से, नहीं तो अंदर कर दुंगा, ज़मानत भी नहीं होगा!”
हम गरीब के लिए कौई नहीं है दादा, मंजु रोने लगी! मेरी पत्नी आंख से भी आंसु ‘टप-टप’ गिर रही थी! एका एक अंदर चली गयी।
यह हैं छत्तीसगढ़, विश्व में सबसे शांत प्रदेश।सिधि सादी मंजु कों पति छोड़ दिया हैं। सात साल की बच्ची कों लेकर डोंगरगढ़ ससुराल से अपने गरीब मां के पास आ गई है। खाना नहीं देना, शराब पी कर हर रोज पिटाई करना था पति का काम। अभी दुसरे को बना लिया है पति!
अब मेरी दयामयी पत्नी बाहर आ गई है। हाथ में पांच हजार रुपए।
-“ले बेटी मंजु, इसमें से दो हजार महाजन कों दें देना उधारी का, बाक़ी तीन हजार का नगद सब्जी ले लेना।”
मंजु अचम्भित -“इतनी पैसा में कैसे आपस करुंगी दिदि?”
-“आपस करने की चिंता छोड़,जब होगा देना, नहीं तों कौई बात नहीं,तु मुझे दिदि कहतीं हैं ना।”
-“मैं आपकी ए अहसान कभी नहीं भूलूंगी।”मंजु नमस्ते करके विदाई लिया।
आज़ से तीन साल पहले मेरी पत्नी का स्वर्गवास हो गयी है
कोरोना त्रासदी से। बेटी मल्लिका, बेटा राजीव एवं हजार हजार स्टूडेंट्स , देश विदेशो में कौई डाक्टर, इंजीनियर, साइंटिस्ट, फौजी प्रोफेसर्स इत्यादि छोड़कर सब को रूलाकर “ना लोटने की देश चलीं गईं।
आज़ भी मंजु आतीं है बहू जया के पास सब्जी लेकर।
अवश्य अपना दिदि कों याद करतीं हैं एवं आंसु निकलतीं हैं!
[ कवि ब्रजेश मल्लिक कवि के रूप में एक चर्चित नाम है. ‘छत्तीसगढ़ आसपास’ में पहली बार इनकी लिखी सत्य घटना पर आधारित कहानी ‘सब्जी वाली मंजू’ प्रकाशित की जा रही है. पाठक अपनी प्रतिक्रिया से अवश्य अवगत कराएं- संपादक ]
• लेखक संपर्क-
• 77470 76222
०००००